Aurangabad Seat Profile: BJP के सुशील कुमार सिंह या RJD के अभय कुशवाहा, कौन होगा औरंगाबाद का नया सांसद?
Aurangabad Lok Sabha Seat Profile: बीजेपी ने अपने सिटिंग सांसद सुशील कुमार सिंह पर एक बार फिर से भरोसा जताया है. वहीं महागठबंधन की ओर से आरजेडी नेता अभय कुशवाहा उर्फ अभय कुमार सिन्हा को प्रत्याशी बनाया गया है. अभय कुशवाहा पर आपराधिक मामलों कुल 16 मामले दर्ज हैं. वहीं बीजेपी के सुशील सिंह बिल्कुल साफ-सुधरी छवि के नेता हैं.
Aurangabad Lok Sabha Seat Profile: बिहार में लोकसभा चुनाव का रण सज चुका है. पहले चरण के लिए एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों गठबंधनों की ओर से अपने-अपने महारथियों को उतार दिया गया है. पहले चरण में बिहार की औरंगाबाद सीट पर भी वोट पड़ने हैं. इस सीट पर बीजेपी ने अपने सिटिंग सांसद सुशील कुमार सिंह पर एक बार फिर से भरोसा जताया है. सुशील सिंह 2009, 2014 और 2019 में लगातार तीन बार सांसद चुने गए हैं और इस बार जीत का चौका लगाना चाहते हैं. वहीं महागठबंधन की ओर से आरजेडी नेता अभय कुशवाहा उर्फ अभय कुमार सिन्हा को प्रत्याशी बनाया गया है. अभय कुशवाहा टिकारी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं. उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू की टिकट पर टिकारी विधानसभा से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अनिल कुमार को हराया था.
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ही उन्होंने आरजेडी ज्वाइन की थी और राजद में उन्हें टिकट भी मिल गया. अभय कुशवाहा पर आपराधिक मामलों कुल 16 मामले दर्ज हैं. हालांकि, सभी मामले आचार संहिता उल्लंघन से जुड़े हुए हैं. अभय कुशवाहा ने अपने हलफनामा में कुल 2 करोड़ 46 लाख 543 रुपयों की सम्पत्ति दिखाई है. वहीं बीजेपी के सुशील सिंह बिल्कुल साफ-सुधरी छवि के नेता हैं. उन्होंने अपने हलफनामा में किसी मुकदमे का जिक्र नहीं किया है. हलफनामे मे उन्होंने खुद के पास 73,73,076 रुपये की संपत्ति का जिक्र किया है.
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भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व
चितौड़गढ़ के नाम से जाना जाने वाला औरंगाबाद जिला वैसे तो एनएच-19 और एनएच-139 के किनारे स्थित है. इसका क्षेत्रफल 89 वर्ग किलोमीटर है. यह जिला अदरी नदी के तट पर स्थित है और यहाँ की मिट्टी की प्रकृति जलोढ़ है. इसके अलावा इस जिले से होकर सोन, पुनपुन, औरंगा, बटाने, मोरहर और मदार नदी भी गुजरती है. लेकिन अदरी नदी जिला मुख्यालय को दो हिस्सों में बांटती है. यही वजह है कि इसे अदरी नदी के तट पर बसा हुआ जिला भी कहा जाता है. राज्य की राजधानी पटना इसके उत्तर पूर्व में 140 किलोमीटर दूर है, जबकि पूरब में गया जिला 100 किलोमीटर तथा पश्चिम में रोहतास जिला यहां से 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
ऐतेहासिक महत्व के दृष्टिकोण से यह जिला मौर्य, गुप्त और गदवादला शासनकाल का एक प्रमुख हिस्सा रहा है. यह जिला अफगान शासक शेरशाह सूरी के प्रभाव वाला भी रहा है. ब्रिटिश शासन काल मे यहां के कई जमीदारों ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगूल भी फूंका था, जिनमे से देव, माली, कुटुंबा, पवई और चंद्रगढ़ के शासकों का नाम अग्रणी पंक्ति में शामिल हैं. 16 जनवरी 1973 को इसे एक अलग जिला घोषित कर दिया गया था.
औरंगाबाद सीट पर वोटरों की संख्या
औरंगाबाद की मतदाता सूची के मुताबिक इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख 78 हजार 313 है. इनमें 9 लाख 83 हजार 339 पुरुष मतदाता हैं, जबकि 8 लाख 94 हजार 932 महिला मतदाता हैं. वहीं 42 मतदाता थर्ड जेंडर की श्रेणी में आते हैं. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या में इस बार 67 हजार 746 मतदाता नए जुड़े हैं. औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के सामाजिक समीकरण की यदि बात करें तो इस सीट पर सबसे अधिक मतदाता राजपूत जाति के हैं, जबकि यादव जाति से जुड़े वोटरों की संख्या दूसरे नंबर पर है. मुस्लिम वोटर तीसरे नंबर पर आते हैं. जातियों के वोट प्रतिशत पर गौर किया जाय तो इस संसदीय क्षेत्र मे ओबीसी का वोट प्रतिशत 20 फीसदी है जबकि ईबीसी का वोट प्रतिशत 25% है. सामान्य 25%, एससी 20% जबकि मुस्लिम वोट प्रतिशत 10 है.
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औरंगाबाद से कब-कौन बना सांसद?
1952- सत्येंद्र नारायण सिंहा (कांग्रेस)
1957- सत्येंद्र नारायण सिंहा (कांग्रेस)
1961- रमेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस)
1962- मुंद्रिका सिंह (कांग्रेस)
1967- महारानी ललिता राजलक्ष्मी (स्वतंत्र पार्टी)
1971- सत्येंद्र नारायण सिंहा (संगठन कांग्रेस)
1977- सत्येंद्र नारायण सिंहा (जनता पार्टी)
1980- सत्येंद्र नारायण सिंहा (जनता पार्टी)
1984- सत्येंद्र नारायण सिंहा (कांग्रेस)
1989- रामनरेश सिंह (जनता दल)
1991-रामनरेश सिंह (जनता दल)
1996- वीरेंद्र कुमार सिंह (जनता दल)
1998- सुशील कुमार सिंह (समता पार्टी)
1999- श्यामा सिंह (कांग्रेस)
2004- निखिल कुमार (कांग्रेस)
2009- सुशील कुमार सिंह (जदयू)
2014- सुशील कुमार सिंह (बीजेपी)
2019- सुशील कुमार सिंह (बीजेपी)
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क्षेत्र की क्या हैं समस्याएं ?
यह संसदीय क्षेत्र कृषि प्रधान है और यहां की 70 प्रतिशत आबादी खेती पर ही निर्भर है. ऐसे में यहां के मुख्य मुद्दे भी कृषि से ही जुड़े रहे हैं. सबसे बड़ा मुद्दा सिंचाई का है. इसमें उत्तर कोयल नहर परियोजना, बटाने सिंचाई परियोजना प्रमुख है. 70 के दशक में शुरू की गई उत्तर कोयल नहर परियोजना 48 वर्षों बाद भी आजतक पूरी नहीं की जा सकी है और यह हर बार बड़ा मुद्दा बनता रहा है. वहीं बताने सिंचाई परियोजना की दशा भी इससे अलग नहीं है. कमोबेश इसका भी निर्माण कार्य 70 के दशक में ही शुरू हुआ था और आज तक अधूरी पड़ी है. चुनाव में हर बार इसकी भी आवाज उठती रही है. इन सब से अलग एक मुद्दा है औरंगाबाद-बिहटा रेल लाइन परियोजना, जोकि पिछले कई चुनावों में मतदाताओं को लुभाने का काम करता रहा है. प्रत्याशी चाहे किसी भी दल के हों, इन्ही मुद्दों को उठाकर चुनावी वैतरणी पार करते रहे हैं.
इस सीट पर किस पार्टी का दबदबा
औरंगाबाद संसदीय सीट पर वैसे तो परंपरागत रूप से एनडीए का ही दबदबा रहा है, लेकिन कभी-कभी एन्टी इंकंबेंसी की वजह से कांग्रेस भी मौका मारने की फिराक में रहती है. राजपूत बहुल इलाका होने की वजह से और एनडीए की तरफ से हर बार इसी जाति का प्रत्याशी मैदान में उतारे जाने के कारण भी एनडीए को इसका फायदा मिलता रहा है. औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों पर भी एनडीए का पलड़ा भारी रहा है. यहां की जनता बीजेपी और सहयोगी दलों का हमेशा से खुले मन से समर्थन करती रही है. महागठबंधन की यदि हम बात करें तो लोकसभा चुनावों में यहां हमेशा कांग्रेस प्रतिनिधित्व करता रहा है. इस बार गठबंधन से राजद प्रत्याशी यहां चुनावी मैदान मे अपना भाग्य आजमा रहा है.
रिपोर्ट- प्रिंस राज सूरज