DNA Analysis: आखिर क्यों डूब गया भारत का 500 साल पुराना ये ऐतिहासिक शहर? सरकार से कहां हो गई चूक
Bangalore Flood: भारत का 5 हजार साल पुराना ऐतिहासिक शहर बेंगलुरु इन दिनों पानी में पूरा डूबा हुआ है. लोग नाव, ट्रैक्टर और जेसीबी के जरिए काम-धंधे पर जाने को मजबूर हैं. आखिर सरकार से कहां चूक हो गई, जिसके चलते शहर की ऐसी हालत हुई.
Bangalore Flood Latest Updates: बेंगलुरु के लोग अपना बजट बढ़ाने के बारे में सोच रहे है. साइबर सिटी में हो रही मूसलाधार बारिश के बाद जो हालात बने हैं, उसे देखते हुए लोगों को अब हर मौसम के लिए अलग वाहन खरीदना होगा. जैसे गर्मियों और सर्दियों के लिए कार और बारिश के लिए ट्रैक्टर, नाव या फिर बुलडोज़र.
ये मज़ाक की बात नहीं है. बेंगलुरु (Bangalore Flood) में पिछले 3 दिन से मूसलाधार बारिश हो रही है. रविवार और सोमवार को यहां 13 से 18 सेंटीमीटर तक बारिश हुई थी. बेंगलुरू शहर इतनी बारिश का आदी नहीं है, इसलिए अब चारों ओर पानी ही पानी है.
देखते ही देखते पानी में डूब गया बेंगलुरु
आप सोचिए कि बेंगलुरु में दुनियाभर की IT कंपनियों के ऑफिस है. लाखों सॉफ्टवेयर इंजीनियर इस शहर में काम करते हैं. इसे भारत की सिलिकॉन वैली कहा जाता है. ये शहर, हाइटेक सॉफ्टवेयर तो बना रहा है, लेकिन हाइटेक सिटी नहीं बन पा रहा है.
बारिश की वजह, शहर में इतना पानी जमा है कि लोग ट्रैक्टर या नाव की सवारी कर रहे हैं. बारिश और वॉटर लॉगिंग की वजह से लेट ऑफिस पहुंचने वाले लोगों पर एक मीम भी वायरल हो रहा है. इस मीम में लिखा है, 'बेंगलूरु (Bangalore Flood) दुनिया का इकलौता टेक हब है, जहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर, ऑफिस 2 घंटे लेट पहुंचने के बाद ऐसा सॉफ्टवेयर बनाता है, जिसकी मदद से 10 मिनट में खाना मंगाया जा सकता है.'
बेंगलुरु शहर का ट्रैफिक एक बड़ी समस्या है, लेकिन बारिश में हालात कुछ ज्यादा ही खराब हो जाते हैं. बेंगलूरू को सिटी ऑफ लेक भी कहा जाता है. यहां पर 80 से ज्यादा झीलें हैं. लेकिन पहली बार बेंगलूरु ने सिटी ऑफ लेक तमगे को शब्दश: चरितार्थ किया है.
झीलों का पानी लोगों के घरों में घुसा
पहले बेंगलुरु के लोग घूमने के लिए झील तक जाते थे, अब झील उनके दरवाजे पर आ गई हैं. घर से निकलिए और झील सामने. अगर आपके पास नाव या ट्रैक्टर है तो ठीक, नहीं तो बालकनी से हर गली झील का मजा लिया जा सकता है.
बेंगलुरु में बारिश (Bangalore Flood) के बाद स्थिति ये है कि महंगी गाड़ियां डूबी हुई हैं. सड़कें, नहर बन गई हैं, क्योंकि उस पर गाड़ियां नहीं मोटरबोट चल रही है. लोग घर से बाहर आने के लिए नाव का मदद ले रहे हैं. घर छोड़ने के लिए लोग शानदार कार की नहीं.खेतों की शान यानी ट्रैक्टर की सवारी कर रहे हैं.
बेंगलूरु का एक रिहायशी इलाके की सड़क पर इतना पानी है कि लोग बोट में बैठकर घर से निकल रहे हैं. रेस्क्यू टीम वॉटर लॉगिंग से बचाने के लिए लोगों को बोट के जरिए वहां से निकाल रही है. पानी इतना है कि रेस्क्यू टीम कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. दिक्कत ये है कि सड़क पर कहां गड्ढा है, कहां मैनहोल, ये नहीं पता है. इसीलिए बोट की मदद से लोगों को निकाला जा रहा है.
जेसीबी से ऑफिस पहुंचने को मजबूर लोग
बोट और ट्रैक्टर ही नहीं बेंगलुरु (Bangalore Flood) के लोगों का नया वाहन जेसीबी भी है. अभी तक आपने जेसीबी से खुदाई देखी होगी, अब बेंगलुरु में लोग इसकी सवारी करते भी दिख रहे हैं. बारिश के बाद बेंगलूरू में नहरें पुल के ऊपर से गुजर रही है. पुल पार करने के लिए JCB लगाई गई है. JCB के पंजे पर बैठकर लोग पुल पार कर रहे हैं. पुल के ऊपर से पानी का बहाव बहुत तेज है. JCB वाले ने भी खुद के फेसबुक स्टेटस पर Feeling blessed लिखा होगा, क्योंकि उसने लोगों की बहुत मदद की है.
बेंगलुरु में बोट, ट्रैक्टर और जेसीबी राइड की नौबत क्यों आई, इसकी वजह आपको बताते हैं. बेंगलूरु की एक पॉश सोसाइटी के बेसमेट में पार्किंग थी, जहां लोग अपनी कारें खड़ी करते थे. लेकिन अब ये बेसमेंट सोसाइटी का नया स्विमिंग पूल बन गया है. यहां इतना पानी है कि छोटी कारें नजर नहीं आ रही हैं और ऊंची कारों की केवल छत नजर आ रही है.
बेंगलुरु में जितनी बारिश (Bangalore Flood) हुई है. वहां कोई भी सड़क ऐसी नहीं है जो डूबी ना हो. बेंगलूर की ये तस्वीरें देखकर ऐसा लगता है कि वहां की सारी झीलें, शहर घूमने निकली हो. झील और शहर में फर्क खत्म हो गया है. ज्यादातर सड़कों पर घुटने भर पानी जमा हो गया है. सड़क पर पानी की लहरें ऐसे उठ रही हैं जैसे समंदर की लहर हो.
शहर के ड्रेनेज सिस्टम में नहीं हुआ सुधार
बेंगलूरु जिस तेजी से बसा है, उस तेजी से यहां पर ड्रेनेज सिस्टम में सुधार नहीं हुआ है. ये एक बड़ी वजह है कि बेंगलुरू, इस बारिश में बेहाल हो गया. बेंगलूरू की ऐसी स्थिति के कुछ बड़े कारण है, जिसके बारे में आपको जानना जरूरी है. जैसे
- बेंगलूरु में बारिश का पानी जमा करने में, यहां की झीलों का बहुत बड़ा हाथ था. ये झीलें एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं. लेकिन अब झीलों का आपसी कनेक्शन टूट गया है.
- बारिश का पानी सोखने वाले मैदानों और झीलों का अतिक्रमण कर लिया गया है.
- इसी तरह से शहर की झीलें लगातार कम होती गई हैं. वर्ष 1961 तक शहर में 261 झीलें थीं, जिनकी संख्या अब केवल 85 है.
- झीलों के करीब 184 एकड़ क्षेत्र पर अब कोई ना कोई बिल्डिंग बनी है. यानी वो खत्म हो चुकी हैं.
- शहर में कॉन्क्रीट वाले इलाके बढ़ गए हैं और मिट्टी वाली खाली जमीनें कम हो गई हैं.
शहर के 78 प्रतिशत हिस्से पर कंक्रीट का जंगल
वर्ष 2017 तक बेंगलुरु शहर (Bangalore Flood) के 78 प्रतिशत इलाके कॉन्क्रीट के जंगल थे. लेकिन 2020 तक आते-आते शहर के 90 प्रतिशत से ज्यादा इलाकों में नई इमारतें बन गईं. इसमें ड्रेनेज सिस्टम में सुधार को लेकर कोई प्लानिंग नहीं की गई थी. आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 1973 तक बेंगलुरू का 68 प्रतिशत इलाका वन क्षेत्र था. लेकिन 2020 तक आते-आते शहर के केवल 3 प्रतिशत इलाके में ही हरियाली बची. मतलब ये है कि बेंगलुरु शहर का जल निकासी नेटवर्क, इतना खराब हो गया है कि दो दिन की बारिश भी नहीं झेल पाया.
वैसे देखा जाए तो बेंगलूरु की परेशानी यहां की इमारतें नहीं हैं, बल्कि ड्रेनेज सिस्टम में सुधार का ना होना है. नई इमारतें बनती गईं, लेकिन शहर के ड्रेनेज सिस्टम में बदलाव नहीं किए गए, उल्टा ये कम होता चला गया. सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि बेंगलूरू का ड्रेनेज सिस्टम कैसे काम करता है.
- बेंगलूरु में लगभग 850 किमी लंबा ड्रेनेज सिस्टम है. इसमें 3 तरह की नालियों का नेटवर्क है. इसमें घरों के पास छोटी नालियां हैं. ये छोटी नालियां, इलाके के बड़े नालों में मिलती हैं. ये मुख्य नाले, शहर की अलग-अलग झीलों से जुड़े थे. शहर की ये सभी झीलें भी आपस में जुड़ी थीं. इसलिए नालों के जरिए, बारिश का पानी झील में जाता था और एक झील के जरिए सारी झीलों में बंट जाता था. इसकी वजह से बाढ़ जैसी स्थिति नहीं बनती थी.
झीलों पर अतिक्रमण से बिगड़ता चला गया माहौल
लेकिन जबसे झीलों का अतिक्रमण होने लगा और नालियों का नेटवर्क कम होता गया, तब से शहर का ड्रेनेज सिस्टम खराब हो गया. यही वजह है कि बारिश का पानी सड़कों और गलियों में नजर आ रहा है. वर्ष 2021 में आई कैग रिपोर्ट के मुताबिक वृषभावती इलाके में 1990 में 226 किमी लंबी नालियों का नेटवर्क था, जो 2017 तक सिकुड़कर 110 किमी ही बचा.
शहर के सभी नालों की साफ सफाई का काम भी अधूरा ही किया जाता रहा है. 2020 में बेंगलुरू की नगर पालिका, जिसे BBMP कहा जाता है. उसने केवल 377 किमी नालियों की सफाई का ठेका दिया था. जबकि पूरे शहर में 850 किमी से ज्यादा लंबी नालियां हैं. यानी आधे से भी कम नालों की सफाई करवाई गई थी.
2022 में BBMP ने केवल 440 किमी नालियों की सफाई का ठेका दिया था. यानी इस साल भी करीब 50 प्रतिशत ही नालों की सफाई करवाई गई.
केवल बेंगलुरु नहीं, हरेक शहर की यही कहानी
अब अगर बारिश की वजह से बेंगलुरु (Bangalore Flood) में हर ओर पानी है, तो उसके पीछे सरकारी व्यवस्था की गलती है. शहर में लोग बढ़ते गए, नौकरी करने आए लोगों की संख्या बढ़ती गई. लेकिन ड्रेनेज नेटवर्क बढ़ने के बजाए, कम होता गया. इसके सुधार को लेकर कभी कोई गंभीर प्रयास नहीं किए गए. ये हाल केवल बेंगलुरु का नहीं है, देश के ज्यादातर बड़े शहरों में, यहां तक की राजधानी दिल्ली में भी मॉनसून में यही हाल हो जाता है. इस समस्या को लेकर गंभीरता से कभी काम नहीं होता. शहरों के ड्रेनेज नेटवर्क को लेकर ठोस प्रयासों की कमी ही आम नागरिकों को परेशानी बन जाती है. जनता, देश की इस सालाना समस्या से हर साल जूझती है.
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