15 August 1947: 78वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न और हर घर तिरंगा अभियान के बीच यह जानना जरूरी है कि आम धारणा के उलट देश की आजादी के बाद हमारा राष्ट्रीय ध्वज पहली बार लाल किले पर नहीं फहराया गया था. आइए, जानते हैं कि स्वतंत्र भारत में पहली बार आधिकारिक तौर पर तिरंगा कहां फहराया गया था?
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Tricolor before Red Fort: देश अपनी आजादी के 77 साल पूरा कर 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार 11वीं बार लाल किले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराकर देश को संबोधित करेंगे. इसके पहले पीएम मोदी ने 'हर घर तिरंगा' अभियान को बढ़ावा देने के लिए अपने सोशल मीडिया अकाउंट की डिस्प्ले तस्वीर को भी तिरंगे में बदल दिया और लोगों से भी ऐसा करने की अपील की.
आजादी के बाद पहली बार लाल किले पर नहीं फहराया गया था तिरंगा
देश में हर ओर तिरंगे के बीच यह जानकर हैरत होगी कि आम धारणा के उलट देश की आजादी के बाद हमारा राष्ट्रीय ध्वज पहली बार लाल किले पर नहीं फहराया गया था. आइए, जानते हैं कि स्वतंत्र भारत में पहली बार आधिकारिक तौर पर तिरंगा कहां फहराया गया था? इतिहासकारों के मुताबिक, देश की आजादी की घोषणा के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पहली बार राजधानी नई दिल्ली में इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में तिरंगा फहराया था.
लॉर्ड माउंटबेटन की बेटी पामेला माउंटबेटन ने लिखा वाकया
14 अगस्त, 1947 को संविधान सभा के मध्यरात्रि सत्र में अंतरिम गवर्नर-जनरल का पद लुईस माउंटबेटन को देने का निर्णय लिया गया था. इस बारे में लुईस माउंटबेटन की बेटी पामेला माउंटबेटन ने लिखा, "समारोह (असेंबली बिल्डिंग में) के बाद वे कुछ समय तक दरवाजे से बाहर नहीं निकल सके क्योंकि भीड़ अभी भी बहुत अधिक थी." अगले दिन, 15 अगस्त, 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल के रूप में शपथ लेने के बाद नेहरू के साथ रोशनआरा बाग में जुटे 5,000 बच्चों और उनके माता-पिता से मिलने गए थे.
लॉर्ड लुईस माउंटबेटन ने की पंडित नेहरू की जमकर तारीफ
इसके बाद प्रिंसेस पार्क में मुख्य कार्यक्रम की योजना बनाई गई. नेहरू को यूनियन जैक उतारना था और तिरंगा फहराना था. इसके बाद एक छोटी परेड होनी थी. हालांकि, अचानक योजना बदल दी गई थी. लॉर्ड लुईस माउंटबेटन (25 जून, 1900- 27 अगस्त, 1979) ने पंडित नेहरू की तारीफ में इस बात की चर्चा की है. 'फिलिप ज़िग्लर माउंटबेटन: आधिकारिक जीवनी' (कोलिन्स, 1985) में उनके हवाले से इस बात का विस्तार से जिक्र किया गया है.
14 अगस्त की आधी रात को 'द ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' भाषण
किताब में 15 अगस्त को जश्न मनाती जनता की पंडित नेहरू को लेकर बढ़ी दीवानगी की चर्चा करते हुए लिखा है कि संविधान सभा वाली इमारत से प्रिंसेस पार्क तक पहुंचने में उन दोनों को कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. इसके पहले 14 अगस्त की आधी रात को ही पंडित नेहरू ने अपने प्रसिद्ध भाषण 'द ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' से संविधान सभा को परिभाषित किया था. पंडित नेहरू ने माउंटबेटन के शपथ ग्रहण के बाद लाल किले से पहले एक औपचारिक कार्यक्रम में उत्साही भीड़ से बचते हुए प्रिंसेस पार्क में तिरंगा फहराया था.
पंडित नेहरू को थी ब्रिटिश संवेदनशीलता की भी फिक्र
प्रिंसेस पार्क में ब्रिटिश संवेदनशीलता को ठेस नहीं पहुंचाने के लिए यूनियन जैक को उतारने की योजना को पंडित नेहरू स्थगित करना चाहते थे. माउंटबेटन के मुताबिक, "इस कार्यक्रम में मूल रूप से यूनियन जैक को औपचारिक रूप से उतारना शामिल था, लेकिन जब मैंने नेहरू के साथ इस पर चर्चा की तो वह इस बात से पूरी तरह से सहमत थे कि यह एक ऐसा दिन था जब हर कोई खुश रहे. अगर यूनियन जैक को उतारने से किसी भी संवेदनशीलता को ठेस पहुंचती है, तो वह ऐसा नहीं करना चाहते थे."
15 अगस्त को दिल्ली में 'पंडित माउंटबेटन की जय' के नारे
माउंटबेटन के नौजवान प्रेस सलाहकार एलन कैंपबेल-जोहानसन ने बाद में लिखा कि 15 अगस्त, 1947 के दिन दिल्ली की सड़कों पर 'जय हिंद', 'माउंटबैटन की जय' और कहीं-कहीं 'पंडित माउंटबैटन की जय' के नारे लग रहे थे. पामेला माउंटबेटन की 15 अगस्त 1947 की डायरी जो बाद में इंडिया रिमेम्बर्ड, लंदन: पवेलियन में भी इसका जिक्र किया गया है. वह लिखती हैं, "लोगों ने तालियां बजाईं और चिल्लाए... 'पंडित माउंटबेटन की जय, लेडी माउंटबेटन की जय... कुछ ने तो मुझे पहचान लिया और 'माउंटबेटन मिस साहिब' चिल्लाए."
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नेहरू ने 16 अगस्त को लाल किले पर फहराया था तिरंगा
इसके बाद नेहरू 16 अगस्त 1947 को ही लाल किले पर गये थे और वहां पर तिरंगा फहराया था. उन्होंने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण दिया और खुद को भारत का 'प्रथम सेवक' कहा था. भारत की स्वतंत्रता के आसपास इस तरह की कई घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि नेहरू समेत स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं का मानना था कि देश में औपनिवेशिक शासन का मतलब पूरी तरह से ब्रिटिश जाति का शासन नहीं था.
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