श्मशान में शिव, अवध में राम, बनारस का रंग, भोजपुरी की पिचकारी, कुछ ऐसे होली खेलते थे मदनमुरारी...
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श्मशान में शिव, अवध में राम, बनारस का रंग, भोजपुरी की पिचकारी, कुछ ऐसे होली खेलते थे मदनमुरारी...

Holi 2021:  होली रंगों का त्योहार है, उमंग और आनंद का उत्सव है साथ ही ये आयोजन एक दूसरे से मिलने का और एक दूसरे की खुशी में शरीक होने का भी है.

 

अवध के राम से श्मशान के शिव तक होली के रंगो ने सबको भिगोया. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Patna: होली (Holi 2021) में लगने वाले रंग जितने गहरे होते हैं, उतनी ही गहरी परंपरा इस त्योहार को मनाने की रही है. होली मनाने की कई मान्यताएं हमारी परंपरा में हैं. हमारे अराध्य भी होली खेलते हैं, हमारे देवता हमारे साथ फाग के रंगों में और फाग के सुरों में शामिल होते हैं. यही वजह है कि अवध में राम, मथुरा में श्याम और काशी में महादेव की होली मशहूर है.

होली रंगों का त्योहार है, उमंग और आनंद का उत्सव है साथ ही ये आयोजन एक दूसरे से मिलने का और एक दूसरे की खुशी में शरीक होने का भी है. बसंती बयार के बाद फागुन की नशीली धूप होली को खास बनाती है. ये महज संयोग नहीं है, इसका खुमार ही कुछ ऐसा है. रसभरे रंगों और उमंग भरे गीतों का पर्व है होली. ये फसल तैयार होने के बाद मस्ती की धुन में झूमते किसानों का उत्सव है, लोक आस्थाओं और सनातन परंपराओं का आयोजन है. कोई नहीं जो इसके रंग में रंगे बिना दामन बचाकर निकल जाए. 

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हिंदू मान्यताओं में शायद ही कोई देवी-देवता हो जो होली के रंग में ना रंगे हों. हर भगवान के साथ होली की मान्यता जुड़ी है. होली से जुड़ी सबसे पुरानी मान्यता प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की है. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को ये वरदान हासिल था कि आग उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगी. यही वजह है कि होलिका की गोद में बिठाकर हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रह्लाद को जलाकर मारने की साजिश रची. लेकिन भक्त तो बच गए, और होलिका आग में जल गई. मान्यता के मुताबिक तब से होली मनाई जाती है. 

अवध में राम की होली आज भी हमारी परंपराओं से जुड़ी है. सोचिए भक्ति का क्या भाव है जिसमें हमारे अराध्य हमारे उत्सव में शरीक होते हैं. वृन्दावन बिहारी श्री कृष्ण की होली जितनी मशहूर है उतनी तो शायद ही किसी की होगी. होली जैसे खास आयोजन के मौके पर तो पूरा मथुरा (Mathura) और वृन्दावन (Vrindavan) ही कृष्ण के रंग में रंगा नजर आता है. होली और कृष्ण का संगम इस कदर है, कि आज भी पूर्वांचल और अवधी के ज्यादातर होली गीत कृष्ण को केंद्र में रखकर ही रचे गए हैं.

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राम और कृष्ण के बाद श्मशान बसने वाले महादेव की होली भी बहुत मशहूर है. शिव की होली गाथा कामदेव के भस्म हो जाने से जुड़ी है. कहा तो ये भी जाता है कि जिसने बनारस की होली नहीं देखी, उसने दुनिया देखी भी तो क्या देखी. बिहार में मिथिला की होली का भी अपना अलग अंदाज है. मिथिला में आज भी लोकपरंपरा के अनुसार होली मनाई जाती है. यानी वो उत्सव जिसे पूरा गांव एक साथ मिलकर मनाता है. इलाके के लोग ढोल, मंजीरे और करताल लेकर फागुन के रंग में रंगे नजर आते हैं. 

चर्चा होली की चले और बात भोजपुरी की ना हो तो ये सरासर नाइंसाफी है. भोजपुर की हल्की छेड़छाड़ और मस्तीभरी होली भी पूरी दुनिया में मशहूर है. होली में गाने-बजाने की परंपरा रही है और होली से जुड़े गीत इस त्योहार को बेहद खास बनाते हैं. लेकिन अब होली के सुर बेसुरे हो रहे हैं, कभी सुरीले गीतों का गुलाल उड़ता था लेकिन अब अब फूहड़ रंगों की बरसात होती है. 

कभी होली के गीत हमारी संस्कृति का बखान करते थे, गंगा-जमुनी तहजीब और कौमी एकता की मिसाल हमारे गीतों से झांकती थी. नजीर अकबराबादी ने कभी लिखा था कि, 'जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की' लेकिन अब बाजार में तस्वीर बदलती जा रही है. होली के मौके पर बजने वाले ज्यादातर गाने अश्लील और द्विअर्थी हो रहे हैं.

हल्की फुल्की मस्ती और छेड़खानी से शुरू होने वाले गीत अब खुलेआम अश्लीलता परोसते नजर आते हैं. ऐसे गीत तेज आवाज में खुलेआम बाजारों में बजते हैं. गीत उद्योग से जुड़े लोग बाजार की डिमांड का हवाला देते हैं. वजह चाहे जो रही हो लेकिन द्विअर्थी गीतों ने फागुन की मस्ती के मायने बदल दिए हैं. 

होली शताब्दियों से हमारा मुख्य त्योहार है. अपने फक्कड़ मिजाज की वजह से इसे जनवादी त्योहार कहते हैं. अपनी तड़क-भड़क के बावजूद बाजार इसे आजतक पूरी तरीके से अपनी चपेट में नहीं ले पाया है. एक छटांक रंग से पूरे जहां को रंगने का जज्बा आज भी इसे दूसरे त्योहारों से अलग करता है. हालांकि, बदलते वक्त के साथ होली मनाने के तरीके में बदलाव आया है. कई तरह के कुत्सित विचारों ने इसमें धीरे-धीरे जगह बनाई है, बावजूद इसके होली अपने मूल रूप में आज भी कायम है.

(इनपुट- राजेश कुमार)