नई दिल्ली: वायरल हेपेटाइटिस (एचबी) को लेकर कम जानकारी व उपचार की कमी से प्रोग्रेसिव लिवर डैमेज और फाइब्रोसिस एवं लिवर कैंसर जैसी खतरनाक स्थितियां पैदा हो सकती हैं. इसके परिणामस्वरूप देश में हर साल लगभग 4.1 लाख मौतें हो सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ताजा आंकड़ों से इस बात का खुलासा हुआ है. भारत में वायरल हेपेटाइटिस एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है.


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हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, 'एचबी वायरस संक्रमित रक्त या शरीर के अन्य तरल पदार्थो के माध्यम से फैलने वाला अत्यधिक संक्रामक रोग है. यह मुख्य रूप से माताओं से उनके शिशुओं या बच्चों के बीच संचारित होता है. इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन एंटीवायरल दवाएं लक्षणों से निपटने में प्रभावी साबित होती हैं'. हेपेटाइटिस बी के शुरुआती लक्षण साधारण हो सकते हैं. इसमें बुखार, फ्लू जैसी तकलीफ तथा जोड़ों में दर्द शामिल हो सकता है. 


तीव्र हेपेटाइटिस के लक्षणों में थकान, भूख की कमी, मतली, पीलिया, और पेट के दायीं ओर दर्द शामिल हो सकता है. डॉ. अग्रवाल की मानें तो, 'किसी भी वायरस के कारण होने वाला तीव्र हेपेटाइटिस आमतौर पर सेल्फ-लिमिटिंग होता है. इसके लिए अच्छा आहार, पूर्ण आराम और लक्षणों के उपचार की आवश्यकता होती है. गंभीर वायरल हेपेटाइटिस में एक्यूट लिवर फेल्योर के मामलों में अस्पताल में तत्काल भर्ती की आवश्यकता हो सकती है. मरीज को गहन उपचार और यकृत प्रत्यारोपण की भी आवश्यकता हो सकती है'. 


डॉ. अग्रवाल के मुताबिक 'क्रोनिक हेपेटाइटिस बी और सी का ओरल एवं इंजेक्शन दोनों एंटीवायरल दवाओं के साथ इलाज किया जा सकता है. हेपेटाइटिस सी वायरस (एचसीवी) अब इलाज योग्य है और एचबीवी दवा से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. यह टीका हेपेटाइटिस ए वायरस और एचबीवी के लिए ही उपलब्ध है'.


(इनपुट-आईएएनएस)