Article 370 हटने के बाद 4 साल में कितना बदला जम्मू-कश्मीर, ये 5 तस्वीरें हैं सबसे बड़ा सबूत
Article 370 Removal: कश्मीर में अनुच्छेद 370 (Article 370) हटे चार साल बीत गए हैं. ऐसे में कश्मीर के हालात कितने बदले हैं ये बड़ा सवाल है. इस बीच, करीब तीन दशक बाद श्रीनगर में मुहर्रम का जुलूस निकाला गया जो ऐतिहासिक है. आइए कश्मीर में आए बदलावों के बारे में जानते हैं.
Article 370 Abrogation: आज 5 अगस्त है और ये तारीख अपने आप में बेहद खास है क्योंकि चार साल पहले इसी दिन मोदी सरकार ने संसद में कानून लाकर आर्टिकल 370 (Article 370) को रद्द कर दिया था. धारा 370 को लेकर सियासत भी होती रही है. एक वर्ग सरकार के इस कदम को असंवैधानिक बताता रहा है और जम्मू कश्मीर की कई पार्टियां धारा 370 को दोबारा बहाल किए जाने की मांग भी करती रही हैं. लेकिन सरकार का दावा है कि इन चार साल में कश्मीर में कई बड़े बदलाव आए हैं और अब कश्मीर आतंकवाद और अलगाववाद की विचारधारा को छोड़ तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ा है.
आर्टिकल 370 हटने के बाद क्या-क्या बदला?
ये श्रीनगर के ऐतिहासिक लालचौक की तस्वीर हैं और इसमें आप लालचौक को तिरंगे के रंग में रंगा देख सकते हैं. कुछ वर्ष पहले लालचौक में तिरंगा लहराने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था और वहां खुलेआम पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते थे. ये तस्वीर दिखाती हैं कि पांच अगस्त 2019 के बाद कश्मीर में कुछ तो बदला है. सरकारी दावों के अनुसार अब मानें तो घाटी पहले से ज्यादा सुरक्षित हुई है और अब वहां आतंकवादी घटनाओं में तो कमी आई ही है, पत्थरबाजी की घटनाएं भी न के बराबर हो गई हैं.
आतंकवादियों का हुआ सफाया
जम्मू-कश्मीर पुलिस के DATA के अनुसार 5 अगस्त 2019 से 31 जुलाई 2023 तक जम्मू-कश्मीर में 683 आतंकवादी मार गिराए गए हैं. हालांकि इस दौरान सुरक्षा बल के 148 जवान भी शहीद हुए, जबकि 127 आम लोगों ने भी जान गंवाई. इस वर्ष अब तक 38 आतंकवादी ढेर किए जा चुके हैं, जबकि सुरक्षा बल के 13 जवान शहीद हुए और 9 नागरिकों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी.
सुरक्षा के लिहाज से बेहतर हुए हालात
जम्मू कश्मीर पुलिस के अनुसार, आर्टिकल 370 हटाए जाने के अगले तीन वर्षों तक यानी वर्ष 2020, 2021 और 2022 में बड़े पैमाने पर आतंकवादी विरोधी अभियान चलाए गए. जिसकी वजह से आतंकवाद का ग्राफ काफी कम हो चुका है और अब पुलिस को बड़े पैमाने पर ऑपरेशन नहीं करने पड़ रहे हैं. पुलिस के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2013 से 2019 तक जम्मू कश्मीर में 4,766 आतंकी वारदातें दर्ज हुईं थीं. लेकिन 5 अगस्त 2019 में धारा 370 हटने के बाद अब तक सिर्फ 738 आतंकी वारदातें दर्ज की गई हैं और इससे पता चलता है कि जम्मू कश्मीर में हालात बेहतर हुए हैं.
अब ना के बराबर होती है पत्थरबाजी
जम्मू-कश्मीर के डीजी दिलबाग सिंह ने कहा कि आर्टिकल 370 हटने के बाद हालात करीब 180 डिग्री बदल गए हैं. पहले बंद हुआ करते थे और अब स्कूल हमेशा 365 दिन खुले रहते हैं, बाजार देर शाम तक खुले रहते हैं. यहां तक कि रात्रि जीवन भी शुरू हो गया है. सरकार जम्मू कश्मीर को पटरी पर लाने में मदद के लिए कश्मीर के स्थानीय लोगों को श्रेय देती है. अब अगर कोई अप्रिय घटना घटती है तो सबसे पहले आम लोग ही इसकी निंदा करते हैं. आतंकवाद के मामलों में कमी आने के वजह से कश्मीर शांति की तरफ बढ़ा रहा है. श्रीनगर में इसी वर्ष G-20 की बैठक का आयोजन भी हुआ और दो दिवसीय बैठक का सफल आयोजन बताता है कि कश्मीर पहले से ज्यादा सुरक्षित है. आज जम्मू-कश्मीर के लोग खासकर युवा भी मानते हैं कि उनका प्रदेश सही रास्ते पर है.
बदली-बदली है कश्मीर की तस्वीर
ये घाटी में आए बदलाव की पहली तस्वीर थी. अब हम आपको एक दूसरी तस्वीर दिखाएंगे और ये तस्वीर बताती है कि घाटी में आतंकवाद के मामले तो कम हुए ही हैं. घाटी में अमन भी लौट रहा है. ये 26 जुलाई को श्रीनगर में निकाले गए मुहर्रम के जुलूस की तस्वीर हैं और ये तस्वीरें इसलिए खास हैं क्योंकि ये जुलूस पूरे तीस वर्ष बाद निकाला गया था. 80 का दशक खत्म होते होते जम्मू कश्मीर आतंकवाद की चपेट में आ चुका था. धार्मिक कट़्टरता और नफरत इतनी बढ़ चुकी थी कि कश्मीरी पंडित और हिंदू ही नहीं शिया समुदाय भी इससे नहीं बच पाया था. वर्ष 1990 में मोहर्रम के जुलूस पर हमला हो गया जिसके बाद इस रूट से मुहर्रम का जुलूस निकालने पर रोक लगा दी गई थी. कई सरकारें आईं और गईं लेकिन शियाओं को यहां से जुलूस निकालने की मंजूरी नहीं मिली.
लेकिन अब जब शिया मुसलमानों को तीस वर्ष बाद मुहर्रम का जुलूस निकालने का मौका मिला तो ये दिन उनके लिए भी खास बन गया. और ये बदलाव कितना अहम है, इसे महसूस करने के लिए आपको श्रीनगर से हमारी ये रिपोर्ट जरूर देखनी चाहिए.
आर्टिकल 370 हटने के बाद जब घाटी में आतंकवाद में कमी आई और शांति लौटी तो टूरिस्ट भी लौटने लगे. जम्मू कश्मीर में शांति लौटने का सबसे ज्यादा फायदा वहां की टूरिज्म इंडस्ट्री को ही हुआ है. और इसीलिए अब हम जम्मू कश्मीर में बदलाव की तीसरी तस्वीर का विश्लेषण करेंगे. क्योंकि बीते कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में सैलानी जम्मू कश्मीर पहुंचे हैं. सरकारी DATA के अनुसार, वर्ष 2021 में कुल 1 करोड़ 13 लाख सैलानी जम्मू कश्मीर आए थे. जबकि वर्ष 2022 में ये संख्या बढ़कर 1 करोड़ अठ्ठासी लाख तक पहुंच गई. और 2023 यानी इस वर्ष जून तक ही 1 करोड़ 27 लाख पर्यटक जम्मू कश्मीर आ चुके थे. इनमें 17 हजार विदेशी पर्यटक भी शामिल हैं.
सिर्फ यही नहीं धार्मिक टूरिज्म में भी काफी बढ़ोतरी हुई है और आंकड़ों के अनुसार अब तक चार लाख से भी ज्यादा टूरिस्ट अमरनाथ यात्रा के लिए कश्मीर पहुंच चुके हैं और ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है. आज हमने आपके लिए जम्मू कश्मीर के टूरिज्म पर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है और हम चाहते हैं कि आप हमारी ये रिपोर्ट देखें और इस बदलाव को खुद महसूस करें.
कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है. इस देश के एक बड़े वर्ग ने कश्मीर की इसी खूबसूरती को सिल्वर स्क्रीन के जरिए देखा और महसूस किया है यानी सिनेमा वो धागा है, जिसने सालों तक कश्मीर को देश के दूसरे हिस्सों से जोड़ कर रखा और आज हम DNA में कश्मीर और सिनेमा के इसी खूबसूरत रिश्ते का विश्लेषण करेंगे और आज आपको हमारा ये विश्लेषण जरूर देखना चाहिए.
अगर आप फिल्में देखने के शौकीन हैं, तो आपने वर्ष 1964 में आई शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की फिल्म कश्मीर की कली जरूर देखी होगी. डल झील पर फिल्माए गए इस फिल्म के गीत आज भी लोगों को कश्मीर और वहां की खूबसूरत वादियों की याद दिलाते हैं.
कश्मीर के दिलकश नजारे, हरी भरी वादियां, बर्फ से ढके पहाड़ और सुनहरे पत्तों से ढके चिनार के पेड़ हमेशा से ही फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को आकर्षित करते रहे हैं. हर निर्देशक की ख्वाहिश होती है कि वो एक बार कश्मीर में शूटिंग जरूर करे और इसीलिए भारतीय सिनेमा की कई बेहतरीन और कामयाब फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में की जा चुकी है. चाहे वो शम्मी कपूर और सायरा बानो की जंगली हो. ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया की सुपरहिट फिल्म बॉबी हो. सनी देओल की बेताब हो. इसी तरह हाइवे, राजी, हैदर और बजरंगी भाईजान जैसी फिल्मों में भी कश्मीर पूरी खूबसूरती के साथ किसी किरदार की तरह मौजूद है. सनी देओल की फिल्म बेताब के नाम पर तो यहां एक जगह का नाम भी है जिसे बेताब वैली कहा जाता है.
वर्ष 1960 के दशक में बॉलीवुड की 9 फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में हुई थी. 1970 के दशक में ये आंकड़ा बढ़कर 11 हो गया. 1980 के दशक में घाटी में 6 फिल्मों की ही शूटिंग हुई, क्योंकि ये दशक बीतते बीतते आतंकवाद कश्मीर में अपनी जड़े जमाने लगा था. और 1990 के दशक में जब आतंकवाद चरम पर था, तब ये आंकड़ा घटकर चार पर ही सिमट गया था. हालांकि वर्ष 2000 से 2010 के बीच वहां 15 फिल्मों की शूटिंग हुई. जबकि वर्ष 2010 से अब तक यानी करीब 12 साल में कुल 21 फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में हो चुकी है.
यानी 60 के दशक से शुरू हुआ कश्मीर और सिनेमा का ये खूबसूरत रिश्ता कई उतार चढ़ाव झेलने के बाद भी उतना ही मजबूत और ताजा बना हुआ है और आज ये विश्लेषण इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आज ये रिश्ता एक नई ऊंचाई हासिल करने वाला है. आज कश्मीर में एक बार फिर लाइट कैमरा और एक्शन की आवाजें गूंजने लगी हैं.
लेकिन जो कश्मीर फिल्मों की शूटिंग के लिए इतना मशहूर है. उसी कश्मीर में कुछ महीनों पहले तक एक सिनेमा हॉल तक नहीं था. यानी कश्मीर में बनी फिल्में पूरी दुनिया भर के सिनेमाघरों में भले ही देखी जाती हों, लेकिन इन्हें कश्मीर के लोग कश्मीर में ही नहीं देख पाते थे. हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था. वर्ष 1990 की शुरुआत तक कश्मीर में करीब 15 सिनेमा हॉल थे और यहां लोग फिल्में भी देखते थे. लेकिन 90 के दशक में आतंकवाद की शुरुआत के बाद कश्मीर घाटी के सभी सिनेमा हॉल एक एक कर बंद हो गए. वर्ष 1999 और 2000 के दौरान सरकार ने कुछ थियेटरों को फिर से खोलने का प्रयास भी किया. लेकिन सुरक्षा के कारणों से और कट्टरपंथियों के दबाव की वजह से इन्हे फिर से बंद करना पड़ा.
और तब से कश्मीर में एक भी ऐसा सिनेमा हॉल नहीं था जहां बैठ कर लोग अपने परिवार, अपने दोस्तों के साथ फिल्में देख सकें और मनोरंजन कर सकें. लेकिन आर्टिकल 370 को हटाए जाने के करीब 4 वर्ष के अंदर कश्मीर में सिनेमाघर की वापसी हो चुकी है. श्रीनगर के शिवपोरा इलाके में बना ये मल्टीप्लेक्स दरअसल कश्मीर 2.0 की नई तस्वीर है और ये तस्वीर बताती है कि आज कश्मीर कट्टरपंथियों की विचारधारा को खारिज कर चुका है और दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ने को तैयार है और सिनेमा उसके इसी सफर का हिस्सा है.
ये कश्मीर 2.0 की '70mm' वाली तस्वीर है. कश्मीर से आर्टिकल 370 की विदाई हुई तो फिल्म कल्चर की वापसी हो गई. अब कश्मीरी बड़े पर्दे पर फिल्में देखने के लिए कतार में लगे हैं. श्रीनगर का ये मल्टीप्लेक्स बदलते कश्मीर की सबसे ताजा तस्वीर है और इसके हाउसफुल हॉल इस बदलाव का सबसे बड़ा सबूत. श्रीनगर के इस इकलौते मल्टीप्लेक्स में तीन स्क्रीन हैं और हर स्क्रीन पर रोजाना चार शो चलाए जा रहे हैं और अच्छी बात ये है कि ज्यादातर शो हाउसफुल हैं. सिर्फ श्रीनगर ही नहीं, बल्कि कश्मीर के दूर दराज के इलाकों से भी लोग बड़े पर्दे पर फिल्म देखने सिनेमाघर पहुंच रहे हैं और इनमें बड़ी संख्या युवाओं की है.
वर्ष 1990 की शुरुआत तक कश्मीर में कई सिनेमाहॉल थे. लेकिन आतंकवाद की शुरुआत के बाद ये थियेटर चरमपंथियों और आतंकवादियों के निशाने पर आ गए. जल्दी ही सारे सिनेमाहॉल बंद हो गए और अब जब करीब 33 वर्ष बाद कश्मीर में बड़े पर्दे की वापसी हुई तो लोगों ने भी इसे हाथोहाथ लिया. सिर्फ सिनेमाघर ही नहीं खुला. कश्मीर की खूबसूरत घाटियों में एक बार फिर लाइट कैमरा एक्शन गूंजने लगा है. आर्टिकल 370 हटने के चार वर्षों के अंदर अब घाटी में 400 से ज्यादा फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. कश्मीर में कैमरे की वापसी से स्थानीय कलाकारों की किस्मत के दरवाजे भी खुल गए.
आपने कश्मीर और सिनेमा के इस कनेक्शन पर हमारी ये रिपोर्ट देखी और अब हम आपको कश्मीर में बदलाव की पांचवी तस्वीर का विश्लेषण करेंगे और ये तस्वीर तरक्की की तस्वीर है. बीते चार वर्षों में जम्मू और कश्मीर में बुनियादी ढांचे पर काफी काम हुआ है. दूरदराज के इलाकों की Connectivity बेहतर हुई है. रोड नेटवर्क में सुधार आया है. आंकड़े बताते हैं कि जम्मू कश्मीर में बीते तीन वर्षों में 6,912 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई हैं. ये सड़कें प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनाई गई हैं.
इस बदलाव को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आर्टिकल 370 हटाने से पहले यानी वर्ष 2018-19 में जम्मू कश्मीर में कुल 9,229 सरकारी Projects पूरे हुए थे, जबकि वर्ष 2022-23 में कुल 92,560 Projects पूरे किए गए यानी 10 गुने से ज्यादा. यही नहीं जम्मू कश्मीर में कुल 21 Tunnels पर काम चल रहा है, जिनके बनने से Connectivity और बेहतर होगी.
अब बात करते हैं Education sector में आए बदलाव की. वर्ष 2019 के बाद से जम्मू कश्मीर में कुल 53 नए Degree Colleges खोले गए जिसमें 2 Engineering Colleges भी शामिल हैं. यही नहीं जम्मू कश्मीर में IIT और IIM जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी खोले जा चुके हैं. इसके अलावा प्रदेश में 7 नए Medical Colleges, 2 Cancer Institutes और 15 Nursing Colleges को भी मंजूरी दी जा चुकी है. जिसमें 5 Medical Colleges और 11 Nursing Colleges पहले ही शुरू हो चुके हैं. इसके अलावा AIIMS Jammu और AIIMS Kashmir का काम भी जारी है.
वर्षों तक चली हिंसा का सबसे ज़्यादा नुकसान कश्मीर के युवाओं को ही हुआ है. पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी घाटी के युवाओं को आतंक के दलदल में धकेलते रहे हैं. उनके हाथों में पत्थर थमाते रहे हैं लेकिन अब कश्मीर का युवा उनके TRAP को समझ चुका है. और आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2022-23 में 60 लाख से भी ज्यादा युवा Sports Activities में शामिल हुए. जबकि वर्ष 2018-19 में इनकी संख्या सिर्फ 5 लाख थी. यानी आर्टिकल 370 हटने के बाद 12 गुना ज्यादा युवा खेलों का हिस्सा बने.
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