Rural India में Menstrual Hygiene के लिए क्या एफर्ट किए जा सकते है? हेल्थ एक्सपर्ट ने दिखाई राह
How To Insure Menstrual Hygiene: जागरूकता के माध्यम से मासिक धर्म से संबंधित बीमारियों को कम किया जा सकता है. पीरियड्स के बारे में लड़कियों और लड़कों दोनों को ही बताना चाहिए ताकि वह अपने साथियों का समर्थन करने और हानिकारक रूढ़ियों को चुनौती देने तैयार हो सके.
मासिक धर्म स्वच्छता, खासकर ग्रामीण समुदायों में एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है. यहां सांस्कृतिक मान्यता, शिक्षा की कमी, अज्ञानता और पीड़ा को बढ़ाती हैं. एक अध्ययन के अनुसार, मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में 11 से 16 साल की उम्र की करीब 55% लड़कियां माहवारी के लिए पूरी तरह तैयार नहीं होती, जिससे उन्हें शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
डॉ. चंद्र निवास शांडिल्य, जो 'द हंस फाउंडेशन' से जुड़े हैं, बताते हैं कि इस अज्ञान और सामाजिक कलंक के कारण, 65.86% लड़कियां मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं के चलते स्कूल छोड़ देती हैं, जो उनकी शिक्षा में बाधा बनता है और गरीबी एवं असमानता को बढ़ावा देता है.
हाइजीन की सीख देनी जरूरी
किशोरावस्था में होने वाले हार्मोनल बदलावों का प्रभाव, सामाजिक भ्रांतियों से और भी बढ़ जाता है. इससे निपटने के लिए समुदाय में जागरूकता फैलाना, सैनिटरी नैपकिनों तक पहुंच बनाना और उनके सुरक्षित निपटान के तरीके सिखाना जरूरी है. ऐसा करने से स्वच्छता के मानकों में काफी सुधार हो सकता है और मासिक धर्म से संबंधित बीमारियों को कम किया जा सकता है.
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स्कूल शिक्षा के विषय मे हो शामिल
एक्सपर्ट के अनुसार, छठी कक्षा से ही स्कूली पाठ्यक्रम में मासिक धर्म स्वच्छता शिक्षा को शामिल करना जरूरी है ताकि लड़कियों और लड़कों दोनों को ही अपने साथियों का समर्थन करने और हानिकारक रूढ़ियों को चुनौती देने का ज्ञान दिया जा सके.
सरकार भी चला रही पहल
राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग की मासिक धर्म स्वच्छता योजना, ‘पीरियड पॉवर्टी’ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. इन योजनाओं के तहत सब्सिडी वाले सैनिटरी नैपकिन और वितरण कार्यक्रमों ने वंचित समुदायों के लिए मासिक धर्म से जुड़े उत्पादों को अधिक किफायती और सुलभ बना दिया है. इसकी मदद से हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर लड़की सम्मान के साथ मासिक धर्म का प्रबंधन कर सके और बिना किसी रुकावट के अपनी आकांक्षाओं को पूरा कर सके.
पुराने अवधारणाओं को तोड़ना जरूरी
सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों को भी बदलने की जरूरत है. मौन तोड़ना और मान्यताओं को चुनौती देना सहायक वातावरण बना सकता है जहां लड़कियां आत्मविश्वास के साथ अपने मासिक धर्म का प्रबंधन कर सकें.