पटनाः Singer KK passes away: साल 1994 के आखिरी महीनों में टीवी पर एक विज्ञापन आना शुरू हुआ था. कुछ एक मिनट के इस विज्ञापन में एक कपल की कहानी है, जो बचपन से जवानी तक के सफर को बयां करती है. इसी सफरनामे के जरिए  निर्माता को ये दिखाना था कि सेंटोजेन के सूट्स (Santogen suiting) बहुत बढ़िया होते हैं. कपड़ों वाली दुनिया में सूट्स का मार्केट बेशक बहुत बढ़ा, लेकिन इस एड को जिसने सुरीला बनाया, वो आवाज 26-27 साल के एक नौजवान की थी, जिसने इस सूट के विज्ञापन के लिए जिंगल गाए थे.
 
लकी था वो दिन
केके कहते हैं कि वो दिन मेरे लिए स्पेशली बहुत लकी था. ऊपर वाले की सारी नेमत जैसे एक ही दिन बरसनी थी. सुबह मेरे बेटे का जन्म हुआ, दोपहर तक कुछ और खुशखबरी मिलती रहीं, और इसी बीच UTV से कॉल आया. मिस्टर कुमार, क्या आप तीन बजे इस पते पर मिलेंगे, दूसरी ओर से आ रही आवाज ने लेस्ली लेविस का नाम लिया. केके ने कुछ दिन पहले ही लेस्ली लेविस और शिव माथुर को अपना एक डेमो टेप दिया था कि कुछ काम मिले. लेस्ली ने इसी सूट के एड के लिए केके को बुलवा लिया और इतिहास लिखा जाना शुरू हो गया. केके ने कुछ और जिंगल्स गाए और फिर बॉलीवुड के बीच म्यूजिक इंडस्ट्री में जाना-पहचाना नाम बन गए. 


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फीलिंग्स पर फिट बैठते थे केके के गाने
15-16 वाली उमर में जब नाक के नीचे और होंठ के ऊपर कुछ बालों ने अपनी जड़ें जमा ली थीं. जब ये पता चलना शुरू हुआ था कि फेफड़ों के पीछे कुछ बाईं ओर दिल जैसा भी कोई अंग है, जिसका काम सिर्फ ब्लड पंप करना नहीं है, 90s वाले बच्चों के लिए यह वही समय रहा होगा, जब वो या तो स्कूल छोड़ रहे होंगे, या फिर कॉलेज की तरफ बढ़ रहे होंगे. बाइक की स्पीड, कभी 60 कभी 80 तक रही होगी, पीछे एक या दो यार बैठे होंगे. स्कूल का फेयरवेल रहा होगा या कॉलेज का फ्रेशर, इस उम्र और इस मौके का एक खास एंथम था. यारों, दोस्ती बड़ी ही हसीन है. जैसे ही ये गाना प्ले होता, सारे दोस्त आस-पास आ जाते और एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रख लेते. फिर आवाज अच्छी हो या कानफाड़ू. हर कोई अपने ही अंदाज में इसे गुनगुना रहा होता था. दोस्ती छन रही हो और साथी जुदा हो रहे हों तो ये गाना उस टाइम के लिए फीलिंग जाहिर करने का सबसे अच्छा तरीका रहा है. नो डाउट, आगे भी रहेगा.


माचिस से करियर को मिला स्पार्क
1994 से चली करियर की ये रेल 1996 तक पहुंची थी. केके अभी भी जिंगल्स ही गा रहे थे. गुलजार ने एक दिन उन्हें सुन लिया. वो 'माचिस' बना रहे थे, उसके लिए कई तरह के बारूद उन्होंने चुन रखे थे. करिश्माई संगीत के लिए उन्होंने विशाल भारद्वाज का साथ लिया और विशाल को गहराई से लेकर ऊंचाई तक ले जाने वाली आवाज की चिंगारी केके में सुनाई दी. लिहाजा, माचिस रिलीज हुई तो 'छोड़ आए हम वो गलियां'. भी जुबान पर चढ़ गया. ये गाना उन लड़के-लड़कियों के लिए सेंसेबल फ्रेज बना, जो इश्क की गली में गए तो थे, लेकिन जब मंजिल मुकम्मल न हो सकी तो लौट आए. फिर उन्होंने ऐलानिया अंदाज में दुनिया को बताया कि हम वो गलियां छोड़ आए हैं. इस गाने की डेफ्थ के पीछे केके की आवाज थी, जिसने इसे यादगार बना दिया. 


साल 2000 बना टर्निंग पॉइंट
हालांकि केके अपनी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साल 2000 को मानते रहे हैं. इन चार सालों में उन्होंने 35000 जिंगल्स गा लिए थे. हिंदी के अलावा तमिल-तेलगू, कन्नड़, इंग्लिश और मलयाली में भी उन्होंने कई एड के लिए आवाज दी है, लेकिन जिस हाई नोट पर उन्होंने 'छोड़ आए हम वो गलियां' के सुर लगाए थे, संजय लीला भंसाली का मन वहीं कहीं अटक गया था. 1998 में उन्होंने सलमान-ऐश्वर्या के साथ हम दिल दे चुके सनम की तैयारी शुरू कर दी थी. फिल्म में टूटे दिल की दास्तां और परेशां मन की आवाज कैसे बयां की जाए? बड़ा सवाल था. इस्माइल दरबार इसी सवाल पर अटके थे. उन्होंने कई-कई सिंगर्स से इस गाने के म्यूजिक के हाई टोन गवा लिए थे, लेकिन ऊंचाई में फीलिंग की गहराई को बरकरार रखना मुश्किल हो रहा था. एक असिस्टेंट ने नए आ रहे सिंगर्स में केके का नाम लिया. इस्माइल ने केके की आवाज में गाना कंपोज किया और इस दफा भंसाली को सुनाने उनके ऑफिस पहुंच गए. सिर्फ एक अंतरा ही रिकॉर्ड किया था, इस्माइल दरबार ने मीडिया इंटरव्यू में बताया कि भंसाली ने इस अंतरे को 9 दफा सुना और रुआंसे हो गए. सलमान और ऐश्वर्या ने भी जब इस गीत और आवाज को सुना तो उन्होंने कहा कि जितना अहसास भरा ये गीत है, हमें अपनी एक्टिंग 21 रखनी होगी, 19 नहीं. यही वजह है कि करियर से जुड़े सवालों में केके, हम दिल दे चुके सनम को अपनी लाइफ का टर्निंग पॉइंट बताते हैं. 


सोनी म्यूजिक ने बनाया सितारा
हालांकि 1999 में जब सोनी म्यूजिक लॉन्च हुआ तब केके नई आवाज के तौर पर 'पल' म्यूजिक अल्बम से फ्लोर पर आ चुके थे और नई उमर के बीच फेमस भी हो रहे थे, तड़प-तड़प के इस दिल से आशिक की जो आह निकली वो बहुत दूर तक गई. दूर मतलब बहुत दूर तक. इस बीच केके गाते रहे, हम सुनते रहे. जिंदगी में दोस्ती, मोहब्बत, रुसवाई, बेवफाई, जुदाई और न जाने क्या-क्या घटता रहा-बढ़ता रहा, हम इस बीच केके को सुनते रहे. हील होते रहे. अभी कोरोना के बीच इरफान खान नहीं रहे थे. उनके ऊपर फिल्माया एक गीत है. मैंने दिल से कहा, ढूंढ लाना खुशी. नासमझ लाया गम तो ये गम ही सही. 2005 में आई फिल्म रोग के इस गाने को भी केके ने आवाज दी थी. इरफान साहब अपनी बाकमाल एक्टिंग के लिए हमेशा दिलों में जिंदा रहेंगे, लेकिन इस गाने का वीडियो देखिए. एक तरफ इरफान दिखेंगे, ठीक समानांतर रेखा जैसा कुछ बनाते केके सुनाई देंगे. 


31 मई 2022 की रात केके नहीं रहे. कुछ खलिश, कुछ खला दिलों में छोड़ वो उस जगह के सफर पर हैं, जहां तक उनके गानों की हाई पिच पहुंचा करती रही होगी. दिल की गहराई में दबी आवाज को ऊपर लाने वाला आज ऊपरवाले की राह पर है. उसे जगह दो, भीड़ हटा लो. लेकिन काश, कोलकाता के उस हॉल में भीड़ थोड़ी पहले हटा ली गई होती तो केके इसी दुनिया में होते, हमारे बीच, हमें कुछ और सुना रहे होते. काश!!!


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