बूटा सिंह का बिहार को लेकर किया वो फैसला जिसने खत्म कर दी उनकी राजनीतिक उड़ान
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बूटा सिंह का बिहार को लेकर किया वो फैसला जिसने खत्म कर दी उनकी राजनीतिक उड़ान

बूटा सिंह ने फौरन उस आदेश की तामील करते हुए विधानसभा भंग कर दी. लेकिन दिल्ली की यूपीए सरकार और बिहार में बैठे उनके गवर्नर दोनों से गलती हो गई. गलती ऐसी कि यूपीए बिहार हार गई.

बूटा सिंह का बिहार को लेकर किया वो फैसला जिसने खत्म कर दी उनकी राजनीतिक उड़ान.

पटना: कांग्रेस सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सरदार बूटा सिंह का आज दिल्ली में निधन हो गया. 86 की उम्र में उनका देहवसान हुआ. कांग्रेस सरकार में कई रसूख वाले नेता हुए लेकिन बूटा सिंह उनमें भी अपनी एक अलग हैसियत रखते थे. 1962 से राजनीति में कदम रखने वाले बूटा सिंह अपने सियासी सफर में पीछे कई ऐसे घटनाचक्र छोड़ कर गए जिसपर आज भी चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता है.

एक-एक कर के उन किस्सों तक पहुंचते हैं और जानते हैं कि बिहार के संदर्भ में गवर्नर बन कर आए बूटा सिंह की क्या सियासी भूमिका थी.

अनजाने में बदल दी बिहार की सियासी सीरत
2005 का वो दौर, जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी. बिहार में चुनाव हुए. आरजेडी और जेडीयू तब अस्तित्व में आ चुकी थी. आरजेडी यूपीए का हिस्सा थी तो जेडीयू एनडीए में बीजेपी के साथ एक बड़े दल के रूप में उभरने लगा था. 2005 के फरवरी महीने में चुनाव हुए. आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी, लेकिन सहयोगी दल कांग्रेस 10 सीटों पर सिमट कर रह गई. वही एनडीए की तरफ से जेडीयू को मिली 55 सीटें, बीजेपी को 37 और उस वक्त किंगमेकर पार्टी बन कर उभरी एलजेपी को 27 सीटें मिली थी.

जब बूटा सिंह बन गए NDA के लिए विलेन
एलजेपी तब आरजेडी के साथ थी, लेकिन बावजूद इसके किसी भी पक्ष को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका था. एनडीए उभरने लगी थी और इस बीच कुछ-एक महीनों के गतिरोध के बाद शुरू हुआ विधायक तोड़ने का सिलसिला. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने एलजेपी के 12 विधायक अपनी तरफ खींच लिए. फिर एनडीए ने दावा किया सरकार बनाने का. सरकार बनने वाली थी क्योंकि एनडीए ने कुछ पक्षों से सीटों की गुहार भी लगाई थी, लेकिन उसी वक्त बूटा सिंह विलेन बन गए.

दिल्ली के इशारे पर भंग किया बिहार विधानसभा
दरअसल, दिल्ली ने इशारा किया कि बिहार में विधानसभा भंग करने का समय आ गया है. बूटा सिंह ने फौरन उस आदेश की तामील करते हुए विधानसभा भंग कर दी. लेकिन दिल्ली की यूपीए सरकार और बिहार में बैठे उनके गवर्नर दोनों से गलती हो गई. गलती ऐसी कि यूपीए बिहार हार गई.

अक्टूबर में दोबारा चुनाव हुए. इस बार न एनडीए ने गलती की और न ही जनता ने त्रिशंकु विधानसभा फिर से लाने का मन बनाया. परिणाम बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की वापसी हुई. दिल्ली में बैठी यूपीए सरकार और बूटा सिंह मन मसोस कर रह गए.

गरिमा का उल्लंघन करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाई खरी-खोटी
अब राज्यपाल की गरिमा का उल्लंघन करने पर बूटा सिंह को सुप्रीम कोर्ट ने खरी-खोटी सुनाई. राज्यपाल पद की मर्यादा और गरिमा के खिलाफ किए गया कार्य बताया. सरदार बूटा सिंह ने हठधर्मिता नहीं दिखाई बल्कि अपने इस्तीफे का तार दिल्ली भेज दिया. कुछ दिनों तक सून अवस्था में रहे और फिर दिल्ली की यूपीए सरकार ने उन्हें पार्टी भक्ति के लिए नवाजा.

एक साल बाद यानी 2006 में बूटा सिंह को एससी कमीशन के चेयरमैन की कुर्सी दे दी गई. तब से लेकर उनकी सियासत शंट वाली अवस्था में रही. बूटा का कांग्रेस के अंदर सियासी खूटा उखड़ चुका था. 

कहा जाता था कि राजीव गांधी के खासमखास रहे बूटा सिंह का कांग्रेस में सरकार गिराने का अलग ही ऑरा था. उसी ने इन्हें कांग्रेस का नंबर दो भी बनाया और बिहार का गवर्नर भी तो उसी रवैये ने उनकी राजनीति पर फुल स्टॉप भी लगा दिया.

कांग्रेस से नहीं अकाली दल से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
बूटा सिंह का सियासी सफर हालांकि, कांग्रेस से नहीं बल्कि पंजाब की क्षेत्रीय पार्टी अकाली दल से शुरू हुआ था. लेकिन कांग्रेस में आने के बाद से वह 8 बार सांसद रह चुके थे. बहरहाल, पंजाब से ताल्लुक रखने वाले बूटा सिंह को हिंसक खलिस्तान आंदोलन के बाद हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद राजस्थान शिफ्ट कर दिया गया था. वहां जालौर ने उन्हें अपनाया भी. 

बूटा सिंह पंजाब के बड़े दलित नेता के तौर पर जाने जाते हैं. वो कांग्रेस की कई सरकार का हिस्सा रहे हैं. राजीव गांधी सरकार में उन्हें गृह मंत्री की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करके उनके निधन पर शोक जताया है. बूटा सिंह नवंबर 2004 से जनवरी 2006 तक बिहार के राज्यपाल भी रह चुके हैं.

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ दलित नेता सरदार बूटा सिंह का जन्‍म 21 मार्च, 1934 को पंजाब के जालंधर जिले के मुस्तफापुर गांव में हुआ था. राजीव गांधी की सरकार में वर्ष 1984 से 1986 तक कृषि मंत्री और 1986 से 1989 तक गृह मंत्री रहे हैं. बूटा सिंह साल 1962 से 2004 के बीच आठ बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं. 

कांग्रेस नेता बूटा सिंह वर्ष 2004 से 2006 तक बिहार के राज्यपाल रहे. साथ ही वह वर्ष 2007 से 2010 तक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर बूटा सिंह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे.