छात्रों का कहना है कि जब शिक्षक ही समय पर नहीं आते हैं तो पढ़ाई कैसे होगी.
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प्रीमत कुमार, पटना : भारत सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून बना दिया है. अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था लागू भी करा दी है. देश के राज्यों में सर्वशिक्षा अभियान चल रहा है, जिस पर सालाना अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं. लेकिन क्या इन पैसों का उपयोग हो रहा है? क्या स्कूलों में पढ़ने वाले इस लायक हैं कि वे प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो सकें?
प्रतियोगी परीक्षाओं में पास होने की बात तो दूर देश में आठवीं पास 56 फीसदी बच्चे सामान्य गणित का भी हल नहीं कर सकते हैं. एक एनजीओ प्रथम की एक रिपोर्ट (एएसईआर) में इसका खुलासा हुआ है.
रिपोर्ट आने के बाद जी मीडिया ने पटना के कई सरकारी स्कूलों के बच्चों का नब्ज टटोलने की कोशिश की. जानना चाहा कि क्या सरकारी स्कूलों में पांचवीं क्लास तक के बच्चे वास्तव में गणित का हल नहीं कर सकते हैं. जो बात सामने आयी वह यकीनन निराश करने वाली है. हमने पटना के एएन कॉलेज पानी टंकी इलाके स्थित प्राथमिक स्कूल के बच्चों को गुणा और भाग करने के लिए कहा. सिर्फ एक छात्र और एक छात्रा ही गणित के सवाल का हल कर सके.
ऐसे हालात सिर्फ इस स्कूल के ही नहीं थे, बल्कि राजधानी पटना के बीच में स्थित राजकीय कन्या मध्य विद्यालय अदालतगंज के बच्चों से भी गणित और सामान्य ज्ञान के सवाल पूछे, लेकिन एक-दो को छोड़कर किसी के पास जवाब नहीं थे. कुछ बच्चे तो पहारा भी सही तरीके से बोर्ड पर नहीं लिख पाए. हालांकि कुछ बच्चे और छात्राएं जरूर दिखीं जो जानकारी से लबरेज थे.
छात्रों के मुताबिक, शिक्षक ही समय पर नहीं आते हैं तो पढ़ाई कैसे होगी. वहीं, प्रिंसिपल शारदा कुमारी ने कहा कि कुछ विषयों के शिक्षक ही नहीं हैं तो परिणाम पर असर पड़ेगा ही.
सिर्फ बिहार में शिक्षा पर सालाना 32 हजार करोड़ रुपए खर्च होते हैं. 2018-19 के बजट में शिक्षा के लिए 32 हजार करोड़ का बजट आवंटित है, लेकिन इतने पैसे झोंकने के बावजूद स्थिति निराश करने वाली है.
अब आपको बताते हैं कि एनजीओ प्रथम की रिपोर्ट में आखरि है क्या:
बिहार राज्य माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने शिक्षा के हालात में आई गिरावट पर बेबाक टिप्पणी की है. शत्रुघ्न प्रसाद सिंह ने कहा है कि शिक्षकों से वोटर लिस्ट, खाना बनाने जैसे काम लिए जाते हैं. यानी शिक्षा के अलावा हर काम करवाए जाते हैं. ऐसे में बच्चों का भविष्य कैसे बेहतर होगा. सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को छह महीने में एक बार वेतन मिलती है.
वहीं, बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा एनजीओ प्रथम की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं. उनके मुताबिक, बिहार में पिछले 15 वर्षों में शिक्षा पर बेहतर काम हुआ है. साइकिलें बांटी गई हैं. किताबें दी गई हैं और एक खुला माहौल छात्रों के लिए बना है.