हिन्दू धर्म के अनुसार, जहां-जहां माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ के मंदिर स्थापित है.
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Mithila: मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था. मिथिला वर्तमान में एक सांस्कृतिक क्षेत्र है जिसमे बिहार के तिरहुत, दरभंगा, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया शामिल हैं. बिहार के मिथिला का अनेकों देवियों के मंदिरों का शक्तिपीठ माना जाता है. यह पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारत में स्थापित हैं और यह अत्यंत पावन तीर्थस्थल कहलाते हैं. मिथिला शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों और हिन्दूओं के धार्मिक स्थलों में से एक है.
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हिन्दू धर्म के अनुसार, जहां-जहां माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ के मंदिर स्थापित है. लोगों की उस स्थान से एक नई आस्था जुड़ गई है. वहीं, यहां हर रोज लाखों की संख्या में भक्त अपनी- अपनी मांयतों लेकर आते है. यह आपका विश्वास या मस्तिष्क का विचार ही है कि मंदिर में बैठकर वह इतना शक्तिशाली हो जाता है कि वह देवता तक पहुंच जाता है.
जानकारी के अनुसार, इस शक्तिपीठ में माता सती के बांये कंधे का आकर गिरे थे. वहीं, मिथिला शक्तिपीठ (Mithila Shakti Peeth) के स्थान को लेकर अभी भी मतभेद है और सही स्थान को लेकर अनेक बातें कही जाती है. मिथिला शक्तिपीठ को तीन मुख्य स्थानों के मंदिरों के शक्ति पीठ माना जाता है.
वहीं, पहला स्थान नेपाल में माना जाता है, जो जनकपुर से 15 किलोमीटर पूर्व की ओर मधुबनी के उच्चैठ स्थान पर वनदुर्गो मंदिर हैं. दूसरा स्थान को भारत के बिहार राज्य में समस्तीपुर से 61 किलोमीटर दूर और सलौना रेलवे स्टेशन से नौ किलोमीटर दूर जयमंगला देवी मंदिर हैं और तीसरा स्थान को भारत के बिहार राज्य में सहरसा स्टेशन के पास स्थित उग्रतारा मंदिर हैं.
मिथिला शक्तिपीठ भारत और नेपाल की सीमा पर दरभंगा में स्थित है. यह स्थान अन्य स्थानों से ज्यादा लोकप्रिय है. इस मंदिर में देवी उमा और भगवान महोदर की मूर्ति इस मंदिर में स्थापित है. इस शक्तिपीठ की उमा और महादेवी के रूप पूजा की जाती है.
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पुरानी कथाओं के अनुसार, देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे. वहीं, भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण में चक्कर लगा रहे थे.
इसी के चलते भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में कांट दिया था. इससे सती माता की बांया कंधा मिथिला में आकर गिरे थे इसलिए यहां माता के बांये कंधे की पूजा की जाती है.