दिल्ली हिंसा पर Amnesty International India की आई रिपोर्ट
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने एक नया जांच ब्यौरा बनाते हुए कहा कि हिंसा में दिल्ली पुलिस के जवान न सिर्फ शामिल थे बल्कि उन्होंने इस हिंसा में सक्रिय रूप से हिस्सा भी लिया था, लेकिन इसके सबूत होते हुए भी कोई जांच शुरू नहीं की गई.
नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में हुए दंगों (Delhi Riots) के छह महीनों बाद भी, मानवाधिकार उल्लंघनों पर दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की गैर-जवाबदेही जारी है. इसी के चलते एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया (Amnesty International India) ने जांच का एक नया ब्यौरा देते हुए कहा कि हिंसा में दिल्ली पुलिस के जवान न सिर्फ शामिल थे बल्कि उन्होंने इस हिंसा में सक्रिय रूप से हिस्सा भी लिया था, लेकिन इसके सबूत होते हुए भी कोई जांच शुरू नहीं की गई.
नई जमीन-स्तरीय जांच में हुआ खुलासा
गौरतलब है कि 23 से 29 फरवरी के बीच दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में हुए दंगों में 50 से अधिक लोगों की जान चली गई थी, जिनमें से अधिकांश मुसलमान थे. इसके अलावा 500 से अधिक लोग घायल भी हुए थे. 50 दंगा पीड़ितों, चश्मदीद गवाहों, वकीलों, डॉक्टरों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों से बात करने और उपयोगकर्ताओं द्वारा रिकॉर्ड करके सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो का विश्लेषण करने के बाद, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की इस नई जमीन-स्तरीय जांच ने दंगे के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघनों के एक चिंताजनक पैटर्न का दस्तावेजीकरण किया है.
दंगाइयों के साथ हिंसा में शामिल थी दिल्ली पुलिस
इन उल्लंघनों में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों द्वारा दंगाइयों के साथ हिंसा में शामिल होना, हिरासत में कैदियों को प्रताड़ित करना, प्रदर्शनकारियों पर अत्यधिक बल का उपयोग करना, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले विरोध स्थलों को तोड़ा जाना और दंगाइयों द्वारा की जा रही हिंसा को देखने के बावजूद मूकदर्शक बने रहना आदि शामिल है.
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संदेह में घेरे में दिल्ली पुलिस की भूमिका
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा कि फरवरी में दिल्ली में हुए दंगों से प्रभावित लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में पहला कदम दिल्ली पुलिस को मिली उस दण्डमुक्ति को खत्म करना है, जो उन्हें जवाबदेह ठहराए जाने के आड़े आती है. छह महीने बाद भी, दिल्ली पुलिस की भूमिका की एक भी जांच नहीं हुई है. लगातार जारी यह राज्य-प्रायोजित दण्डमुक्ति, यह संदेश भेजती है कि कानून लागू करने वाले अधिकारियों को, गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन करने के बावजूद भी जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा. वे सभी कानूनों के परे हैं'.
भड़काऊ भाषणों से लेकर प्रदर्शनों के प्रति पक्षपात तक
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया का यह जांच ब्यौरा दंगों से पहले की घटनाओं का दस्तावेजीकरण करता है, और इसमें भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) सहित अन्य राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों और दिल्ली में विश्वविद्यालय परिसरों में पुलिस की बर्बरता का घटनाक्रम भी प्रस्तुत किया गया है. इसके बाद हुए दंगों को रोकने की दिशा में दिल्ली पुलिस की अपर्याप्त प्रतिक्रिया और हिंसा में उनकी सक्रिय भागीदारी का भी दस्तावेजीकरण किया गया. इसमें पीड़ितों को चिकित्सा सेवाओं से वंचित करना, हिंसा में भागीदारी, प्रदर्शनकारियों पर बल का अत्यधिक और मनमाना इस्तेमाल और प्रदर्शनों के प्रति पक्षपात शामिल है.
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दंगों के पैटर्न को दर्शाया
ब्यौरे में आगे, हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस द्वारा दंगा पीड़ितों और हिरासत में लिए गए लोगों के साथ यातना और दुर्व्यवहार का और फिर दंगा पीड़ितों और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को उत्पीड़ित करने और डराये-धमकाये जाने का एक साफ पैटर्न दर्शाया गया है. उपयोगकर्ताओं द्वारा सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो में देखे जाने वाले मानवाधिकार उल्लंघनों के सबूतों की विश्वसनीयता की पुष्टि करने के लिए, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने एमनेस्टी इंटरनेशनल की क्राइसिस एविडेंस (संकट साक्ष्य) लैब का सहयोग लिया. यह लैब अत्याधुनिक, ओपन-सोर्स और डिजिटल जांच उपकरणों के ज़रिये, गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों का विश्लेषण और उनकी पुष्टि करने का काम करती है. क्राइसिस एविडेंस लैब ने वीडियो के समय, तिथि और स्थान की पुष्टि करके इन वीडियो को प्रमाणित किया. इसके अलावा, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने उन स्थानों का दौरा किया जहां यह वीडियो रिकॉर्ड किए गए थे और वहां मौजूद चश्मदीद गवाहों और पीड़ितों से भी बात की.
घायलों को राइफलों से कोंचते नजर आए पुलिस अधिकारी
एमनेस्टी इंटरनेशनल की क्राइसिस एविडेंस लैब द्वारा किये गए विश्लेषण में शामिल कई वीडियो में से एक वीडियो में, दिल्ली पुलिस अधिकारियों को 24 फरवरी के दिन, पांच घायल लोगों को लात मारते और पीटते हुए, उन्हें राइफलों से कोंचते हुए और भारत के राष्ट्रगान को गाने के लिए कहते हुए देखा जा सकता है. वीडियो के रिकॉर्ड किए जाने के बाद, पांचों लोगों को पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया. इसमें से एक घायल शख्स फैजान को पुलिस ने बिना किसी आरोप के करीब 36 घंटे तक हिरासत में रखा. और हालत बिगड़ने पर उसे उसकी मां को सौंप दिया गया.
1984 के जैसे ही हुआ नरसंहार
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने गृह मंत्रालय से मांग की है कि दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघनों के सभी आरोपों और राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों की त्वरित, विस्तृत, पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए. दिल्ली में, पिछले चार दशकों के दौरान दो बड़ी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं: 2020 के दंगे और 1984 का सिख नरसंहार. दोनों हिंसक घटनाओं के बीच एक साझा कड़ी है- दिल्ली पुलिस द्वारा हिंसा के दौरान किए गए मानवाधिकार उल्लंघन. इस तरह के उल्लंघनों की पुनरावृत्ति, दण्डमुक्ति के माहौल की ओर इशारा करती है. दण्डमुक्ति का यह माहौल, अपने भाषणों में हिंसा की वकालत करने वाले राजनेताओं और हिंसा को रोकने में नाकाम रहने वाली पुलिस को यह संदेश भेजता है कि गहन मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए, भविष्य में भी उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा. पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों को न्याय दिलाने के लिए इस दण्डमुक्ति को खत्म किए जाने की जरूरत है और इसे खत्म किया जाना ही चाहिए'.
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