Bihar Farmers: आलू की परंपरागत खेती छोड़कर पोटैटो प्लांटर से खेती से कर रहे हैं बिहार के किसान, जानें क्या है अंतर

बिहार के किसान अब परंपरागत खेती छोड़कर आधुनिक तरीके से खेती करने में लग गए है. इसके तहत कटिहार में खेती यांत्रिकीकरण की ओर मुड़ गया है. जहां परंपरागत रूप से हल बैल विलुप्त हो गया है, वहीं मजदूरों का पलायन से खेती प्रभावित हुआ है.

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आलू की परंपरागत खेती और पोटैटो प्लांटर से खेती में कई अंतर है. जहां परंपरागत खेती में अधिक भूमि की आवश्यकता और अधिक श्रम की आवश्यकता होती है. क्योंकि आलू को मिट्टी में लगाना और फसल की देखभाल करना अधिक समय लेता है.

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परंपरागत खेती में उत्पादन कम हो सकता है, क्योंकि आलू को मिट्टी में लगाने से आलू की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है. अधिक लागत आती है, क्योंकि अधिक भूमि और श्रम की आवश्यकता होती है.

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वहीं दूसरी ओर पोटैटो प्लांटर से खेती से खेती में कम भूमि की आवश्यकता होती है और कम श्रम की आवश्यकता होती है. क्योंकि आलू को प्लांटर में लगाना और फसल की देखभाल करना आसान होता है.

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प्लांटर से खेती में उत्पादन अधिक हो सकता है, क्योंकि आलू को प्लांटर में लगाने से आलू की गुणवत्ता बेहतर होती है और कम लागत आती है, क्योंकि कम भूमि और श्रम की आवश्यकता होती है.

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वहीं पोटैटो प्लांटर से खेती परंपरागत खेती की तुलना में अधिक लाभदायक और किफायती होती है.

इनपुट- रंजन कुमार

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