दुनियाभर में एक तिहाई से अधिक महिलाओं को प्रसव के बाद स्थायी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, हर साल कम से कम चार करोड़ महिलाएं प्रसव के बाद लंबे समय तक स्वास्थ्य समस्याओं की शिकार होती हैं. ये समस्याएं महीनों या कभी-कभी वर्षों तक रहती हैं.


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अध्ययन में कहा गया है कि प्रसव के बाद महिलाओं को होने वाली सबसे आम स्वास्थ्य समस्याएं पीठ के निचले हिस्से में दर्द, डिप्रेशन, बच्चे के जन्म का डर (टोकोफोबिया) और एंग्जाइटी हैं. 32 फीसदी महिलाएं प्रसव के बाद पीठ के निचले हिस्से में दर्द से पीड़ित हैं. वहीं, डिप्रेशन से 11-17 फीसदी, बच्चे के जन्म का डर (टोकोफोबिया) से छह से 15 फीसदी और एंग्जाइटी से 9 फीसदी महिलाएं पीड़ित हैं.


रिस्क फैक्टर
अध्ययन के मुताबिक, प्रसव के बाद महिलाओं को होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम कारकों में शामिल हैं:
- कम उम्र में मां बनना
- गर्भावस्था में जटिलताएं
- प्रसव में जटिलताएं
- गरीब स्वास्थ्य सेवा


क्या बोले अध्ययन के लेखक
अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. नतालिया बोर्डेनको ने कहा कि प्रसव के बाद महिलाओं को होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है. इन समस्याओं से महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा कि प्रसव के बाद महिलाओं को इन स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जागरूक होना चाहिए और उन्हें समय पर उपचार लेना चाहिए.


महिलाओं की देखभाल
इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि प्रसव के बाद महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए अधिक प्रयासों की आवश्यकता है. इन प्रयासों में शामिल हैं:
- प्रसूति देखभाल में सुधार
- गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करना
- प्रसव के बाद महिलाओं को स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान करना


भारत में भी प्रसव के बाद महिलाओं को होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं एक बड़ी समस्या है. भारत सरकार ने हाल ही में प्रसूति देखभाल सेवाओं का विस्तार और गुणवत्ता में सुधार के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रसव के बाद महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल में सुधार करना है.