Gaya: देशभर में रंगों का त्योहार होली (Holi 2021)  को मनाने की अलग-अलग परम्पराएं है. लेकिन मगध की धरती पर खेली जाने वाली बुढ़वा होली (Budhwa Holi) की बात अनोखी है. 'बुढ़वा होली' (Budhwa Holi) की खासियत यह है कि इसे होली के दूसरे दिन भी लोग पूरे उत्साह के साथ इसे मनाते हैं और किसी भी मायने में इसकी छटा होली से कम नहीं होती.


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इस दिन भी लोग पूरे उत्साह के माहौल में एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाते हैं और झुमटा निकालते हैं. साथ ही, होली गाने वाले गांव और शहर के मार्गों पर होली के गीत गाते हुए अपनी खुशी का इजहार करते हैं. बुढ़वा होली पर लोग पूरे दिन रंग और गुलाल के आगोश में डूबे रहते हैं. एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और तरह-तरह के पकवान खाते और खिलाते हैं.


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बुढ़वा होली की शुरुआत कब और कैसे हुई इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है. ज्यादातर लोग बुढ़वा होली के बारे में मानते हैं कि जमींदारी के समय में मगध के एक नामी गिरामी जमींदार होली के दिन बीमार पड़ गए थे. जमींदार जब दूसरे दिन स्वस्थ हुए तो उनके दरबारियों ने होली फीकी रहने की चर्चा की. जिसके बाद जमींदार ने दूसरे दिन होली खेलने की घोषणा कर दी. इसके बाद मगध की धरती पर बुढ़वा होली मनाने की परम्परा शुरू हो गई. 


मगध में गया का विशिष्ट स्थान है और आज भी गया समेत पूरे मगध की धरती पर बुढ़वा होली मनाने की विशिष्ठ परम्परा है. होली के दूसरे दिन नवादा (Nawada), गया (Gaya), औरंगाबाद (Aurangabad), अरवल (Arwal), जहानाबाद (Jahanabad) और उसके आस पास के क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ बुढ़वा होली मनाई जाती है. बुढ़वा होली के दिन सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर छुट्टी नही रहती है लेकिन उस दिन भी अघोषित छुट्टी का नजारा रहता है. व्यावसायिक प्रतिष्ठान और आवागमन पूरी तरह से बंद रहते हैं. बुढ़वा होली पहले गांवों तक ही सीमित थी लेकिन अब यह शहरों में मनाई जाने लगी है.


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(इनपुट-जय प्रकाश)