Guru tegh Bahadur ji Prakash Parv: सबसे पहले गुरु नानक देव के चरण बिहार में पड़े थे और वहीं आगे चलकर नवम गुरु गुरुतेग बहादुर सिंह ने परिवार सहित यहां प्रवास किया था. इसके साथ ही दशम गुरु का जन्म भी यहीं हुआ.
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पटनाः Guru tegh Bahadur ji Prakash Parv: इस वक्त जब सारा देश गुरु तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश पर्व मना रहा है तो ऐसे में बिहार भी अपने आप में निहाल हो रहा है. बिहार वह धरती है, जो समय-समय पर गुरुओं और उनकी संगतों से पावन होता रहा है. सबसे पहले गुरु नानक देव के चरण यहां पड़े थे तो वहीं आगे चलकर नवम गुरु गुरुतेग बहादुर सिंह ने परिवार सहित यहां प्रवास किया था. इसके साथ ही दशम गुरु का जन्म भी यहीं हुआ. इस तरह सिख पंथ की गुरु परंपरा की धरोहर के रूप में बिहार आज भी गर्व करता है. गुरु तेग बहादुर ने बिहार की धरती पर कहां-कहां कदम रखा, डालते हैं एक नजर-
जब बिहार पहुंचे गुरु तेग बहादुर
सिखों के नौंवे गुरु गुरुतेग बहादुर 1666 ई. में आसाम की यात्रा पर निकले थे. इस दौरान वह प्रयागराज होते हुए वाराणसी के नीची बाग पहुंचे और वहां सात माह 13 दिन प्रवास करने के बाद जत्था सहित बिहार के सासाराम पहुंचे थे. इस दौरान जब वे कर्मनाशा नदी के तट पर पहुंचे और उसे पार करने लगे तो लोगों ने उन्हें रोका और कहा, इस नदी में उतरने से श्राप लगता है. गुरुतेग बहादुर ने नदी को मां का स्वरूप बताया और इसमें स्नान करके इसी के जल से लंगर बनवाया. कैमूर में कर्मनाशा नदी के तट पर स्थित एक गुरुद्वारा इस घटना का प्रमाण है.
सासाराम में बसाया शापित बगीचा
यहां से गुरुतेग बहादुर जी का जत्था भभुआ पहुंचा. सासाराम में बाबा गुरुदित्ता जी ने एक बगीते को शापित किया हुआ था. कहते हैं कि गुरुजी के यहां पहुंचते ही बाग हरा-भरा हो गया. लेकिन, मौलेश्री का वृक्ष सूखा ही रहा. इस वृक्ष में गुरुजी ने अपना घोड़ा बांधा और 21 दिन तपस्या की, तब पेड़ हरा हो गया. 52 बीघा में फैले बगीचे में गुरु का बाग गुरुद्वारा स्थापित है. सिख श्रद्धालु यहां श्रद्धा से शीष झुकाने आते हैं.
जहां घोड़ा अड़ा वहां टकसाल संघत गुरुद्वारा
सासाराम में फागुमल जी की कुटिया के नजदीक जीयो माई-भाई रहते थे. वहां तंबाकू की खेती होती थी. जहां गुरुजी का घोड़ा अड़ गया था, वहां टकसाल संघत के नाम से गुरुद्वारा की स्थापना हुई. जो प्रबंध कमेटी के प्रधान सरदार मानिकचंद सिंह के नेतृत्व में देखरेख की जाती है. आगे सड़क की ओर बढ़ने पर कुछ संत-महंतों की कुटी थी. संतों की विनती पर गुरुजी ने वहां पांच ईंट की नींव रखी, जो गुरुद्वारा पुरानी संघत के नाम से स्थापित है. सासाराम से गुरुजी का जत्था औरंगाबाद होते हुए गया विष्णुपद स्थित फल्गु नदी के तट पर पहुंचा, जहां गुरुजी का ठहराव हुआ. गया से वह पटना पहुंचे.
पटना साहिब गुरुद्वारा है खास
सिख धर्म अनुयायियों के लिए पंजाब के स्वर्ण मंदिर के बाद बिहार का तख्त श्री पटना साहिब सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है. यहां सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था. यहां गुरु तेग बहादुर और उनकी पत्नी माता गुजरी ने कुछ सालों तक प्रवास किया था. बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने इस पवित्र स्थली पर गुरुद्वारा का निर्माण कराया.
गायघाट में सपरिवार रहे नवमगुरु
पटना साहिब गुरुद्वारे की खास बात यह है कि यहां आज भी गुरु गोबिंद सिंह से जुड़ी कई प्रमाणिक वस्तुएं रखी हुई हैं. गुरु गोबिंद सिंह ने जीवन के पांच सिद्धांत दिए थे, जिसे पंच ककार कहते हैं. इसमें सिखों के लिए पांच चीजों को अनिवार्य बताया गया. ये पांच चीजें केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा हैं. पटना में ही गुरुद्वारा गायघाट पर सिखों से पहले गुरु नानक देव जी ठहरे थे. साथ ही नौवें गुरु तेग बहादुर भी सपरिवार यहां निवास करते थे. गुरु का बाग, सुनारटोली साहिब के भी दर्शन कर सकते हैं. सिखों में इन सभी स्थानों का विशेष महत्व है.
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