Amartya Sen: कौन हैं अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन, जिन्हें 1998 में मिला था अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार
Amartya Sen: भारत के मशहूर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन से अर्थशास्त्र में ऐसा परचम लहराया कि पूरी दुनिया चकित रह गई. आइए अमर्त्य सेन के बारे में जानते हैं. खास बात यह भी है कि अमर्त्य सेन शुरुआत में संस्कृत, मैथ और फिजिक्स में भी रूचि रखते थे, लेकिन बाद में उनकी रुचि अर्थशास्त्र में हुई.
Nobel Prize Winner: इन दिनों नोबेल पुरस्कारों की घोषणा हो रही है. विभिन्न क्षेत्रों में चमत्कारिक कार्य करने वाले लोंगों को नोबेल पुरस्कार दिया जाता है. ऐसे में आइए भारत की तरफ से 1998 में अर्थशास्त्र का नोबेल अवार्ड जीतने वाले अमर्त्य सेन के बारे में जान लेते हैं. इसी बीच हाल ही में अमर्त्य सेन के निधन की भी अफवाह उड़ी लेकिन उनकी बेटी ने इस खबर का खंडन किया और कहा वे पूरी तरह से स्वस्थ हैं. अमर्त्य सेन का जन्म साल 1933 में कोलकाता में हुआ था. उनकी शिक्षा कोलकाता के शांतिनिकेतन, ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’ तथा कैंब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज से पूर्ण हुई. अमर्त्य सेन इस समय हावर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया है. उनको 1998 में इकोनॉमी साइंस में वेलफेयर इकोनॉमिक्स और सोशल च्वाइस थ्योरी में योगदान के लिए नोबेल अवार्ड दिया गया था.
अकाल ने उनके मन पर गंभीर असर डाला
दरअसल, कोलकाता में जन्में अमर्त्य सेन शुरुआती दिनों में संस्कृत, मैथ और फिजिक्स में रूचि रखते थे, लेकिन बाद में उनकी रुचि अर्थशास्त्र में हुई. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक 1943 में बंगाल में आए भयंकर अकाल ने उनके मन पर गंभीर असर डाला था. उन्होंने इस अकाल को बचपन में अपनी आंखों से देखा था, जिसमें लाखों लोगों की मौत हो गई थी. इसका प्रभाव ऐसा पड़ा कि उन्होंने बड़े होकर गरीबी और भूख पर बहुत काम किया.
उम्र के इस पड़ाव पर भी क्लास लेते रहते हैं
अमर्त्य सेन ने 1953 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया और फिर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से उन्होंने पीएचडी की थी. उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से साल 1955 में बीए , 1959 में एमए और पीएचडी की डिग्नी हासिल की. सेन ने जादवपुर (1956-58) और दिल्ली विश्विद्यालय (1963-71), लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित भारत और इंग्लैंड के कई विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र पढ़ाया. वे अभी भी उम्र के इस पड़ाव पर भी हॉवर्ड विश्वविद्यालय में कई क्लास लेते रहते हैं.
1998 में नोबेल प्राइज से नवाजा गया
अमर्त्य सेन ने अर्थशास्त्र को अपना विषय बनाया. उन्होंने गरीबी को मापने के तरीके भी तैयार किए , जो गरीबों के लिए आर्थिक स्थितियों में सुधार के लिए उपयोगी जानकारी देते थे. सेन की असमानता पर थ्योरी वर्क को काफी सराहना मिली थी, जिसमें उन्होंने ये बताया कि कुछ गरीब देशों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम संख्या में क्यों हैं. जबकि ऐसे देशों में महिला शिशु ज्यादा पैदा होती हैं. फिर 1998 में सेन को इकोनॉमी साइंस में वेलफेयर इकोनॉमिक्स और सोशल च्वाइस थ्योरी में उनके योगदान के लिए नोबेल प्राइज से नवाजा गया.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में अमर्त्य सेन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है. अमर्त्य सेन ने महालनोविस के द्विव - विभागीय कमियों को दूर करने के लिये चार विभागों वाला एक वैज्ञानिक मॉडल प्रस्तुत किया जिसे ‘राज-सेन मॉडल’ के नाम से जाना जाता है. इस मॉडल को उन्होंने प्रोफेसर के.एन. राज के साथ मिलकर तैयार किया था. उन्होंने एक तरफ संवृद्धि की आवश्यकता पर बल दिया, तो वहीं बेरोज़गारी उन्मूलन को प्राथमिकता देने की बात कही. सेन के अनुसार भारत जैसे देश में गरीबी उन्मूलन के लिये ज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को समुचित संस्थानिक प्रोत्साहन तथा उत्पादन के कारकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.