बलि प्रथा का अनोखा तरीका: यहां बकरे को मारा नहीं जाता, बल्कि मंत्र फूंक कर...
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बलि प्रथा का अनोखा तरीका: यहां बकरे को मारा नहीं जाता, बल्कि मंत्र फूंक कर...

Bihar Samachar: मुंडेश्वरी मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 सालों से चली आ रही है. वहीं, यहां बड़ी संख्या में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है. मंदिर में विद्यमान शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है. 

बिहार का मुंडेश्वरी मंदिर प्रमुख धार्मिक जगहों में से एक है. (फाइल फोटो)

Patna: बिहार का मुंडेश्वरी मंदिर (Mundeshwari Temple) प्रमुख धार्मिक जगहों में से एक है. यह मंदिर कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यह मंदिर प्राचीन धरोहर ही नहीं, पर्यटन का स्थल भी है. मंदिर कब बना और किसने बनाया यह कहना कठिन है. लेकिन यहां की शिलालेख के अनुसार माना जाता है कि उदय सेन नामक क्षत्रप के शासन काल में इसका निर्माण हुआ था. इसमें कोई संदेह नहीं कि यह मंदिर भारत के प्राचीन व सुंदर मंदिरों में एक है. भारत के 'पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग' द्वारा संरक्षित मुंडेश्वरी मंदिर के पुनरुत्थान के लिए योजनाएं बनाई जा रही है और साथ ही, इसे यूनेस्को की लिस्ट में शामिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं. 

मुंडेश्वरी मंदिर में पूजा की परंपरा 1900 सालों से चली आ रही है. वहीं, यहां बड़ी संख्या में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है. मंदिर में विद्यमान शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है. ब्रिटिश विद्वान 1838 से 1904 ई. के बीच यहां आए थे और प्रसिद्ध इतिहासकार फ्रांसिस बुकानन ने भी इस मंदिर के दर्शन किए थे. बता दें कि मंदिर का एक शिलालेख कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में है. जानकारी के अनुसार, यह शिलालेख 349 ई. से 636 ई. के बीच का है. इस मंदिर का उल्लेख कनिंघम ने भी अपनी पुस्तक में किया है. 

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इस मंदिर का पता तब चला, जब कुछ विशेष समुदाय के लोग पहाड़ी के ऊपर गए और मंदिर के स्वरूप को देखा. उस समय इसकी इतनी ख्याति नहीं थी. शुरू में पहाड़ी के नीचे निवास करने वाले लोग इस मंदिर में पूजा करते थे और यहां से प्राप्त शिलालेख में वर्णित तथ्यों के आधार पर कुछ लोगों द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर शुरू में वैष्णव मंदिर रहा होगा, जो बाद में शैव मंदिर हो गया तथा उत्‍तर मध्‍य युग में शाक्त विचारधारा के प्रभाव से शक्तिपीठ के रूप में परिणत हो गया. मंदिर की प्राचीनता का एहसास यहां मिले महाराजा दुत्‍तगामनी की मुद्रा से भी होता है. जो बौद्ध साहित्य के अनुसार अनुराधापुर वंश का था और ईसा पूर्व 101-77 में श्रीलंका का शासक रहे थे. 

इस मंदिर की नक्काशी व मूर्तियां उत्तर गुप्तकालीन समय की हैं. शिलालेख के अनुसार मंदिर महाराजा उदय सेन के शासन काल में निर्मित हुआ था. जानकारी के अनुसार, शिलालेख में उदय सेन का जिक्र है, जो शक संवत 30 में कुषाण शासकों के अधीन क्षत्रप रहा होगा. मंदिर का निर्माण काल 635-636 ई. बताया जाता है. यहां भगवान शिव का एक पंचमुखी शिवलिंग है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है. जो अत्यंत अद्भुत है. दुर्गा का वैष्णवी रूप ही माँ मुंडेश्वरी के रूप में  दिखाई देता है. वहीं, मुंडेश्वरी की प्रतिमा वाराही देवी की प्रतिमा है, क्योंकि इनका वाहन महिष है. मुंडेश्वरी मंदिर में मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है और साल में दो बार यहां माघ और चैत्र में यज्ञ होता है. 

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मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पशु बलि की अनोखी परंपरा है. यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता. जानकारी के अनुसार, चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी उद्यत हुई थी, तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था और यहीं पर माता ने उसका वध किया था और यह मुंडेश्वरी माता के नाम से स्थानीय लोगों में जानी जाती हैं.

इसके साथ ही एक आश्चर्यजनक बात यह भी है कि यहां भक्तों की कामनाओं के पूरा होने के बाद बकरे की बलि चढ़ाई जाती है, लेकिन माता रक्त की बलि नहीं लेतीं, बल्कि बलि चढ़ाने के समय भक्तों में माता के प्रति आश्चर्यजनक आस्था पनपती है और जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है तो पुजारी 'अक्षत' (चावल के दाने) को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते हैं. बकरा उसी क्षण अचेत, मृतप्राय सा हो जाता है और थोड़ी देर के बाद अक्षत फेंकने की प्रक्रिया फिर होती है तो बकरा उठ खड़ा हो जाता है और इसके बाद ही उसे मुक्त कर दिया जाता है. 

मंदिर का विनाश
लोगों का मानना और कहना है कि इस इलाके में कभी भूकंप का भयंकर झटका लगा होगा, जिसके कारण पहाड़ी के मलबे के अंदर गणेश और शिव सहित अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां दब गईं है. खुदाई के दौरान यह मिलती रही हैं और यहां खुदाई के क्रम में मंदिरों के समूह भी मिले हैं. इस मंदिर को किसी आक्रमणकारी ने तोड़ा नहीं है, बल्कि प्राकृतिक आपदा तूफान-बारिश, आंधी-पानी से इसका प्राकृतिक विनाश हुआ है. बता दें कि 1968 में पुरातत्व विभाग ने यहां की 97 दुर्लभ मूर्तियों को सुरक्षा की दृष्टि से 'पटना संग्रहालय' में रखा था और तीन मूर्तियां 'कोलकाता संग्रहालय' में हैं. 

जानकारी के अनुसार, पहाड़ के शिखर पर स्थित मुंडेश्वरी मंदिर तक पहुंचने के लिए 1978-1979 में सीढ़ी का निर्माण किया गया था. वर्तमान में इसका तेजी से विकास हो रहा है और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं. वहीं, जानकार कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और नेपाल के कपिलवस्तु का मार्ग मुंडेश्वरी मंदिर से जुड़ा हुआ था और मुंडेश्वरी मंदिर का संरक्षक एक मुस्लिम परिवार है.