What is Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक संविधान पीठ राजनीतिक दलों को चंदे के लिए 2018 में लाई गई ‘इलेक्टोरल बॉंन्ड’ योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार से सुनवाई शुरू करने वाली है. इस मामले में केंद्र और निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक-दूसरे से उलट रुख अपनाया है. एक ओर,सरकार चंदा देने वालों के नामों का खुलासा नहीं करना चाहती, वहीं दूसरी ओर चुनाव आयोग पारदर्शिता की खातिर उनके नामों का खुलासा करने का समर्थक है.


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इस पूरी बहस को समझने के लिए हमें कुछ बुनियादी जानकारी हासिल करनी होगी जैसे- इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों और कैसे जारी किये जाते हैं? उन्हें कौन खरीद सकता है? और अंततः, क्या इलेक्टोरल बॉन्ड ने राजनीतिक दलों के वित्तपोषण की व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी बनाया या नहीं? जानते हैं इस सवालों का जवाब:


इलेक्टोरल बॉन्ड क्या हैं?
सरकार ने यह योजना दो जनवरी 2018 को अधिसूचित की थी. सरकार का दावा था कि पार्टियों को नकद चंदे के एक ऑपशन के रूप में इस स्कीम को लागा गया है और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाएगी.


कौन खरीद सकता है इलेक्टोरल बॉन्ड
इलेक्टोरल बॉंड भारत का कोई भी नागरिक या भारत में स्थापित संस्था खरीद सकती है. कोई व्यक्ति, अकेले या अन्य लोगों के साथ संयुक्त रूप से इलेक्टोरल बॉंड खरीद सकता है .


ये बांड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की निश्चित शाखाओं में 1,000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक के कई मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं.


कैसे खरीदे जा सकते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड को केवल बैंक खाते से भुगतान करके ही खरीदा जा सकता है. जनवरी 2018 में जारी वित्त मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति मुताबिक बॉन्ड पर प्राप्तकर्ता (Payee) का नाम नहीं होगा और इसकी अवधि केवल 15 दिनों की होगी, जिसके दौरान इसका उपयोग कुछ मानदंडों को पूरा करने वाले राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है. राजनीतिक दल केवल निश्चित बैंक खातों के माध्यम से बांड एनकैश करा सकते हैं.


वित्त मंत्रालय ने 2018 में कहा था कि इलेक्टोरल बांड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध होंगे. आम चुनाव वर्ष में केंद्र द्वारा अतिरिक्त 30 दिन की अवधि निर्दिष्ट की जाएगी.


कौन से राजनीतिक दल हासिल कर सकते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
केवल जन प्रतिनधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और पिछले लोकसभा चुनाव या राज्य विधानसभा चुनाव में पड़े कुल मतों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल करने वाले दल ही इलेक्टोरल बॉंड प्राप्त करने के पात्र हैं .


इलेक्टोरल बॉन्ड समर्थकों का क्या कहना है?
इलेक्टोरल बॉन्ड के समर्थकों का तर्क है कि ये पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं कि राजनीतिक दलों को औपचारिक बैंकिंग चैनलों के माध्यम से दान प्राप्त होता है, जिसका सरकारी अधिकारियों द्वारा ऑडिट किया जा सकता है. इसके अलावा, डोनेशन देने वालों की पहचान गोपनीय रहती है, जिससे उनकी राजनीतिक प्रतिशोध या धमकी का जोखिम कम हो जाता है.


क्यों हो रही हैं इनकी आलोचना
अपनी स्थापना के बाद से, इलेक्टोरल बांड महत्वपूर्ण विवाद का विषय रहे हैं. इलेक्टोरल बांड की मुख्य आलोचनाओं में से एक धन के स्रोत के संबंध में पारदर्शिता की कमी है.


दानकर्ता की पहचान जनता या चुनाव आयोग के सामने उजागर नहीं की जाती है, जिससे राजनीतिक योगदान के स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है. इस अपारदर्शिता ने यह चिंता पैदा कर दी है कि इलेक्टोरल बांड का इस्तेमाल राजनीतिक व्यवस्था में अवैध धन को सफेद करने के लिए किया जा सकता है.


सुप्रीम कोर्ट में क्यों हो रही है सुनावाई
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ चार याचिकाओं के समूह पर सुनवाई करने वाली है . इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की याचिकाएं शामिल हैं.


पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा हैं.


सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर को कहा था कि इलेक्टोरल बॉंड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब पांच न्यायाधीशों की पीठ फैसला करेगी.


कैसे सिर्फ एक पार्टी को मिला फायदा और बाकी दल रह गए कंगाल?
जनहित याचिका दायर करने वाले एक याचिकाकर्ता ने मार्च में कहा था कि इलेक्टोरल बॉड के जरिये राजनीतिक दलों को अब तक 12,000 करोड़ रुपये मिले हैं और इसका दो-तिहाई हिस्सा एक बड़ी पार्टी के खाते में गया.