Spritual News: कैसे बिहार और झारखंड योग के जरिए जोड़ता है दुनिया को, रिखिया गांव से मुंगेर तक की ये है कहानी
Advertisement

Spritual News: कैसे बिहार और झारखंड योग के जरिए जोड़ता है दुनिया को, रिखिया गांव से मुंगेर तक की ये है कहानी

योग आज दुनिया के जनमानस में स्वास्थ्य के प्रति सजगता पैदा करने का माध्यम बन गया है. लेकिन, क्या आपको पता है कि बिहार और झारखंड के दो योग आश्रम पूरी दुनिया को योग के जरिए जोड़ने का काम करते हैं.

फाइल फोटो

Spritual News: योग आज दुनिया के जनमानस में स्वास्थ्य के प्रति सजगता पैदा करने का माध्यम बन गया है. लेकिन, क्या आपको पता है कि बिहार और झारखंड के दो योग आश्रम पूरी दुनिया को योग के जरिए जोड़ने का काम करते हैं. 1964 में बिहार के मुंगेर में दुनिया के पहले योग आश्रम की स्थापना की गई और आज इसकी शाखाएं पूरी दुनिया में 77 से ज्यादा देशों में चलती हैं. 1964 में मुंगेर में स्थापित इस योग विश्वविद्यालय की वजह से ही इस शहर को योग नगरी के नाम से भी जाना जाता है. इसे नाम दिया गया बिहार स्कूल ऑफ योग. गंगा नदी के किनारे पर स्थित इस विश्वविद्यालय में हर साल पूरी दुनिया के देशों से बड़ी संख्या में लोग योग की शिक्षा लेने आते हैं. 

ऋषिकेश से चलकर मुंगेर की धरती पर पहुंचे थे स्वामी शिवानंद जिनकी सोच को शिष्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने दिया आकार 
स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपने गुरु स्वामी शिवानंद की सोच को साकार रूप देने के लिए इस योग विश्वविद्यालय की स्थापना यहां की. इसने डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त किया और इसमें दो वर्ष के कोर्स की व्यवस्था है. बता दें कि 1937 में स्वामी सत्यानंद के गुरु स्वामी शिवानंद का मुंगेर की धरती पर ऋषिकेश से आना हुआ था. साल 1964 में जब इस योग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई उसी साल स्वामी शिवानंद ने समाधी ले ली. स्वामी निरजनानंद सरस्वती इस समय इस विश्वविद्यालय का अपनी देखरेख में संचालन कर रहे हैं. उन्हें इस काम के लिए पद्म भूषण और प्रधानमंत्री सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. 

ये भी पढ़ें- Chhath Puja 2023: क्या आपको पता है कि छठ पर्व को और किन नामों से जाना जाता है?

योग को लेकर इस विश्वविद्यालय का योगदान कितना सराहनीय है इसका अंदाजा इस बाद से लगाइए कि इसके संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग के ऊपर 300 से ज्यादा किताबें लिख डालीं जो योग के सिद्धांतों पर नहीं बल्कि प्रयोगों पर लिखी गई हैं. 

ये भी पढ़ें- Chhath Puja 2023: छठ पूजा करते हैं तो क्या आपको पता है कि कौन है छठी मैया?

जब मुंगेर से चलकर देवघर के रिखिया गांव के समीप पहुंचे स्वामी सत्यानंद सरस्वती
झारखंड में बाबा की नगरी बैद्यनाथ धाम यानी देवघर भी पूरी दुनिया में योग आश्रम के लिए एक खास पहचान रखता है. यहां सितंबर 1989 को स्वामी सत्यानंद सरस्वती का आना हुआ और उन्होंने जंगलों से आच्छादित इस भूमि पर एक पर्णकुटीर बनाई. यहां के आदिवासी दिन-दुनिया से बिल्कुल कटे जी रहे थे. न सड़क ना बिजली. ऐसे में उन्होंने रिखिया को इपनी नई कर्मभूमि बना लिया. फिर क्या था इलाके में विकास की लहर चल पड़ी यहां बच्चियां शिक्षा में पारंगत होने लगी. शास्त्रीय संगीत और भरतनाट्यम में उनका कोई तोड़ नहीं था. अल्मोड़ा में जन्मे और यहां तक चलकर आए स्वामी सत्यानंद सरस्वती का अंतिम समय इसी रिखिया गांव में बीत. 5 दिसबंर 2009 को उन्होंने यहीं परमसमाधी ले ली. रिखिया पीठ के नाम से तब से इस गांव को दुनिया के नक्शे पर एक अलग पहचान मिली. इस रिखिया पीठ का संचालन अपनी देखरेख में स्वामी सत्यानंद सरस्वती की शिष्या स्वामी सत्संगानंद सरस्वती कर रही हैं.  

 

Trending news