नई दिल्ली : हिंदी की प्रख्यात लेखिका एवं निबंधकार कृष्णा सोबती का 93 की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया. सोबती के मित्र एवं राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने बताया कि लेखिका ने आज सुबह दिल्ली के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. वह पिछले दो महीने से अस्पताल में भर्ती थीं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

उन्होंने बताया, “वह फरवरी में 94 साल की होने वाली थीं, इसलिए उम्र तो बेशक एक कारण था ही. पिछले एक हफ्ते से वह आईसीयू में भी थीं.” माहेश्वरी ने बताया, “बहुत बीमार होने के बावजूद वह अपने विचारों एवं समाज में जो हो रहा है उसको लेकर काफी सजग थीं.” 


1925 में जन्मी सोबती को नारीवादी लैंगिक पहचान के मुद्दों पर लिखने के लिए जाना जाता है. उन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कारों जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया था और पद्म भूषण की भी पेशकश की गई थी जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था. हिन्‍दी की वरिष्‍ठ लेखिका कृष्‍णा सोबती साथी रचनाकारों की दृष्‍टि में एक ऐसी लेखिका थी जिन्‍होंने अपने समय से आगे जाकर लिखा और उनके लेखन में एक विशिष्‍ट तरह की रूमानियत थी जो जिंदगी के खुरदुरेपन को साथ लेकर चलती थी.


चर्चित कथाकार ममता कालिया ने सोबती के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि आज एक बड़ी रचनाकार चली गयीं. उनकी रचनाओं 'जिंदगीनामा' या नवीनतम रचना 'गुजरात से गुजरात' तक से हम सभी को ऊर्जा मिलती रहेगी. कालिया ने 'भाषा' से बातचीत में कहा, 'वह कालजयी रचनाकार थी इसलिए काल उनका क्‍या कर सकता है. काल तो उनका मात्र शरीर लेकर गया है. उनकी रचनाएं तो हमारे साथ हैं. वह सदैव समकालीन ही रहेंगी.'


वरिष्‍ठ साहित्‍यकार लीलाधर मंडलोई मानते हैं, 'कृष्‍ण सोबती एक ऐसी शिखर लेखिका थीं, जिन्‍होंने भाषा और विषय वस्‍तु के लिहाज से हिन्‍दी साहित्‍य को एक नया कथा विन्‍यास दिया. उन्‍हें अपने समय की सबसे बोल्‍ड लेखिका कहा जाता है.' मंडलोई ने कहा कि वह अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता की सबसे बड़ी पैरोकार थीं. उन्‍होंने कहा कि सोबती के लेखन का जो खुरदुरापन है, वह दरअसल समाज का खुरदुरापन है. उन्‍होंने अपने साहित्‍य में अपने जीवन मूल्‍यों और दृष्‍टिकोण को लेकर कोई दुराव-छिपाव नहीं रखा.


सोबती का उनकी एक पुस्‍तक 'जिंदगीनामा' के शीर्षक को लेकर प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम के साथ मुकदमा चला था. इस मुकदमे में उनके वकील और नारीवादी मुद्दों के चर्चित लेखक अरविन्‍द जैन ने बताया कि उन्‍होंने स्‍त्री मुद्दों पर जो लिखा उससे हिन्‍दी साहित्‍य को एक नयी धारा , नयी दिशा और नया दृष्‍टिकोण मिला. उनका उपन्‍यास 'सूरजमुखी अंधेरे के' जब आया तो वह बहुत चर्चित हुआ. यह बलात्‍कार की शिकार किसी औरत की हादसे के बाद के जीवन की कहानी है.