पटना: कृषि कानूनों के खिलाफ किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं. सरकार और किसानों के बीच कई बार बातचीत भी हो चुकी है. लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है. किसान अपनी मांगों पर अड़े हैं कि सरकार किसी भी तरह इस कानून को वापस ले. इस बीच, किसानों कृषि कानून के खिलाफ 8 दिसंबर को 'भारत बंद' (Bharat Band) का ऐलान किया है.


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किसानों के इस बंद को कई विपक्षी दलों ने समर्थन का ऐलान किया है. जिसमें कांग्रेस, आरजेडी, जेएमएम सहित तमाम क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं. वहीं, कांग्रेस ने रविवार को मौजूदा किसानों के विरोध प्रदर्शन की तुलना बिहार के चंपारण में 1917 के किसान आंदोलन से की. पार्टी ने जोर देकर कहा कि वह किसानों को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है.


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पार्टी ने कहा, 'एक बात तय है: जब भी निष्ठुर कानून हमारे अन्नदाता के हितों को नष्ट करने का प्रयास करता है, तो पूरा देश और कांग्रेस पार्टी किसानों के कल्याण के लिए एकजुट हो जाते हैं.' किसानों पर नील की खेती पर कर लगाने के ब्रिटिश राज के फरमान से चंपारण में विरोध पैदा हुआ और किसानों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया.


कांग्रेस ने यह भी कहा, 'कोई भी अब भी सोच रहा है कि किसान विरोध क्यों कर रहे हैं, उन्हें केवल बिहार में किसानों की दुखद स्थिति को देखना चाहिए. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने मंडी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसके साथ ही एमएसपी (MSP) का आश्वासन भी समाप्त हो गया.'


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कांग्रेस शासित राज्य इन कृषि कानूनों (Agricultural Law) का विरोध करने में सबसे आगे हैं. पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा, 'किसान बड़े संकट में देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. देशभर में करोड़ों किसानों और कांग्रेस पार्टी की मांग है: मोदी सरकार को पूरे देश के कल्याण के मद्देनजर तीन किसान विरोधी किसान कानूनों को रद्द करना होगा.'


(इनपुट-आईएएनएस)