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Darbhanga: बिहार के मिथिलांचल में कहा जाता है पग-पग पोखर माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान. विद्या, वैभव शांति प्रतीक, इथीक मिथिल की पहचान.' मिथिला की पहचान पोखर (तालाब), मछली, पान और मखाना से जुड़ी हुई है. मिथिलांचल के मखाना की दीवानगी न केवल देश में बल्कि विदेशों से भी जुड़ी हुई है. वैज्ञानिक मखाना को लेकर नए-नए शोध कर नई प्रजाति विकसित कर रहे हैं, जिससे किसानों को लाभ भी हो रहा है, लेकिन यहां के मखाने को सही ढंग से बाजार नहीं उपलब्ध होने के कारण किसानों को वह लाभ नहीं मिल पा रहा है, जिसके वे हकदार हैं.
मखाने का 90 प्रतिशत उत्पादन होता है यहां
बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित 11 जिलों में मखाना की खेती होती हैं. देश भर में मखाने के कुल उत्पादन का 90 प्रतिशत बिहार के मिथिलांचल में होता है. आंकड़ों के अनुसार, बिहार की 35 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना की खेती होती है. बिहार के दरभंगा क्षेत्र में मखाना उत्पादन को देखते हुए मखाना अनुसंधान केंद्र की स्थपना की गई. इस केंद्र के स्थापित होने के बाद मखाना की खेती में बदलाव जरूर आया है.
नई तकनीक की वजह से बढ़ी पैदावार
मखाना अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. इंदु शेखर सिंह कहते हैं कि नई तकनीक से मखाना की पैदावार बढ़ी है. उनका कहना है कि आमतौर पर यहां के तालाबों में गहराई अधिक होती है, जिस कारण काफी बीज तालाब में ही रह जाता है.
उन्होंने बताया कि मखाना की खेती पारंपरिक रूप से तालाबों में की जाती है लेकिन अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने नई प्रजाति 'स्वर्ण वैदेही' विकसित किया है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है. उन्होनें बताया कि अब खेतों में ही एक फीट जलभराव कर मखाना उत्पादन किया जा रहा है. आमतौर पर मखाना की फसल तैयार होने में 10 महीने का समय लगाता है लेकिन इस प्रजाति की फसल कम समय में तैयार हो रही है और उत्पादन में भी वृद्धि हुई है.
फिलहाल, मखाना को बड़ा बाजार मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी गुणवत्ता को बढावा देने के क्रम में छोटे और बडे कार्यक्रमों के आयोजन कर भी इसके उपयोग को और इसकी पहचान को बढ़ाई जा सकती है.
(इनपुट आईएएनएस के साथ)