कोडरमाः Chhath Puja 2023: लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर बांस के बने सूप और दउरा की डिमांड बढ़ गई है, लेकिन मेहनत और लागत के अनुसार सूप और दउरा तैयार करने वाले कारीगरों को उचित आमदनी नहीं हो पाती है. कोडरमा के झुमरीतिलैया के असनाबाद में तूरी समुदाय के 30 ऐसे परिवार हैं, जो सालों भर बांस के बने सूप और दउरा तैयार करते हैं. छठ के मद्देनजर इसकी डिमांड भी बढ़ गई है, ऐसे में परिवार के सभी लोग सूप और दउरा बनाने में जुटे हैं. 


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सूप की डिमांड बाजार में डिमांड बढ़ी
पहले कई चीज आसान हुआ करती थी. जंगल से इन परिवारों को आसानी से बांस मिल जाया करता था, लेकिन अब बांस भी इन्हें खरीद कर लाना पड़ता है. इसके अलावा पीतल और कांसा के बने सूप भी इसके विकल्प के रूप में बाजारों में आ गए हैं. जिसके कारण थोड़ी डिमांड कम हुई है. 


सूप और दउरा का छठ में खास महत्व
हालांकि बांस के बने सूप और दौरा की प्रमाणिकता का छठ पर्व में खासा महत्व है. कीमत कम होने के कारण गरीब परिवारों के लिए भी यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है. 


बेहतर आमदनी से जीवन स्तर में हो सकता है सुधार
इन परिवारों का मानना है कि अगर इन्हें बेहतर आमदनी हो तो उनके जीवन स्तर में भी सुधार हो सकता है. हालांकि लागत और मेहनत के बावजूद कम आमदनी होने के बाद भी ये लोग अपने पुश्तैनी व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं और छठ के मौके पर बाजार की डिमांड को पूरा करने में जुटे हैं. 


वार्ड पार्षद घनश्याम तुरी ने बताया कि पीतल और कांसा के सुप होने के बावजूद भी ज्यादातर लोग बांस के बने सूप और दउरा में ही छठ करना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि इसकी शुद्धता ज्यादा होती है. इसके अलावा इसका प्राकृतिक रूप से जुड़ाव भी होता है.


इनपुट-गजेंद्र सिन्हा


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