एक तरफ जहां भयानक वायु प्रदूषण के कारण दिल्‍ली-एनसीआर समेत उत्‍तर भारत की हवा जहरीली हो गई है और सांसों का संकट गहरा रहा है वहीं हेल्‍थ को लेकर एक दूसरी बड़ी खबर आ रही है. ऑस्ट्रेलिया के ‘थेरेप्यूटिक गुड्स एडमिनिस्ट्रेशन (टीजीए)’ने हाल में एक नए कोविड बूस्टर (टीके) को मंजूरी दी है. यह टीका फाइजर द्वारा विकसित किया गया है. यह ओमिक्रॉन के जेएन.1 उपसंस्करण (सब वेरियेंट) को निशाना बनाता है.


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यह कोविड टीकों का पांचवां संस्करण है, जिसे तेजी से अपना स्वरूप बदल रहे सार्स-कोव-2 नामक वायरस से निपटने के लिए नियमित रूप से अपडेट किया गया है. परंतु महामारी के लगभग पांच साल बाद आप सोच रहे होंगे कि हमें एक और तरह के कोविड बूस्टर की ज़रूरत क्यों है? और क्या हमें अब भी बूस्टर की जरूरत है? यहां पर गौर करने वाली बातें बताई गई हैं.


‘स्पाइक’ प्रोटीन को निशाना बनाना
फाइजर का जेएन.1 बूस्टर (और मॉडर्ना का, लेकिन टीजीए ने उसे इस चरण में मंजूरी नहीं दी है) एमआरएनए तकनीक पर आधारित है. यह हमारी कोशिकाओं को एक विशिष्ट प्रोटीन बनाने का निर्देश देती है- इस मामले में सार्स-कोव-2 का स्पाइक, वायरस की सतह पर एक ऐसा प्रोटीन है जो इसे हमारी कोशिकाओं से जुड़ने की अनुमति देता है. यह प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबडीज के निर्माण में मदद पहुंचाता है जो स्पाइक प्रोटीन को पहचानती है और उसे हमारी कोशिकाओं में घुसने रोकती है.


टीकाकरण और पिछले संक्रमणों (जिसे प्रतिरक्षा दबाव कहा जाता है) से हमारी मजबूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं के जवाब में, सार्स-कोव-2 ने महामारी के दौरान अपना रूप बदलना जारी रखा, उसने अपने स्पाइक प्रोटीन के आकार को संशोधित किया है ताकि हमारे एंटीबॉडी कम प्रभावी हो जाएं.


हाल ही में हमने जेएन.1 समेत ओमिक्रॉन के कई उप-संस्करण देखे हैं. अगस्त 2023 में जेएन.1 का पता पहली बार चला था, इसलिए इस ओमिक्रॉन उप-संस्करण ने कई अन्य उप-संस्करणों को जन्म दिया है, जैसे केपी.2 (जिसे फ्लर्ट के नाम से जाना जाता है), केपी.3 (जिसे फ्लूक के नाम से जाना जाता है) और जेडईसी.


स्पाइक प्रोटीन 1,273 ‘अमीनो एसिड’ से बना होता है, जो कुछ हद तक आणविक निर्माण सामग्री जैसा होता है. स्पाइक प्रोटीन में उत्परिवर्तन से अलग-अलग अमीनो एसिड बदल जाते हैं.


कुछ ‘अमीनो एसिड’ एंटीबॉडी को स्पाइक प्रोटीन से बांधने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. इसका मतलब है कि बदलाव वायरस को पहले के संस्करण पर बढ़त दे सकते हैं, जिससे उसे हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बचने में मदद मिलती है.


वैज्ञानिक इन बदलावों के साथ तालमेल बनाए रखने के प्रयास में कोविड वैक्सीन को अपडेट करते रहते हैं. वैक्सीन का “स्पाइक” आपको संक्रमित करने की कोशिश कर रहे वायरस की सतह पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन से जितना बेहतर मेल खाता है आपको उतनी ही बेहतर सुरक्षा मिलने की संभावना है.


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इसलिए किसे टीका लेना चाहिए और कब


वायरस के उत्परिवर्तन से निपटने के लिए टीकों को अपडेट करना कोई नई अवधारणा नहीं है. फ्लू के टीके के लिए यह 1950 के आसपास से ही हो रहा है.


हम सर्दी जुकाम और फ्लू के मौसम से पहले हर साल फ्लू का टीका लगवाने के आदी हो चुके हैं. लेकिन, इन्फ्लूएंजा के विपरीत, कोविड अभी इस वार्षिक मौसमी चक्र में नहीं आया है. कोविड संक्रमण की लहरों की आवृत्ति में उतार-चढ़ाव होता रहा है, समय-समय पर नई लहरें आती रहती हैं.


कोविड फ्लू से भी अधिक संक्रामक है, जो एक और चुनौती पेश करता है. हालांकि संख्याएँ अलग-अलग हैं, जेएन.1 के लिए प्रजनन संख्या (आरओ यानी एक व्यक्ति कितने लोगों को संक्रमित करेगा) का एक रूढ़िवादी अनुमान पांच है. इसकी तुलना मौसमी फ्लू से करें जिसका आरओ लगभग 1.3 है. दूसरे शब्दों में, कोविड फ्लू से चार गुना ज़्यादा संक्रामक हो सकता है.


कोविड टीकाकरण (या पिछले संक्रमण) से होने वाली प्रतिरक्षा भी उसके बाद के महीनों में कम होने लगती है. इसलिए कुछ अधिक संवेदनशील लोगों के लिए वार्षिक कोविड बूस्टर पर्याप्त नहीं माना जाता है.


65 से 74 वर्ष की आयु के बुजुर्गों के लिए हर 12 महीने में एक बूस्टर की सिफारिश की जाती है, लेकिन वे हर छह महीने में एक खुराक के लिए पात्र हैं.


75 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों के लिए, हर छह महीने में एक खुराक की सिफारिश की जाती है. अठारह से 64 वर्ष आयु के लोग हर 12 महीने में एक खुराक के पात्र हैं, बशर्ते उनमें गंभीर प्रतिरक्षा की कमी न हो.


(लेखक: नाथन बार्टलेट, न्यूकैसल विश्वविद्यालय)
(साभार: द कन्वरसेशन)