Bihar Crime Series: साल 1998...तारीख 22 फरवरी, सर्द मौसम में मोतिहारी में बाहुबली नेता की मौत ने गर्माहट पैदा कर दी थी...जब चिता जल रही थी...तब उनके समर्थकों में बदले की भावना भड़क रही थी...श्मशान घाट पर ही भांजे ने मामा की मौत का बदला लेने का ऐलान कर दिया...जी हां, हम बात कर रहे हैं रॉबिनहुड बिहार के अंडरवर्ल्ड डॉन देवेंद्र दुबे की, जो घर से निकला था इंजीनियर बनने यानी फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ पढ़ने के लिए, लेकिन बन गया अपराध की दुनिया का सबसे बड़ा नाम...जो मोतिहारी में तिहरे हत्याकांड को अंजाम देने के बाद उल्फा उग्रवादी संगठन में शामिल हो गया...आज हम इस ऑर्टिकल में उस देवेंद्र दुबे के बारे में आपको बताएंगे जिसे नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी से टिकट दिया, लेकिन चुनाव में सपोर्ट नहीं किया... फिर भी वह बन गया विधायक...।


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देवेंद्र दुबे का पश्चिमी चंपारण में रहा दबदबा


दरअसल, देवेंद्र दुबे का दबदबा पश्चिमी चंपारण में रहा, क्योंकि वह यहां के टिकुलिया गांव के रहने वाले थे. इनके पिता पुलिस के सिपाही थे. देवेंद्र दुबे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे. मैट्रिक, इंटर परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास की थी. पिताजी चाहते थे कि इंजीनियर बने. मोतिहारी के इंजीनिरिंग कॉलेज में दाखिला करवाया, लेकिन देवेंद्र दुबे बहुत मनबढ़ थे... यहां हम आपको बताते हैं कि देवेंद्र दुबे की अंडरवर्ल्ड की दुनिया में एंट्री कैसे होती है. 


देवेंद्र दुबे के गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू


कहा जाता है कि देवेंद्र दुबे के रिश्ते में आने वाली कुछ लड़कियों के साथ मनचलों ने छेड़खानी की थी. देवेंद्र दुबे ने विरोध जताया तो पिटाई हो गई. इसके बाद देवेंद्र दुबे के गिरोह ने पिटाई करने वाले छात्रों की पिटाई कर दी, लेकिन राजपूत छात्र देवेंद्र दुबे पर भारी पड़ रहे थे. फिर देवेंद्र दुबे जहां भी जाते, वहां उनकी पिटाई होने लगी.देवेंद्र दुबे के दिल में बदले की आग भड़क उठी. यहीं से देवेंद्र दुबे के गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू हो गई...दुबे ने पढ़ाई-लिखाई छोड़ दिया और कसम खा ली की अब यहां से हम सिर्फ बदला लेंगे. इस तरह धीरे-धीरे वह अपराध की दुनिया में कदम रख बैठा. 


21 जुलाई 1989 का दिन बदला लेने के लिए मुकर्रर


देवेंद्र दुबे ने 21 जुलाई 1989 का दिन बदला लेने के लिए मुकर्रर किया. वह मोतिहारी के एक जर्जर पुल के पास अपने गिरोह के साथ अभय सिंह लल्लू सिंह और तारकेश्वर सिंह से बदला लेने के लिए इंतजार कर रहा था. देवेंद्र दुबे ने अपने साथियों के साथ एक ओमनी कार का जुगाड़ किया था, जिसमें उसके गैंग के लोग अत्याधुनिक हथियार से लैस थे. पुल के पास अभय सिंह, लल्लू सिंह, तारकेश्वर सिंह एक स्कूटर से जा रहे थे. इस बीच अभय सिंह की नजर देवेंद्र दुबे पर पड़ गई. अभय सिंह को लगा कि आज दुबे अकेले नहीं है यहां से किसी तरह निकलना होगा. अभय सिंह, लल्लू सिंह और तारकेश्वर सिंह एक पतली सड़क पकड़कर भागने लगे, लेकिन कहा जाता है ना जब किस्मत खराब होती है तो...कुछ भी करिए सब बुरा ही होता है!


मोतिहारी में तिहरा हत्याकांड


जब ये तीनों भाग रहे थे तब उनकी स्कूटर का पहिया लकड़ी के पुल में फंस गया. जब तक वह स्कूटर का पहिया निकाल पाते, तब तक देवेंद्र दुबे अपने गिरोह के साथ हथियार लेकर पहुंच गया और इन तीनों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी...गोलियां तब-तक चली जबतक तीनों की मौत नहीं हो गई. इसके बाद सभी ने कंफर्म किया कि अभय सिंह, लल्लू सिंह और तारकेश्वर सिंह की बॉडी से कोई रिस्पॉन्स नहीं आ रहा है...सांसें टूट चुकी हैं...इसके बाद सभी मोतिहारी शहर की ओर भाग गए. अब यह बात तय हो गई कि देवेंद्र दुबे छोड़े नहीं जाएंगे, लेकिन देवेंद्र दुबे वहां से भाग गए और असम में उल्फा उग्रवादियों के संपर्क में आए. उसके बाद अभय सिंह के भाई अजय सिंह ने ऐलान कर दिया कि दुबे के परिवार को छोड़ेंगे नहीं, सबको खत्म कर देंगे. इस ऐलान के बाद मोतिहारी में हाहाकार मच गया. वारदात के ठीक एक साल बाद यानी बरसी के दिन अजय सिंह ने देवेंद्र दुबे के भाई भूपेंद्र दुबे जो पेशे से वकील थे, उन पर बदला लेने की नीयत से हमला किया, लेकिन इस मुठभेड़ में अजय सिंह खुद मारे गए. इसके बाद मानों मोतिहारी में डर...खौफ....दहशत का आलम व्याप्त हो गया. देवेंद्र दुबे असम के कामाख्या मंदिर से गिरफ्तार कर लिए गए. उसके बाद उन्हें बिहार लाया गया. उन्हें बिहार के मोतिहारी जेल में बंद कर दिया गया. जेल से ही देवेंद्र दुबे ने अपना अपराध का साम्राज्य चलाना शुरू कर दिया.


दुबे और विनोद में जंग


कहा जाता है कि जब देवेंद्र दुबे मोतिहारी में नहीं थे तो उस दौरान एक और बाहुबली या अपराधी पैदा हुआ, जिनका नाम विनोद सिंह था. इसके बाद जब देवेंद्र दुबे मोतिहारी जेल से अपना साम्राज्य चलाना शुरू किए तो यह माना जाने लगा कि मोतिहारी में विनोद सिंह और देवेंद्र दुबे के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो चुकी है. मोतिहारी में चर्चा आज भी होती है कि देवेंद्र दुबे का रिश्ता उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े डॉन रहे श्री प्रकाश शुक्ला और सुरजभान सिंह के साथ ही बना. 


5 साल के बच्चे के अपहरण हिला बिहार


इन्ही सबके बीच मोतिहारी में एक ऐसी घटना हुई, जिससे पूरा बिहार दहल गया. 1993 में डॉक्टर लाल बाबू के 5 वर्षीय बेटे का अपहरण हुआ और फिरौती मांगी गई... जो दे दी गई. लेकिन बच्चा फिर भी छोड़ा नहीं गया. 3 महीने बाद पता चला नवल यादव और मुन्नी यादव नाम के दो अपराधी ने 5 वर्षीय बच्चे की हत्या कर गंडक नदी में बहा दिया था. ये दोनों अपराधी दुबे गैंग के सदस्य थे. तब ये कहा जाने लगा था देवेंद्र दुबे अपराध की दुनिया से पैसा कमाता था यानी लूटता था और वह गरीबों में और अपने लोगों में पैसे को लुटा देता था वह लोगों के बीच अपनी छवि रॉबिनहुड की बनाने लगा था...।


देवेंद्र दुबे पर कोर्ट में हमला


एक बार ऐसा हुआ कि जब देवेंद्र दुबे कोर्ट में पेशी पर आए हुए थे तो कोर्ट रूम में खूब बमबाजी हुई. देवेंद्र दुबे को मारने के लिए एक छोटे अपराधी ने गोली चलाई थी. इस दौरान पुलिस ने उस अपराधी को ढेर कर दिया, लेकिन मोतिहारी शहर में आज भी यह चर्चा होती है कि देवेंद्र दुबे को कोर्ट परिसर में ही मारने के लिए पुलिस ने यह पूरी साजिश रची थी और पुलिस ने इस साजिश को छुपाने के लिए गोली चलाने वाले को मौके पर ही ढेर कर दिया.


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दुबे का सियासी सफर 


घायल देवेंद्र दुबे को अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन दुबे के लोग चाहते थे कि उनका इलाज पटना में हो...पुलिस इसके लिए तैयार नहीं थी...वहीं, देवेंद्र दुबे का जब अस्पताल में इलाज चल रहा था...तब बाहर भीड़ इतनी थी कि पुलिस के संभाल नहीं पा रही थी. तब प्रशासन को लगा कि दुबे को यहां रखना ठीक नहीं होगा. इसलिए पटना रेफर कर दिया गया. यहां से वह राजनीति दुनिया में कदम रखना शुरू कर दिए...इस दौरान नीतीश कुमार और लालू कुमार के सियासी रास्ते अलग हो गए थे...।


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डॉन से नेता बना देवेंद्र दुबे


इसके बाद नीतीश कुमार ने मोतिहारी जेल में बंद अंडरवर्ल्ड डॉन देवेंद्र दुबे को गोविंदगंज से विधानसभा का टिकट दे दिया...तब समता पार्टी का चुनाव चिन्ह मसाल होता था....जब देवेंद्र दुबे को नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया तब हंगामा हुआ कि समता पार्टी एक अपराधी को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे दिया. इसका उस समय मीडिया में और हर जगह चर्चा होने लगी कि नीतीश कुमार ने एक अपराधी को टिकट दे दिया, जिसके बाद नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडीज को लगा कि मामला बिगड़ रहा है. इसलिए उन्होंने ऐलान किया कि देवेंद्र दुबे अब समता पार्टी के प्रत्याशी नहीं है, लेकिन यहां एक पेंच फंस जाता है, क्योंकि देवेंद्र दुबे ने अपना नामांकन समता पार्टी के चुनाव के लिए किया था...इसलिए नामांकन हो जाने के बाद चुनाव चिन्ह नहीं बदला जा सका...देवेंद्र दुबे समता पार्टी के बगैर सपोर्ट के जेल में रहते हुए चुनाव जीत जाते हैं...वहीं, नीतीश कुमार के सामने अब यह धर्म संकट आ जाता है कि वह अपनी ही पार्टी के विधायक को अपना विधायक नहीं कह पाते, क्योंकि उन्होंने पहले ही देवेंद्र दुबे को अपना उम्मीदवार होन से मना कर दिया था...


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22 फरवरी 1998 में हत्या


देवेंद्र दुबे का सियासी सफर चल रहा था कि 22 फरवरी 1998 में उनकी हत्या हो जाती है. देवेंद्र दुबे को गोलियों से छलनी कर दिया गया था... देवेंद्र दुबे की हत्या से पूरी मोतिहारी में हाहाकार मच गया था...तब कहा गया था कि लालू प्रसाद यादव के इशारे पर देवेंद्र दुबे की हत्या हुई है...वहीं, जब देवेंद्र दुबे की चिता जल रही थी, तब उनके भांजे ने मामा की मौत का बदला लेने का ऐलान किया था...


तो आज के इस क्राइम सीरीज के एपिसोड में बिहार के उस बाहुबली नेता और अपराध की दुनिया में राज करने वाले देवेंद्र दुबे के बारे में हमने आपको बताया...जो कैसे बनने गया था इंजीनियर, लेकिन बन गया बिहार का सबसे बड़ा माफिया...अब हमें इजाजत दीजिए और हम आपके लिए क्राइम सीरीज के अगले एपिसोड में किसी और क्राइम के किंग की ऐसी रोचक स्टोरी लेकर आएंगे...नमस्ते...!!!!