बिहार: जातीय जनगणना पर क्रेडिट लेने में टूटी मर्यादा, राजद के ट्वीट से भड़की `आग`
Caste Census in Bihar: राजद के ट्विटर हैंडल से एक ऐसा ट्वीट किया गया जो शब्दों की मर्यादा को तार-तार कर रहा था.
पटना: Caste Census in Bihar: लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार बिहार में जाति आधारित जनगणना का रास्ता साफ हो गया. सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से इस बात पर मुहर लगी कि प्रदेश सरकार अपने स्तर पर प्रदेश में जातीय जनगणना कराएगी. इस बैठक में ये भी फैसला हुआ कि कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को पास कराया जाएगा. इसके 24 घंटे के भीतर कैबिनेट की बैठक बुलाकर प्रस्ताव पर मुहर लगा दी गई और 500 करोड़ रुपए की राशि जारी करने पर भी मुहर लग गई. सरकार ने इसके लिए 8 महीने की समय सीमा भी तय कर दी है. इसका साफ मतलब है कि सरकार इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है.
एक तरफ सरकार जाति आधारित गणना के लिए तेजी से आगे बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ इसे लेकर प्रदेश में सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है. सियासी दल अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के मकसद से बयानबाजी कर रहे हैं. जाति आधारित गणना का क्रेडिट लेने की होड़ सी मच गई है. खास तौर पर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल तो इसमें बाकी दलों से कोसों आगे चल रहा है.
वाहवाही लूटने में टूट रही मर्यादा
बिहार में मुख्य विपक्षी दल RJD की तरफ से क्रेडिट लेने की होड़ सबसे पहले शुरू हुई. सर्वदलीय बैठक में जैसे ही सर्वसम्मति से जातीय जनगणना पर मुहर लगी, राजद का मानो वोट बटोरने का इंतजार खत्म हो गया. सर्वदलीय बैठक के बाद सबसे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने मीडिया को ये स्पष्ट किया कि सरकार जाति आधारित गणना कराने जा रही है. इसके कुछ ही देर बाद बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने मीडिया से बात की.
तेजस्वी ने बताया था लालू की जीत
तेजस्वी यादव ने सबसे पहला बयान यही दिया कि 'ये हमारी जीत है, ये लालू प्रसाद यादव की जीत है'. इसके बाद तो आरजेडी के नेताओं ने बयानों की झड़ी लगा दी. पार्टी के सभी नेताओं ने अपने बयान के जरिए ये साबित करने का प्रयास किया कि जाति आधारित गणना (Caste Census) कराने का फैसला सिर्फ आरजेडी और उसके नेता की वजह से हुआ है.
क्षेत्रवाद या क्षेत्रीय विभेद को बढ़ाने का प्रयास
बात सिर्फ क्रेडिट लेने तक सीमित रह जाती, तो भी विवाद की वजह नहीं बनती. बात इससे आगे तब निकल गई जब राजद के ट्विटर हैंडल से एक ऐसा ट्वीट किया गया जो शब्दों की मर्यादा को तार-तार कर रहा था. इसमें आरजेडी ने न सिर्फ विरोधी पार्टी बीजेपी को निशाना बनाया, बल्कि ट्वीट के जरिए क्षेत्रवाद या क्षेत्रीय विभेद को भी बढ़ावा देने की कोशिश की गई. इस ट्वीट के बाद तो मानो बिहार की सियासत में आग भड़क उठी. आरजेडी के इस ट्वीट के जवाब में एनडीए के घटक दलों ने आरजेडी पर जमकर निशाना साधा और ट्वीट की भाषा को आरजेडी का चलन करार दिया.
आरजेडी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जो ट्वीट किया, वो बेहद दोयम दर्जे का था. इस ट्वीट में लिखा गया था 'जातीय जनगणना पर बीजेपी ने एक बार फिर थूक कर चाटा. संघ और संघी गुजराती समझ जाएं कि ये बिहार है बिहार'.
आरजेडी के इस ट्वीट से न सिर्फ जातीय विभेद को भड़काने का प्रयास दिखा, बल्कि क्षेत्रीय भेदभाव भी साफ नजर आया. ये बात समझ में आती है कि आरजेडी को बीजेपी या संघ से मतभेद है, लेकिन इस ट्वीट में जिस तरह एक प्रदेश का जिक्र कर निशाना साधा गया, वो राजनीतिक मर्यादा के हिसाब से सही नहीं लगता. एनडीए के घटक दलों ने आरजेडी के नेताओं के बयान और ट्वीट को लेकर कड़ा हमला बोला.
बीजेपी-जेडीयू ने राजद पर साधा निशाना
बीजेपी और जेडीयू के नेताओं ने कहा कि 'इस तरह की ओछी बातें राजद की परंपरा में शामिल है. राजद के नेता इसी तरह की अशोभनीय बातें करने के लिए जाने जाते हैं. किसी भी मामले में क्रेडिट लेने की होड़ राजद में हमेशा रहती है और इनके लिए हर मुद्दा सिर्फ राजनीतिक रोटी सेंकने वाला होता है. इससे ज्यादा इस पार्टी की सोच चलती ही नहीं'.
एजेंडा पूरा करना है इरादा?
जातीय जनगणना के फैसले के बाद से राजनीतिक दलों का जो रवैया दिख रहा है, वो भविष्य के लिए सुखद संकेत नहीं है. समाज के गरीब और कमजोर वर्ग के उत्थान की वकालत करने वाले सियासी दल खुलकर वोटबैंक की राजनीति करते नजर आ रहे हैं. ऐसे में ये चिंता घर कर जाती है कि कहीं ये जाति आधारित गणना महज एजेंडा पूरा करने का एक जरिया बनकर तो नहीं रह जाएगा?
सामाजिक समरसता बिगाड़े का प्रयास!
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का भी ये मानना है कि 'कोई भी प्रदेश किसी एक पार्टी विशेष का नहीं होता और सभी प्रदेश हमारे देश का हिस्सा हैं. ऐसे में बिहार में मुख्य विपक्षी दल का ट्वीट सामाजिक समरसता को बिगाड़ने वाला ही नजर आता है. बिहार के मुख्य विपक्षी दल को अपने बयानों में गंभीरता बरतने की जरूरत है. जब सभी दलों ने एकमत से जाति आधारित गणना का रास्ता साफ कर दिया है तो इसे हार-जीत की तरह पेश नहीं करना चाहिए. अगर इसे लेकर राजनीतिक षड्यंत्र हुआ, तो सामाजिक समरसता के लिए ये बड़ा खतरा बन सकता है'.