भारत आज (15 अगस्त 2024) ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता के 78वें साल में प्रवेश कर रहा है. 78वें स्वतंत्रता दिवस समारोह की Live कवरेज देखने के लिए यहां क्लिक करें. अंग्रेजी हुकूमत के समय जैसा भारत था, स्वतंत्रता मिलते ही उसके दो टुकड़े हो चुके थे. बंटवारे के बाद दो देश बने- भारत और पाकिस्तान. वह बंटवारा अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की मांग थी.


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जिन्ना ने 1940 में कहा था, 'भारत का बंटवारा, मेरी राय में, भारत के मुसलमानों के भविष्य के इतिहास में एक मील का पत्थर होगा.' लेकिन वही जिन्ना 1946 में एक अखंड भारत को स्वीकार करने को तैयार थे - जिसमें पाकिस्तान नहीं था. ऐसा कैसे हुआ? जिन्ना ने अंग्रेजों के उस प्लान पर हामी भरी थी, जिससे न तो आजादी के बाद देश का नक्शा बदलता, न ही पाकिस्तान का वजूद होता.


अंग्रेजों को भागने की जल्दी दी, भेजा कैबिनेट मिशन


अगस्त 1945 में दूसरा विश्‍व युद्ध खत्म होते-होते ब्रिटिश साम्राज्य की कमर टूट चुकी थी. अंग्रेजों में अब भारत का प्रशासन चलाने की ताकत नहीं थी, वह जल्द से जल्द देश छोड़कर जाना चाहते थे. उनके जाने के बाद क्या व्यवस्था होगी, यह तय करने के लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने तीन सदस्यों के एक कैबिनेट मिशन को भारत भेजा.


भारत के लिए राज्य सचिव, लॉर्ड फ्रेडी पेथिक-लॉरेंस, उस मिशन के मुखिया थे, लेकिन बस नाम के. मिशन में सबसे बड़ा नाम तो सर स्टैफोर्ड क्रिप्स का था. 1942 में क्रिप्स की ऐसी ही एक कोशिश नाकाम रही थी. मिशन के तीसरे सदस्य के रूप में एडमिरल्टी के फर्स्ट लॉर्ड, एवी अलेक्जेंडर को चुना गया.


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ब्रिटिश हुकूमत से छुटकारे के दो प्लान


मार्च में भारत आए मिशन ने 10 अप्रैल तक दो योजनाएं बनाई. अंग्रेज चाहते थे कि भारत के नेता उनकी पहली योजना ही मान लें. किसी सूरत में अगर वे प्लान A पर राजी नहीं होते तो प्लान B को आखिरी विकल्प की तरह रखा गया था. पहली योजना यह थी कि हिंदू-बहुसंख्यक, मुस्लिम-बहुसंख्यक और रियासतों का एक लचीला संघ बनाया जाए.


यह सरकार का तीन लेवल वाला सिस्टम था. सबसे ऊपर में छोटी सी केंद्रीय 'संघ' सरकार थी, जो संचार, रक्षा और विदेशी मामलों को देखती. केंद्र सरकार में हिंदुओं और मुसलमानों का समान प्रतिनिधित्व था. सबसे नीचे अलग-अलग प्रांत थे. सरकार के दूसरे लेवल पर उन प्रांतों के समूह थे जिनके पास भविष्य में संघ से अलग होने की काफी ज्यादा स्वायत्तता और ताकत थी.


एक समूह में सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत शामिल थे. दूसरे में बंगाल और असम शामिल थे. और तीसरे में बाकी भारत शामिल था. अंग्रेजों की दूसरी योजना थी कि भारत को 'हिंदुस्तान' और एक छोटे पाकिस्तान में बांटा जाए. लेकिन ब्रिटेन इसे किसी भी कीमत पर टालना चाहता था.


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 अंग्रेजों के प्लान A पर राजी थे जिन्ना


मई 1946 में, कैबिनेट मिशन शिमला पहुंचा. सभी प्रांतों के प्रतिनिधि बुलाए गए. मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच तल्खी काफी ज्यादा थी. शुरुआती बातचीत में ही जिन्ना ने अब्दुल कलाम आजाद से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया. जिन्ना ने आजाद और उन्हें हिंदुओं का 'कठपुतला' बताया. आखिरकार शिमला सत्र को बंद घोषित कर दिया. बात आगे नहीं बढ़ सकी थी लेकिन एक बयान जारी किया गया.


पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना

अंग्रेजों ने 11 प्रांतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक संविधान सभा के निर्माण की घोषणा की जो एक नया संविधान तैयार करेगी. उन्होंने प्लान A का ड्राफ्ट भी बना लिया, जिसमें पाकिस्तान के बनने का खुले तौर पर विरोध किया गया. अंग्रेजों ने यह साफ कर दिया कि अगर पाकिस्तान बना तो वह पंजाब और बंगाल का एक छोटा हिस्सा भर होगा. गेंद अब जिन्ना और कांग्रेस के पाले में थी.


6 जून, 1946 को जिन्ना ने प्लान A पर हामी भर दी. हालांकि, इससे जिन्ना को अभी पाकिस्तान नहीं मिलने वाला था, लेकिन भविष्य में संघ छोड़ने का प्रावधान हमेशा मौजूद था. हालांकि, जिन्ना को यह नहीं पता था कि दो साल में उनकी मृत्यु हो जाएगी.


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देश भर में भड़काए गए दंगे


शुरू में, महात्मा गांधी को भी यह योजना ठीक लगी. लेकिन फिर कांग्रेस ने अपना रुख बदल दिया. जिन्ना अपनी जमीन लेकर अलग हो जाएं, और भारत एक मजबूत, एकजुट देश होगा जिसमें एक शक्तिशाली संघ होगा, उसका अपना संविधान होगा, उसका अपना धर्मनिरपेक्ष दर्शन होगा. लीग और कांग्रेस, दोनों ही अपने रुख पर अड़ गए.


16 अगस्त 1946 को जिन्ना ने 'डायरेक्ट एक्शन' का ऐलान किया. अलग मुस्लिम देश की मांग को लेकर गैर-मुसलमानों और उनके नेतृत्व को डराने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया. एक दंगे के बाद दूसरा दंगा भड़का. जो बीच उस हिंसा ने बोया, वह  14-15 अगस्त 1947 को देश के बंटवारे की फसल के रूप में सामने आया.