गोड्डाः दशकों से प्यास बुझाने वाली कझिया नदी आज खुद एक बूंद के लिए तरस रही
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गोड्डाः दशकों से प्यास बुझाने वाली कझिया नदी आज खुद एक बूंद के लिए तरस रही

झारखंड स्थित गोड्डा जिले की कझिया नदी किनारे सैकड़ों गांव बसे हुए हैं. साथ ही हजारों किसानों की जिंदगी इस पर निर्भर रहती है.

कझिया नदी का पानी सूख चुका है. (फाइल फोटो)

राघव मिश्रा/गोड्डाः झारखंड स्थित गोड्डा जिले की कझिया नदी किनारे सैकड़ों गांव बसे हुए हैं. साथ ही हजारों किसानों की जिंदगी इस पर निर्भर रहती है. कझिया नदी हजारों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई का एक मात्र सहारा है. लेकिन आज की वर्तमान स्थिति ऐसी हो गई है कि यह नदी खुद अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है. बालू से भरा हुआ इसका किनारा आज गंदगी से पटा हुआ है. पिछले कई दशकों से गोड्डा शहर के पेयजल के लिए यह नदी एक मात्र सहारा थी, जो आज खुद एक एक बूंद के लिए तरस रही है.

बालू माफियाओं ने यहां के चंद पदाधिकारियों और चंद ग्रामीणों के साथ मिलकर इस नदी की खूबसूरती को छीन लिया है. कुछ घाटों के बंदोबस्ती होने के बावजूद लगभग पूरी नदी के बालू को समाप्त कर दिया. वैध-अवैध की चक्की में पिस कर कझिया नदी आज दम तोड़ रही है.

पिछले कुछ सालों से गोड्डा के पूर्वी भाग के कुछ गांव के युवा आगे आए हैं. जिन्हें गांव के कुछ बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त है. वह कझिया नदी बचाने की मुहिम चला रहे है. किसानों के द्वारा आमरन अनशन सिर्फ पैदावार बचाने और नदी को बचाने के लिए किया जा रहा है. उनका कहना है कि हमारी सरकार से मुख्य मांग यह है कि सबसे पहले अविलम्ब वैकल्पिक व्यवस्था करें और साथ ही सिंहवाहिनी नदी में चेक डेम का निर्माण करवाएं.

हालांकि यह गैर राजनीतिक मंच होते हुए भी इस आंदोलन का कुछ मंझे हुए नेता और राजनीतिक दल हमेशा अपने स्वार्थ और अपनी राजनीति चमका लेते हैं. आज फिर से एक आंदोलन को बुलंद कर कुछ युवा आमरण अनशन पर बैठे हैं. 

किसानों ने मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था जिस पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने जिला के पदाधिकारियों से इस नदी पर चेक डैम बनाने के लिए जमीन तलाशने को कहा था. पदाधिकारियों ने रिपोर्ट में लिख कर भी दिया था कि अत्यधिक बालू उठाव के कारण सिंचाई का काम बाधित हो चुका है. इसके बावजूद उत्खनन का काम जोरों पर चल रहा है.

हालांकि किसानों की इस स्थिति को देखते हुए कुछ बीजेपी नेता भी समर्थन में आये हैं. उनका कहना है कि किसानों का मुख्य आहार खेती ही सभी जमा पूंजी को लगा देने के बावजूद अगर पानी के बिना उपज नहीं हुई तो सचमुच किसान जान देने के कागार पर हैं.