जब बिहार के एक विधानसभा सीट पर मां-बेटे के बीच हुई चुनावी जंग, जानें क्या रहा था परिणाम
Mother Day: बिहार के नवादा जिले में अपनी मां को चुनावी जंग में चुनौती देने के लिए बेटा ने भरा पर्चा तो लोगों को लगा कि दोनों में से कोई पर्चा वापस लेगा. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ.
Patna: आज (9 मई को) दुनिया भर में मदर्स डे (Mothers Day) मनाया जा रहा है. करीब 110 साल से यह परंपरा या कहें इस खास दिन को सेलिब्रेट करने की परंपरा चली आ रही है.
इस खास दिन के मौके पर हम सभी अपनी मां के प्रति अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं. हम नौ माह तक अथाह कष्ट सहकर जन्म देने वाली मां के प्रति अपने प्यार व जज्बात को प्रकट करते हैं.
आज आपने मां व बच्चों के बीच प्रेम, प्यार, जज्बात से जुड़ी इस तरह की कई कहानी पढ़ी होगी. लेकिन, आईये आज जानते हैं मां-बेटे की एक ऐसी कहानी के बारे में जो राजनीति से जुड़ी है.
यह कहानी बिहार के नावादा जिले की है, जहां मां और बेटा एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में थे और इसका साक्षी उनके विधानसभा के मतदाता थे.
दरअसल, यह बात उस समय की है जब नवादा (Nawada) के गोविंदपुर विधानसभा सीट (Gobindpur Assembly seat) पर मां गायत्री देवी (Gaytri Devi) अपने बेटे कौशल यादव (Kaushal Yadav) के खिलाफ चुनावी मैदान में आमने-सामने थी. मां-बेटे के बीच इस चुनावी जंग में आम लोगों के लिए यह तय करना मुश्किल हो जाता था कि आखिर वह किसे अपना मत दें.
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कौशल यादव अपने पिता की विरासत संभालना चाहते थे लेकिन मां ने दी चुनौती
ज्ञात हो कि 1969 सीट पर पहली बार कौशल यादव के पिता युगल किशोर सिंह यादव चुनाव जीते थे. इसके बाद 1972 और 1977 में उनकी हार हुई. लेकिन, 1977 के बाद इस विधानसभा सीट पर युगल किशोर सिंह यादव की पत्नी गायत्री देवी चुनाव लड़ने लगी. 1980, 1985 और 1990 के चुनाव में गायत्री देवी कांग्रेस के टिकट पर लड़ीं और जीत भी गईं. इसके बाद 1995 में हार के बाद वह 2000 में फिर से चुनाव जीत गई. लेकिन, फिर 2000 और 2005 में अपनी मां गायत्री देवी को उनके बेटे कौशल यादव ने ही चुनौती दी.
लोगों को लगा था कि मां-बेटे में कोई पर्चा वापस लेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ
इस चुनावी मुकाबले पर बिहार के काफी सारे लोगों की नजर थीं. इस सीट के लोगों के लिए तो तब रोचक हो गया जब उनके बेटे कौशल यादव कांग्रेस के टिकट पर गोविंदपुर प्रत्याशी बन गए. लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि मां-बेटा एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. मतदाताओं को यह लग रहा था कि नाम वापसी में कोई एक इन दोनों में से पर्चा वापस ले लेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
पहली बार मां ने बेटे को हराया तो दूसरी बार बेटे को मिली जीत
मां-बेटे के बीच जारी सियासी गहमा-गहमी की वजह से यह विधानसभा सीट काफी चर्चे में आ गया था. साल 2000 में जब मां राजद से चुनाव लड़ी तो बेटे ने कांग्रेस पार्टी से उन्हें चुनौती दी. लेकिन, इस चुनावी लड़ाई में मां अपने बेटे पर भारी पड़ी और चुनाव पांचवी बार जीतने में सफल हुई. इसके बाद बेटे ने अगली चुनाव राजद से लड़ने का मन बनाया, इसके लिए वह कांग्रेस छोड़ राजद से जुड़ गए. उन्हें भरोसा था कि मां गायत्री देवी के बजाय पार्टी उसे ही टिकट देगी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. राजद ने एक बार फिर से 2005 में गायत्री को उम्मीदवार बनाया. इस बार कौशल यादव फिर से अपनी मां के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन इस बार कौशल यादव को जीत मिली. हालांकि, इसके बाद इस विधानसभा सीट से फिलहाल न तो गायत्री देवी और न ही उनका बेटा कौशल यादव चुनाव लड़ते हैं. इस सीट से पिछला चुनाव कौशल यादव की पत्नी जदयू टिकट पर लड़ी थी.