Constitution on Name Change: पसंद का नाम रखने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा, पसंद का नाम रखने का अधिकार भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों के दायरे में आता है. जस्टिस अजय भनोट ने समीर राव की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. 


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दरअसल, कानूनी प्रक्रिया अपनाकर शाहनवाज ने अपना नाम बदलकर मोहम्मद समीर राव कर लिया था. उसने सितंबर-अक्टूबर 2020 में अखबार में इसे लेकर विज्ञापन दिया था.अब शिक्षा से जुड़े दस्तावेजों में नाम में बदलाव के लिए उसने यूपी बोर्ड में आवेदन किया. यूपी बोर्ड से इस शख्स ने साल 2013 में 10वीं और 2015 में 12वीं की परीक्षा पास की थी. 


लेकिन यूपी के बरेली में माध्यमिक शिक्षा परिषद के क्षेत्रीय सचिव ने नाम बदलने वाला आवेदन खारिज करते हुए नया सर्टिफिकेट भी जारी करने से इनकार कर दिया.  इस फैसले को  समीर राव ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, पसंद का नाम रखने या नाम बदलने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (अ), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के दायरे में आता है.


हाईकोर्ट ने कहा, अधिकारियों ने मनमाने तरीके से नाम बदलने के आवेदन को खारिज कर दिया और कानून में खुद को गलत तरीके से पेश किया. अधिकारियों की कार्रवाई अनुच्छेद 19 (1) (ए), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.


फैक्ट्स के मुताबिक, माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 2013 और 2015 में जो हाई स्कूल एग्जाम सर्टिफिकेट और इंटरमीडिएट एग्जाम सर्टिफिकेट में याचिकाकर्ता का नाम  शाहनवाज के रूप में दर्ज था. सितंबर-अक्टूबर 2020 में, उसने सार्वजनिक रूप से अपना नाम शाहनवाज से बदलकर मोहम्मद समीर राव करने का खुलासा किया.


इसके बाद, उसने 2020 में बोर्ड में अपना नाम शाहनवाज से बदलकर एमडी समीर राव करने के लिए आवेदन किया. 24 दिसंबर, 2020 को इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था.


(इनपुट-IANS)