Partition Horrors: आजादी से एक दिन पहले देश को सहना पड़ा बंटवारे का दंश, 14 अगस्त 1947 को दिल्ली में क्या हो रहा था?
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Partition Horrors: आजादी से एक दिन पहले देश को सहना पड़ा बंटवारे का दंश, 14 अगस्त 1947 को दिल्ली में क्या हो रहा था?

Partition Horrors Remembrance Day: 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी की घोषणा से एक दिन पहले 14 अगस्त, 1947 को क्या हो रहा था? जिसने आजादी हासिल करने की खुशी में पलीता लगाने का काम किया था. भारत विभाजन का दंश और भीषण रक्तपात की वेदना के बीच राजधानी दिल्ली में पाकिस्तान से आ रहे लुटे-पिटे हिंदू और सिख शरणार्थियों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी.

Partition Horrors: आजादी से एक दिन पहले देश को सहना पड़ा बंटवारे का दंश, 14 अगस्त 1947 को दिल्ली में क्या हो रहा था?

Vibhajan Vibhishika Smriti Diwas 2024:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के अवसर पर देश के बंटवारे के दौरान जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की. उन्होंने कहा कि आज के दिन वह राष्ट्र में एकता और भाईचारे के बंधन की रक्षा करने की अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराते हैं. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर, हम उन अनगिनत लोगों को याद करते हैं जो विभाजन की भयावहता के कारण प्रभावित और पीड़ित हुए.' 

2021 में शुरू हुआ विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस 

साल 2021 में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान पीएम मोदी ने 14 अगस्त को हर साल विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस ((Partition Horrors Remembrance Day) के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी. लगातार तीसरे साल मनाए जा रहे इस खास दिन को लेकर आम लोगों के बीच अब भी सवाल उठते हैं कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी से एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को आखिर क्या हो रहा था? आइए, इसके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं.

10 मई 1857 से 15 अगस्त 1947 तक स्वतंत्रता संघर्ष

देश में एक तरफ 10 मई 1857 से शुरू होकर 15 अगस्त 1947 को पूरा होने वाले स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का सपना साकार हो रहा था. देश में आजादी हासिल करने की खुशी थी तो दूसरी ओर भारत विभाजन और भीषण रक्तपात की घटनाओं से सबका मन दुखी हो रहा था. पाकिस्तान से ट्रेनों में भरकर आ रहे लुटे-पिटे हिंदू और सिख शरणार्थियों की बेतहाशा भीड़ दिल्ली में लगातार बढ़ रही थी. सांप्रदायिक तनाव चरम पर था. शांति की सरकारी कोशिशें नाकाम साबित हो रही थी.

आजादी से पहले भारत का बेहद दर्दनाक बंटवारा

ब्रिटेन की संसद में 4 जुलाई 1947 को पेश भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को बहस के बाद 18 जुलाई 1947 को मंजूर किया गया था. इसी के आधार पर 14 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन कर दिया गया और करोड़ों भारतीय लोगों को विभाजन का भीषण दंश झेलना पड़ा. आंकड़ों के मुताहिक भारत विभाजन के दौरान सांप्रादियक हिंसा में करीब 10 लाख लोग मारे गए. वहीं, लगभग 1.46 करोड़ लोगों को अपना बेघर होना पड़ा था. 50 हजार से ज्यादा महिलाओं के बलात्कार की घटनाएं सामने आई थी.

भारत विभाजन के बुरे असर का आंखों देखा हाल

इतिहासकार एलन कैंपबेल-जोहानसन ने भारत विभाजन को लेकर अपने आर्टिकल में लिखा है कि मानव इतिहास में धर्म आधारित सबसे बड़े विस्थापन में भारत के दो बड़े राज्य पंजाब और बंगाल में करीब 10 करोड़ लोगों का सामान्य जीवन बुरी तरह तहस-नहस हो गया था. आजादी के पांच दिन बाद ही लिखे गए इस लेख में एलन कैंपबेल-जोहानसन ने दो लाख लोगों को शरणार्थी शिविरों में होने का आंकड़ा दिया है. लेखक को उनकी नारकीय हालात देखकर डर लगा था कि कहीं हैजे की महामारी फैल कर हजारों लोगों को लील न जाए.

भारत विभाजन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और प्रक्रिया

इतिहासकारों के मुताबिक, भारत विभाजन की पूरी पृष्ठभूमि को 20 फरवरी 1947 को ही तैयार कर लिया गया था. ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में ऐलान कर दिया था कि उनकी सरकार 30 जून 1948 से पहले भारतीय नेताओं को स्थानीय सत्ता सौंप देगी. हालांकि, लॉर्ड माउंटबेटन ने इस पूरी प्रक्रिया को तय डेडलाइन से एक साल पहले ही पूरा कर लिया था. सत्ता हस्तांतरण की मंजूरी लेकर माउंटबेटन 31 मई 1947 को लंदन से नई दिल्ली लौटे.

भारत की स्वतंत्रता और विभाजन पर लगभग सहमति

इसके बाद दो जून 1947 को हुई ऐतिहासिक बैठक में भारत की स्वतंत्रता और विभाजन दोनों मुद्दे पर लगभग सहमति बन गई. इसके बाद चार जून 1947 को आयोजित ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में माउंटबेटन ने ब्रिटिश सरकार की ओर से तय समय से एक साल पहले ही भारत की सत्ता भारतीय नेताओं को सौंपने का ऐलान कर दिया. इस प्रेस कांफ्रेंस में पूछा गया सबसे बड़ा सवाल भारत विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर होने वाले आम लोगों के पलायन और विस्थापन से जुड़ा था.

हालांकि, सवालों का गोलमोल जवाब देते हुए लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की आजादी और बंटवारे के लिए 14/15 अगस्त की तारीख मुकर्रर कर दी. अचानक लिए गए इस फैसले पर अमल के लिए आखिरकार ब्रिटिश पार्लियामेंट में 18 जुलाई को भारत का स्वतंत्रता अधिनियम 1947 पारित करना पड़ा था.

भारतीय ज्योतिषियों के सामने झुका आखिरी वायसराय

डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस की किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' के हिंदी अनुवाद 'आधी रात को आजादी" में इस बारे में विस्तार से बताया गया है. उन्होंने लिखा है कि आखिर 15 अगस्त से एक दिन पहले 14 अगस्त की आधी रात को ही क्यों भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया. माउंटबेटन को देश के विभाजन और पाकिस्तान निर्माण की घोषणा क्यों करनी पड़ी. किताब में बताया गया है कि 'वायसराय लॉर्ड लुइस माउंटबेटन को भारतीय ज्योतिषियों के आग्रह के सामने झुकना पड़ा था.' 

'किसी को ब्रिटिश हुकूमत की बू आए- ऐसी बात न करें' 

ज्योतिषियों ने ग्रह-नक्षत्र की स्थितियों की गणना करने के बाद 14 अगस्त को 15 अगस्त से ज्यादा अच्छा समय बताया था. स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बनाए गए ब्रिटेन के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने नौजवान प्रेस सलाहकार एलन कैंपबेल-जोहानसन को दूसरी कई जिम्मेदारियों के साथ ही इन अहम मुद्दों पर ज्योतिषियों से मशविरा कर लेने की जिम्मेदारी भी सौंपी थी. माउंटबेटन ने अपने मातहत सभी कर्मचारियों को सख्त चेतावनी दी कि किसी भी भारतीय से ऐसी बात नहीं की जाए जिससे उन्हें गलती से भी ब्रिटिश हुकूमत की बू आए.

यूनियन जैक को उतारकर लहराया जाने लगा था तिरंगा

डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस अपनी किताब में 14 अगस्त 1947 के ऐतिहासिक दिन का चित्रण करते हुए लिखते हैं- 'सैन्य छावनियों, सरकारी कार्यालयों, निजी मकानों वगैरह पर फहराते यूनियन जैक को उतारा जाना शुरू हो चुका था. 14 अगस्त को जब सूरज डूबा तो देश भर में यूनियन जैक ने ध्वज-दंडों का त्याग कर दिया, ताकि वह चुपके से भारतीय इतिहास के भूतकाल की एक चीज बन कर रह जाए. समारोह के लिए आधी रात को सभा भवन पूरी तरह तैयार था. जिस कक्ष में भारत के वायसरायों की भव्य ऑयल-पेंटिंग्स टंगी रहा करती थीं, वहां अब अनेक तिरंगे झंडे शान से लहरा रहे थे.'

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देश के शहर-शहर, गांव-गांव में आजादी पाने का जश्न शुरू

उन्होंने इस बारे में आगे लिखा है, "14 अगस्त 1947 की सुबह से ही देश के शहर-शहर, गांव-गांव में आजादी पाने का जश्न शुरू हो गया था. दिल्ली के वाशिंदे घरों से निकल पड़े थे. साइकिलों, कारों, बसों, रिक्शों, तांगों, बैलगाड़ियों, यहां तक हाथियों-घोड़ों पर भी सवार होकर लोग दिल्ली के केंद्र यानी इंडिया गेट की ओर चल पड़े. लोग नाच-गा रहे थे, एक-दूसरे को बधाइयां दे रहे थे और हर तरफ राष्ट्रगान की धुन सुनाई पड़ रही थी.'

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