पार्किंसंस रोग उम्र बढ़ने के साथ होने वाला एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है. यह दिमाग के एक खास हिस्से में नर्व सेल्स के डैमेज होने के कारण होता है. इसमें शरीर में कठोरता, कंपन और धीमी गति जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पार्किंसंस रोग का असर बोलने की क्षमता पर भी पड़ सकता है?


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जी हां, पार्किंसंस रोग से ग्रस्त लोगों को स्वर संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई के सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में ईएनटी विभाग की सलाहकार और सेक्शन को-ऑर्डिनेटर डॉ. स्मिता नागोंकर बताती हैं कि पार्किंसंस रोग में स्वरयंत्र (larynx) की काम करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे बोलने में दिक्कत होती है.


पार्किंसंस रोग में स्वर संबंधी दिक्कते
- आवाज निकालने में परेशानी होना, जिससे आवाज तनावपूर्ण या कर्कश हो सकती है. पार्किंसंस मरीजों की आवाज में अक्सर ये खासियतें होती हैं - धीमी, एक ही स्वर में चलने वाली, हवादार और कठोर. उन्हें बोलना शुरू करने में भी दिक्कत होती है, छोटे-छोटे वाक्यों में बोलते हैं, बीच-बीच में अचानक रुक जाते हैं और बोलने की गति में भी अंतर आता है.
- स्वरयंत्र की मांसपेशियों पर कंट्रोल कम होने के कारण आवाज धीमी हो सकती है. इतना ही नहीं, बोलते समय आवाज हवादार या फुसफुसाहट जैसी हो सकती है.
- मरीज बोलते समय आवाज के उतार-चढ़ाव, स्वर में भिन्नता या लहजे में बदलाव नहीं कर पाते.
- आवाज का बेकाबू कांपना या हिलना, जिससे स्पष्ट बोलने में परेशानी होती है.


क्या है इलाज?
डॉ. स्मिता नागोंकर कहती हैं कि उपचार का मुख्य फोकस पार्किंसंस रोग की दवाओं को ठीक से लेना है. इसके अलावा, स्पीच थैरेपी भी फायदेमंद हो सकती है. कुछ मामलों में इंजेक्शन लैरिंजोप्लास्टी या स्थायी प्रक्रिया जैसे टाइप-1 थायरोप्लास्टी की भी आवश्यकता हो सकती है.


स्ट्रोक भी आवाज को प्रभावित कर सकता है
स्ट्रोक दिमाग में खून के थक्के जमने या ब्लीडिंग के कारण होने वाली एक गंभीर स्थिति है. इसका असर भी बोलने की क्षमता पर पड़ सकता है. डॉ. नागोंकर बताती हैं कि स्ट्रोक के कारण आवाज में कई तरह के बदलाव आ सकते हैं, जैसे स्वर बिगड़ जाना, आवाज का कमजोर होना या पूरी तरह से गायब हो जाना, सांस लेने में तकलीफ आदि. स्ट्रोक से होने वाले नुकसान काफी हद तक इस बात पर निर्भर करते हैं कि दिमाग का कौन-सा हिस्सा प्रभावित हुआ है और स्ट्रोक कितना गंभीर है.