Holi 2021: Bihar के इस गांव से हुई थी होली की शुरुआत, यहां के कई लोग ही नहीं जानते यह बात
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Holi 2021: Bihar के इस गांव से हुई थी होली की शुरुआत, यहां के कई लोग ही नहीं जानते यह बात

Holi 2021: बिहार के पूर्णिया जिले के सिकलीगढ़ में यह स्थान स्थित है, जहां होलिका भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता के बीच बैठ गई थी. इस गांव को धरहरा के नाम से जाना जाता है.

 

बिहार के इस गांव से हुई थी होली की शुरुआत. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Patna: यह तो सब जानते हैं कि होलिका ने अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में बैठाकर आत्मदाह किया था, जिसमें होलिका जल गई थी और प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ था. जैसा कि होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती थी. लेकिन विष्णु भक्ति करने के कारण प्रहलाद बच गया था. यह कहानी सब जानते हैं. लेकिन यह बहुत ही कम ही लोग जानते हैं कि जहां पर यह घटना घटी थी वह जगह भारत में कहां स्थित है.

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प्रह्लाद को गोदी में लेकर बैठती थी होलिका
दरअसल, यह स्थान बिहार के पूर्णिया जिले के सिकलीगढ़ में स्थित है. यहां होलिका भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता के बीच बैठ गई थी. इस गांव को 'धरहरा' के नाम से जाना जाता है. यहीं माणिक्य स्तंभ नामक खंभे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था. इस स्तंभ के लिए कहा जाता है कि इस स्तंभ को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया है. लेकिन यह टूटा नहीं. पूर्णिया जिला के सिकलीगढ़ के बुजुर्गों का कहना है कि प्राचीन काल में 400 एकड़ में एक टीला था जो अब सिमटकर 100 एकड़ रह गया है. 

राख-मिट्टी से खेली जाती है होली
माना जाता है कि यहां पर एक हिरन नामक नदी बहती थी. वहीं, गांव के लोग बताते हैं कि कुछ वर्षों पहले तक नरसिंह स्तंभ में जो छेद है, उसमें पत्थर डालने से हिरन नामक नदी में पत्थर पहुंच जाता था. यहां मौजूद माणिक्य स्तंभ लाल ग्रेनाइट से बना है और इस स्तंभ का आगे का हिस्सा ध्वस्त है. जानकारी के अनुसार, यह जमीन की सतह से करीब 10 फुट ऊंचे और 10 फुट व्यास (Diameter) के इस स्तंभ का अंदरूनी हिस्सा पहले खोखला था. इसमें जब श्रद्धालु पैसे डालते थे तो स्तंभ के भीतर से 'छप-छप' की आवाज आती थी. इससे अनुमान लगाया जाता था कि स्तंभ के निचले हिस्से में जल है. इस स्थान की खास बात यह है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है.

इसलिए राख-मिट्टी से खेली जाती है होली
बता दें यहां के लोगों का मानना है कि जब होलिका मर गई थी और प्रह्लाद चिता से वापस आ गया था. उस वक्त प्रहलाद के आने की खुशी में राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगाकर खुशी मनाई गई थी और तभी से होली मनाई जाती है. यहां आज भी होलिका दहन के समय 40 से 50 हजार श्रद्धालु आते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं.

(इनपुट-स्नेहा अग्रवाल)