When To Check Sugar: किस समय चेक करने से पता चलेगा सटीक Blood Sugar? यहां जानें शुगर जांचने का सही तरीका
Blood Sugar Testing Tips: डायबिटीज से बचने और इसके मेनेजमेंट के लिए ब्लड शुगर को रेगुलेट करते रहना बहुत जरूरी होता है. ऐसे में यहां आप ग्लूकोज लेवल को चेक करने का सही तरीका और सही समय यहां जान सकते हैं.
यदि आपको शुगर की बीमारी यानी कि डायबिटीज है तो ब्लड शुगर को चेक करते रहना बहुत जरूरी है. इससे आपको अपने शुगर के लेवल को बैलेंस करने में मदद मिलती है. साथ ही आप इससे यह समझ सकते हैं कि ज्यादा आपका शुगर लेवल कम रहता है या बढ़ा रहता है. यह जानकारी आपके डॉक्टर को आपकी बेहतर ट्रीटमेंट करने में भी मददगार साबित होती है.
ऐसे में यदि आप अपने डायबिटीज को अच्छे से मैनेज करना चाहते हैं तो ब्लड शुगर चेक करने का सही समय पता होना आपके लिए बहुत जरूरी है. इस लेख में आप इसके बारे में अच्छी तरह से समझ सकते हैं.
कैसे कर सकते हैं ब्लड शुगर चेक
ब्लड ग्लूकोज मॉनिटर, कंटीन्यूअस ग्लूकोज मॉनिटर (CGM), A1c ब्लड टेस्ट की मदद से आप अपने ब्लड शुगर लेवल को माप सकते हैं.
कितने बार चेक करना चाहिए ब्लड शुगर
CDC के अनुसार, टाइप 1 मधुमेह वाले या टाइप 2 मधुमेह वाले लोग जो इंसुलिन ले रहे हैं, उन्हें आम तौर पर दिन में कम से कम चार बार ब्लड शुगर करने की जरूरत होती है.
ब्लड शुगर चेक करने का सही समय
जागने के बाद- फास्टिंग ब्लड शुगर को चेक करने के लिए सुबह सबसे पहले ब्लड शुगर को चेक करने की सलाह दी जाती है.
खाने से तुरंत पहले- इससे इंसुलिन डोज को सही मात्रा में लेने में मदद मिलती है.
खाने के 2 घंटे बाद- खाने के बाद ब्लड शुगर चेक करना इसलिए जरूरी है ताकि ऐसे फूड्स की मात्रा को कम या बढ़ाया जा सके जो ग्लूकोज लेवल को इफेक्ट करते हैं.
हाइपर या हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण दिखने पर- यदि आप प्यास, थकान, बार-बार पेशाब, सिर दर्द, धुंधला दिखने जैसे लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं तो शुगर लेवल चेक करना मददगार साबित होता है.
एक्सरसाइज करने से पहले और बाद में- एक्सरसाइज से अक्सर ब्लड शुगर लेवल कम हो जाता है, ऐसे में इसके लेवल को मॉनिटर करके आप अपने लिए बेस्ट एक्सरसाइज और स्नैक्स का चुनाव कर सकते हैं.
इतना होना चाहिए ब्लड शुगर
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार, खाने से पहले ब्लड शुगर- 80–130 mg/dL, और खाना खाने के 1-2 घंटे बाद 180 mg/dL से कम होना चाहिए. हालांकि यह लेवल मेडिकल हिस्ट्री, एज, डिजीज जैसे कारकों के कारण अलग-अलग हो सकती है.