प्रेतशिला वेदी पर सदियों से प्रेत के नाम से पिंडदान करने की परंपरा चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि अकाल मृत्यु होने के बाद जिनकी आत्माएं भटकती रहती है. उनकी आत्मा की शांति के लिए उसके वंशज प्रेतशीला वेदी पहुंचकर पिंडदान तर्पण करते हैं.
शास्त्रों में इस पर्वत को प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकला एवं प्रेतगिरि के नाम से भी जाना जाता है. प्रेतशिला पहाड़ी की चोटी पर एक चट्टान पर भगवान ब्रह्मा,विष्णु और महेश की मूर्ति बनी हुई है. पिंडदानियों द्वारा पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा कर के उस पर सत्तू से बना पिंड उड़ाने की परंपरा है.
बताया जाता है कि प्रेतशिला पहाड़ी पर सत्तू से पिंडदान करने की पुरानी परंपरा है. कहा जाता है कि प्रेतशिला वेदी पर पिंड देने से पितरों को मोक्ष की गति प्राप्त होती है. इस स्थान पर ब्रह्मकुंड और प्रेतशिला दो वेदी है.
ऐसी मान्यता है कि प्रतशिला पहाड़ी पर आज भी भूत प्रेत का वास रहता है. रात के समय इस पहाड़ी पर प्रेत के भगवान है. ऐसे में शाम 6 बजे के बाद यहां कोई नहीं रुकता है. कहा जाता है कि जिन लोगों के उपर भूत प्रेत का साया होता है वो उस पर्वत की तरफ खिंचा चला आता है.
गया शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रेतशिला पहाड़ लगभग 975 फीट ऊंचाई पर स्थित है. इस पहाड़ के आसपास हल्के हल्के जंगल भी हैं. पहाड़ चढ़ने के लिए आपको 676 सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना होता है.
ट्रेन्डिंग फोटोज़