लखनऊ: अंतर-धार्मिक विवाह (Inter-Faith Marriages) में आने वाली रुकावटों को दूर करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के नियमों में बदलाव किया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी के लिए 30 दिन की नोटिस के नियम को वैकल्पिक करार दिया है.


कोर्ट ने बताया निजता के अधिकार का उल्लंघन


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इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने विशेष विवाह अधिनियम 1954 में विवाह से पहले 30 दिन की नोटिस को स्वतंत्रता और निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया है. यह फैसला जस्टिस विवेक चौधरी की एकल पीठ ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पारित किया.


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अधिकारी मांग सकता है इनका सबूत


कोर्ट ने कहा कि अब नोटिस वैकल्पिक होगा और शादी करने आए कपल के अनुरोध पर ही मैरिज अफसर नोटिस का प्रकाशन करेगा अन्यथा विवाह तुरंत कराना होगा. हालांकि कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मैरिज अफसर शादी करने आए युगल के परिचय, आयु, सहमति आदि के बारे में सबूत मांग सकता है.


कोर्ट ने इस केस में दिया फैसला


हाई कोर्ट में अभिषेक कुमार पांडे नाम के शख्स ने एक याचिका दायर की थी और कहा था, 'साफिया सुल्ताना नाम की लड़की ने हिंदू धर्म अपनाकर उनसे शादी की. इसके साथ ही उसने अपना नाम बदलकर सिमरन कर लिया, लेकिन इससे उनके पिता खुश नहीं हैं और जबरन मेरी पत्नी को कैद कर रखा है. इसके बाद कोर्ट के आदेश पर सिमरन के पिता कोर्ट में हाजिर हुए और शादी को मंजूरी दे दी.


कोर्ट ने इस केस में लिया संज्ञान


सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 दिन की नोटिस वाले नियम पर संज्ञान लिया और इसे वैकल्पिक करार दिया. कोर्ट ने पाया कि स्पेशल मैरिक एक्ट के तहत अधिकांश कपल बचते हैं, क्योंकि इसके तहत 30 दिन की नोटिस का प्रकाशन कराने का प्रावधान है, ताकि यदि किसी को आपत्ति है तो विवाह अधिकारी को बता सके.


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