Ramgarh: होली (Holi 2021) रंगों का त्योहार है. लेकिन आजकल रंगों में होने वाले केमिकल के इस्तेमाल के चलते आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इस कारण आज कई चिकित्सक प्राकृतिक रंगों या कहें हर्बल रंगों से होली खेलने की सलाह देते हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल में रामगढ़ में पलाश के फूल लोकप्रिय है. होली आने वाली है और झारखंड के गांवों में लोग पलाश के फूल तोड़ने में लगे हैं.


ये भी पढ़ें- फुलवरिया से पटना पहुंच चुके लालू का नहीं बदला अंदाज, ऐसे होती थी RJD चीफ की 'कुर्ता फाड़' होली


दरअसल, रामगढ़ जिले के ग्रामीण इलाकों में लोग प्राकृतिक होली खेलना पसंद करते हैं. जिसके लिए फूलों से रंग निकाला जाता है और लोग होली का त्योहार पलाश के फूलों को रंग में तब्दील कर मनाते है. झारखंड के CM Hemant Soren के पैतृक गांव नेमरा में भी ग्रामीणों ने फूलों से रंग बनाना शुरू कर दिया है.


बता दें कि कोरोना (Corona) काल में लोगों में प्राकृतिक और घरेलू चीजों की डिमांड बढ़ी है. होली के मौके पर पिछले कुछ समय से हर्बल रंगों का चलन बढ़ा है. लेकिन रामगढ़ के नेमरा और उसके आसपास के गांव में लोग सदियों से हर्बल रंगों से ही होली खेलते आ रहे हैं और ये रंग पलाश के फूलों से बनाए जाते हैं.


ये भी पढ़ें- Holi 2021: मगध की बुढ़वा होली का इतिहास, जानिए क्या हैं इसमें खास


बसंत आते ही पलाश के फूलों की खूबसूरती बढ़ने लगती है. फिर पलाश के इन्हीं फूलों से होली में रंग बरसता है. होली पर इन फूलों की अहमियत बेहद बढ़ जाती है. पलाश के पूलों को तोड़ने के लिए ग्रामीण टोलियां बनाकर जंगलों में जाते हैं और फूल तोड़कर लाने के बाद रंग बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है. 


सबसे पहले फूलों को सुखाया जाता है, फिर पीसा जाता है और उसके बाद पानी में उबालकर उससे पक्का रंग बनाया जाता है. जहां आज के समय में शहर के लोग मिलावटी रंग और गुलाल से परेशान रहते हैं, वहीं नेमरा और उसके आस-पास के गांवों में पलाश के फूलों से बने रंग अलग ही रंगत बिखरते हैं. 


झारखंड के आदिवासी समुदाय आज भी अपनी परंपरा और जड़ों से जुड़े हुए हैं. प्रकृति की पूजा करना, उसे संजोना, यहां के आदिवासियों की संस्कृति का हिस्सा है. ऐसे में होली पर प्रकृति से मिले रंग का इस्तेमाल करना भी उन्हें प्रकृति से जोड़े रखता है.