Explainer: ...जब कवच से रेल हादसों में आ रही कमी तो देशभर में इंस्टॉल करने में देरी क्यों हो रही?
Kavach Safety System: रेलवे ने कवच सिस्टम पर साल 2012 में काम करना शुरू किया था और पहली बार इसका ट्रायल 2016 में किया गया था. यह सिस्टम ट्रेन को कई प्रकार के खतरों जैसे- गाड़ी की तेज रफ्तार या सिग्नल तोड़ना आदि से बचाता है.
What is Kavach: पिछले दिनों अगरतला से कोलकाता के सीलदाह जा रही कंचनजंगा एक्सप्रेस नए जलपाईगुड़ी के पास एक मालगाड़ी से टकरा गई. इस हादसे में 11 लोगों की मौत हो गई. इस दुर्घटना के बाद हर कोई यही कह रहा था कि 'कवच' होता तो लोगों की जान बचाई जा सकती थी. एक साल पहले कोलकाता से चेन्नई जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस ओडिशा के बालासोर के पास मालगाड़ी से टकरा गई, इस हादसे में 296 लोगों की मौत हो गई थी. रेल हादसों पर लगाम लगाने के लिए 'कवच' नामक टेक्नोलॉजी को तैयार किया गया था. जानकारों का कहना है 'कवच' बालासोर जैसे हादसे को रोकने में शायद ही कामयाब होता, क्योंकि इसमें तीसरी ट्रेन भी शामिल थी. कवच तकनीक आने के बाद रेल हादसों में कमी आई है. लेकिन सवाल यह है कि फिर इसे देशभर में इंस्टॉल करने में देरी क्यों हो रही है?
कवच सिस्टम क्या है?
कवच रेल हादसों को पूरी तरह रोकने के मकसद से बनाया गया इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है. इसे रेलवे के रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (RDSO) की तरफ से तैयार किया गया है. रेलवे ने इस पर साल 2012 में काम करना शुरू किया था और पहली बार इसका ट्रायल 2016 में किया गया था. यह ट्रेन को कई प्रकार के खतरों जैसे- गाड़ी की बहुत तेज रफ्तार या सिग्नल तोड़ना आदि से बचाता है. यह सिस्टम लगातार बताता रहता है कि ट्रेन बिना किसी खतरे के कितनी दूर तक जा सकती है. खास बात यह है कि अगर ड्राइवर गाड़ी को नहीं रोक पाता या रोकने में सक्षम नहीं होता तो यह सिस्टम खुद-ब-खुद ब्रेक लगा देता है.
10000 साल में एक बार गड़बड़ी की संभावना
कवच को रेल हादसों पर लगाम लगाने के लिए काफी टेस्टिंग के बाद तैयार किया गया है. इसे सेफ्टी के हायर लेवल को हासिल करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसे सेफ्टी इंटिग्रिटी लेवल 4 (SIL-4) सर्टिफिकेट मिला हुआ है. इसका सीधा सा मतलब है कि इसमें गड़बड़ी होने की संभावना 10,000 साल में सिर्फ एक बार है. कवच को ऑपरेट करने का खर्च 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर है. वहीं दुनिया के दूसरे देशों में इस तरह के सिस्टम को ऑपरेट करने का खर्च 2 करोड़ रुपये प्रति किमी के करीब है.
अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल
कवच अलग-अलग कम्पोनेंट को जोड़ने के लिए अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रीक्वेंसी का यूज करता है. ट्रेन ड्राइवर अगर सिग्नल तोड़ता है, जो कि रेल हादसों का सबसे बड़ा कारण है तो कवच उसे आगाह करता है. अगर सिस्टम को उसी ट्रैक पर एक निश्चित दूरी के अंदर कोई दूसरी ट्रेन मिलती है तो सिस्टम तुरंत ड्राइवर को बताता है और खुद ही ब्रेक लगा देता है. यानी 'कवच' ट्रेन की रफ्तार को रोकने के लिए ऑटोमेटिक ब्रेक लगाकर सुरक्षा देता है. इतना ही नहीं यह सिस्टम रेलवे क्रॉसिंग के पास आने पर हॉर्न बजाकर अलर्ट करने में भी मददगार है.
कवच सिस्टम के लिए क्या करना जरूरी?
किसी भी रेलवे ट्रैक पर कवच सिस्टम को इंस्टॉल करने के लिए सबसे पहले पूरे ट्रैक के किनारे ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछानी होती है. इसके बाद हर जगह टावर लगाने होते हैं. इन दोनों कामों के पूरा हो जाने पर रेल पटरियों पर रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) या 'आरएफआईडी' टैग लगाने होते हैं. हर लोकोमोटिव में 'लोको कवच' और हर स्टेशन पर 'स्टेशन कवच' लगाना होगा. स्टेशन सेक्शन, प्वाइंट जोन, सिग्नल के पास और ब्लॉक सेक्शन में पटरियों के स्लीपर में ये आरएफआईडी टैग लगाने होंगे. ये टैग ट्रेन ड्राइवर को सिग्नल के बारे में तुरंत जानकारी देने के साथ ही लोकेशन ट्रैक करने में भी मदद करते हैं.
क्यों हो रही देरी?
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि 'कवच' बहुत अच्छी सुरक्षा प्रणाली है. इसे लगाना थोड़ा मुश्किल है. अब इसे देशभर में पहले से चल रहे रेलवे नेटवर्क पर लगाना है, जहां पर गाड़ियों के आने-जाने को रोका नहीं जा सकता. अभी तक कवच को 1465 किमी के रेलवे ट्रैक पर और दक्षिण मध्य रेलवे की 144 ट्रेनों पर ही लगाया जा सका है. इसे दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रूट (करीब 3000 किमी) पर लगाने का काम चल रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 17 जून तक 4055 किमी रास्ते पर ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई जा चुकी है और 356 टेलीकॉम टावर के साथ बाकी इंस्ट्रमेंट 273 स्टेशनों और 301 लोकोमोटिव में लगाए जा चुके हैं.
इंडियन रेलवे की तरफ से अब तक अपने नेटवर्क के 6000 किमी हिस्से पर कवच लगाने के लिए कंपनियों को चुन लिया गया है. आने वाले समय में 10,000 किमी रेलवे ट्रैक के लिए टेंडर जारी करने का प्लान है. फिलहाल सिर्फ तीन भारतीय कंपनियां - एचबीएल पावर सिस्टम्स (HBL PowerSystem), कर्नेक्स (Kernex) और मेधा (Medha) ही इस सिस्टम को बना और इंस्टॉल कर रही हैं. सरकार का फोकस इस प्रोसेस में ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को शामिल करने का है. इस फील्ड में कंपनियों की संख्या बढ़ने से ज्यादा रेलवे रूट पर कवच को इंस्टॉल किया जा सकेगा.