Deoghar: झारखंड के देवघर में स्थित बैद्यनाथ धाम (Baba Baidyanath) में भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में नौवां ज्योतिर्लिंग है. यहां हर दिन लाखों शिव शिवभक्त दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन सावन के महीने में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ जाती है. साथ ही, प्रतिदिन यहां लाखों भक्त आकर जलाभिषेक करते हैं. 


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रावण के कारण बना था बैद्यनाथ धाम
पुरानी कथाओं के अनुसार, दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तपस्या कर रहा था. परन्तु उसकी तपस्या से भगवन शिव खुश नहीं हो रहे थे. वहीं, रावण एक-एक करके अपना सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने लगा. इसी के चलते 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10 वां सिर चढ़ाकर अपने प्राण देने लगा था तो वहीं, भगवान शिव रावण से खुश हो गए. 


उन्होंने रावण से खुश होकर उसे दर्शन दिए और उसे वरदान मांगने के लिए कहा तब रावण ने भगवान शिव से लंका साथ चलने का वरदान मांग लिया. इस पर भगवान शिव ने खुद लंका जाने से मना कर दिया. लेकिन भगवान शिव ने रावण को शिवलिंग ले जाने को कह दिया. 


साथ ही उन्होंने एक शर्त रखी कि अगर उसने शिवलिंग को रास्ते में कहीं भी रखा तो भगवान शिव फिर वही विराजमान हो जाऊंगा और कभी भी नहीं उठूंगा. इधर, भगवान शिव की बात सुनते ही सभी देवी-देवता परेशान हो गए. साथ ही, समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए तभी भगवान विष्णु ने उनकी परेशानी दूर करने को कहा.


विष्णु ने लिया ग्वाला का रुप लेकर किया छल 
दूसरी ओर भगवान विष्णु नहीं चाहते थे कि यह ज्योतिर्लिंग लंका पहुंचे. इसे देखते हुए उन्होंने गंगा को रावण के पेट में समाने को कहा. वहीं, रावण के पेट में गंगा के आने के बाद रावण को लघुशंका की इच्छा हो उठी. इसके बाद वह उसने ज्योतिर्लिंग एक बैजू नामक ग्वाला को पकड़ने के लिए दे दिया और वह लघुशंका करने चला गया.  


रावण जब लघुशंका करने लगा तो लघुशंका करने की उसकी इच्छा समाप्त नहीं हो रही थी. वह कई घंटों तक लघुशंका करता रहा और आज भी वहां एक तालाब है जिसे रावण की लघुशंका से उत्पन्न तालाब कहा जाता है. वहीं, काफी देर के तक जब वह नहीं लौटा तो वह ग्वाला शिवलिंग को जमीन पर रखकर चला गया.


इसके बाद रावण जब लौटकर आया तो उसने शिवलिंग को बहुत उठाने की कोशिश की लेकिन वह उठा नहीं पाया. अंत में रावण उसे अंगूठे से दबा कर वही पर छोड़कर चला गया. वास्तव में बैजू नामक ग्वाला भगवन विष्णु ही एक ग्वाला के रुप में थे इसलिए इस स्थान को बैजू नामक ग्वाला नाम पर बैजनाथ भी कहा जाता है. आज वह शिवलिंग झारखंड के देवघर में स्थित बैजनाथ और बाबा धाम से जाना जाता है.


सबसे पहले शिवलिंग की पूजा 
काफी दिनों के बाद बैजनाथ नामक चरवाहे को इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन हुए. फिर वह रोज इसकी पूजा करने लगा इसलिए इस पावन धरती का नाम वैद्यनाथ धाम हो गया. शिव पुराण के अनुसार, बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की है. 


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मां सती से भी जुड़ी है इस शिवलिंग की कहानी
कथाओं के अनुसार,  जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, तो सती बिना शिव की अनुमति लेकर मायके पहुंच गई और पिता द्वारा शिव का अपमान किए जाने के कारण उन्हें मृत्यु का वरण किया. सती की मृत्यु सूचना पाकर भगवान शिव गुस्सा हो गए और सती के शव को कंधे पर लेकर घूमने लगे. 


देवताओं की प्रार्थना पर  शिव को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित कर दिया. सती के अंग जिस-जिस स्थान पर पहुंचे. वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए और कहा जाता है कि यहां सती का हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान 'हार्दपीठ' से भी जाना जाता है.