40 के बाद दिल की सेहत का कैसे रखें ख्याल? टारगेट LDL कोलेस्ट्रॉल लेवल से मिल सकती है मदद
Advertisement
trendingNow12228647

40 के बाद दिल की सेहत का कैसे रखें ख्याल? टारगेट LDL कोलेस्ट्रॉल लेवल से मिल सकती है मदद

दिल के सेहत के मामले में हम अक्सर ’कोलेस्ट्रॉल’ शब्द सुनते हैं, लेकिन इसका ज्‍यादातर प्रयोग नेगेटिव रूप में होता है. पर कोलेस्ट्रॉल आखिरकार है क्या?

40 के बाद दिल की सेहत का कैसे रखें ख्याल? टारगेट LDL कोलेस्ट्रॉल लेवल से मिल सकती है मदद

कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं अक्सर बढ़ती उम्र से जोड़कर देखी जाती हैं, लेकिन ऐसी समस्याएं युवाओं में बढ़ना चिंताजनक है. कुछ हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि कार्डियोवैस्कुलर या दिल की बीमारियां पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीयों को एक दशक पहले से प्रभावित करने लगती हैं. यह ध्‍यान देने योग्‍य है कि कार्डियोवैस्कुलर समस्‍याओं के कारण मरने वाले लगभग दो-तिहाई (62%) भारतीय युवा हैं.

दिल के सेहत के मामले में हम अक्सर ’कोलेस्ट्रॉल’ शब्द सुनते हैं, लेकिन इसका ज्‍यादातर प्रयोग नेगेटिव रूप में होता है. पर कोलेस्ट्रॉल आखिरकार है क्या और युवाओं को उस पर बराबरी से ध्‍यान देते हुए अपने दिल की सेहत को अच्‍छा क्यों रखना चाहिए? कोलेस्ट्रॉल एक जरूरी फैटी पदार्थ होता है, जो सेल्स के काम करने और हार्मोन बनाने के लिए महत्वपूर्ण होता है.

कोलेस्ट्रॉल के प्रकार
यह विभिन्न प्रकारों का होता है, जैसे कि हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्ट्रॉल, जिसे ‘गुड कोलेस्ट्रॉल’ कहा जाता है. जबकि लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्ट्रॉल को ‘बैड कोलेस्ट्रॉल’ कहा जाता है. यह ज्‍यादा मात्रा में होने पर आर्टरी में प्लाक जमने लगता है और दिल की बीमारी तथा स्‍ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. ए‍क अध्‍ययन के अनुसार, 10 में से 6 भारतीयों में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ज्‍यादा है.

हाई एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और दिल की बीमारियों लिंक है?
कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ज्‍यादा होने से दिल की बीमारियों और दूसरी कार्डियोवैस्कुलर समस्‍याओं का खतरा काफी बढ़ जाता है. एथेरोस्‍क्‍लेरोटिक कार्डियोवैस्कुलर‍ डिजीज (एएससीवीडी) में हार्ट अटैक, स्‍ट्रोक जैसी स्थितियां शामिल हैं और यह भारत में मौत का बड़ा कारण बनी हुई है. एलडीएल-सी के चिंताजनक रूप से हाई लेवल इस महामारी में बड़ा योगदान देते हैं. एलडीएल-सी की ज्‍यादा मात्रा से प्लाक बन सकता है और नसें सिकुड़ सकती हैं या बंद हो सकती हैं. ऐसे में, दिल में खून का फ्लो कम हो जाता है और एएससीवीडी होने की संभावना रहती है. इसलिए एलडीएल-सी के लेवल को जानना अपने दिल की सेहत को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. एलडीएल कोलेस्ट्रॉल लेवल्‍स को मैनेज करने के बारे में युवाओं को शिक्षित करने से हेल्दी भविष्‍य का आधार बनता है. कोलेस्ट्रॉल और दिल पर उसके असर की समझ को प्रोत्‍साहन देने से नई पीढ़ियां अपनी लाइफस्टाइल के संबंध में सूचित फैसलें कर सकती हैं.

एक्सपर्ट की राय
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रीति गुप्ता बताती हैं कि मैं हमेशा से इस बात पर जोर देती आई हूं कि युवाओं को शुरुआती उम्र में ही अपने कोलेस्ट्रॉल लेवल की जांच करा लेनी चाहिए, खासतौर से जब वे अपने 20वें साल के आसपास हों. मैंने कम से कम 50 मरीजों में एलडीएल-सी का लेवल बढ़ा हुआ देखा, जो दिल की बीमारी की वृद्धि में प्रमुख योगदानकर्ता है. उनमें से 50% से अधिक में एलडीएल-सी का लेवल बढ़ा हुआ होता है जिस कारण आने वाले ज्यादा मरीजों का डायग्नोस नहीं हो पाता है.

डॉ. प्रीति आगे बताता हैं कि फैमिली बैकग्राउंड वाले लोग भी कभी-कभी बिना निदान के रह जाते हैं और 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में एएससीवीडी (एथेरोस्क्लोरोटिक दिल की बीमारी) विकसित होने का खतरा अधिक होता है. जेनेटिक फैक्टर के साथ ज्वाइंट लाइफस्टाइल ऑप्शन कोलेस्ट्रॉल के लेवल को बढ़ाने में मददगार साबित होते हैं, जिस पर ध्यान न देने से, कम उम्र में दिल की बीमारी के खतरे में वृद्धि होती है. 20 वर्ष की उम्र तक, कोलेस्ट्रॉल स्क्रीनिंग से गुजरना और लिपिड प्रोफाइल की जांच कराना महत्वपूर्ण है ताकि रिस्क फैक्टर को ठीक करके, जल्द से जल्द इलाज शुरू किया जा सकें. हर एक मरीज को अपने एलडीएल-सी टारगेट के आधार पर पर्सनल रोकथाम प्लान की आवश्यकता होती है. लाइफस्टाइल में अच्छी आदतों को शामिल करने और एक्टिव रहने से भविष्य में तंदुरुस्त दिल की नींव बनती है.

Trending news