वर्चस्व का एक दौर ऐसा भी आया जब कुचायकोट विधायक और पहलवानजी ने लालू यादव के उड़न-खटोले को अपने यहां उतरने तक न दिया.
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गोपालगंज: बिहार की सियासत में बाहुबलियों की एंट्री और उनका वर्चस्व कोई नई बात नहीं. सियासी इतिहास खंगालेंगे तो मालूम होगा कि एक से बढ़ कर एक रसूखदार हुए जिन्होंने न सिर्फ अपने क्षेत्र में बाहुबल के दम पर बल्कि बड़े राजनीतिक शख्सियतों को चुनौती देकर भी अपनी एक पहचान बनाई.
ऐसे ही एक बाहुबली नेता हैं बिहार के कुचायकोट विधायक अमरेंद्र पांडेय (Amrendra Pandey) उर्फ पप्पू पांडेय जिन्होंने लालू राज में अपने पैर पसारने शुरू किए और फिर बाद में कुचायकोट में लालू यादव (Lalu Yadav) के उड़न-खटोले को उतरने तक नहीं दिया.
चर्चित गोपालगंज चौहरा मर्डर केस
बिहार विधानसभा चुनाव की राजनीतिक सूरमा की स्पेशल किश्त में कुचायकोट के बाहुबली विधायक पप्पू पांडेय के बारे में जानते हैं. अब जरा याद कीजिए लॉकडाउन के समय मई के महीने में गोपालगंज में चौहरे हत्याकांड मामले पर राजनीतिक बवाल मचा हुआ था. इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया था कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav), पप्पू यादव जैसे तमाम विपक्ष के नेताओं ने गोपालगंज की तरफ मार्च करना शुरू कर दिया था.
जब तेजस्वी ने गोपालगंज मामले में ली खूब दिलचस्पी
कहा जाता है कि तेजस्वी यादव ने इस मामले में विशेष रूचि भी दिखाई. इसका एक कारण था लालू परिवार के साथ कुचायकोट विधायक का छत्तीस का आंकड़ा जो उस दौर से चला आ रहा था जब आरजेडी के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन, लालू यादव के शागिर्द हुआ करते थे. उस दौर में भी पप्पू पांडेय और उनके भाई सतीश पांडेय जिन्हें पहलवान जी के नाम से भी जानते हैं, उन्होंने लालू के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था.
किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं कुचायकोट MLA की स्टोरी
नीतीश कुमार के सरकार में आने के बाद पप्पू पांडेय और पहलवानजी को थोड़ी राहत मिली और इलाके में वर्चस्व दिन दोगुना रात चौगुना तरक्की करता रहा. जानकार बताते हैं कि कुचायकोट विधायक का इलाके में वर्चस्व का इतिहास किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं. यह शुरू भी कुछ उसी प्रकार हुआ था. पिता के साथ हुआ ज्यादती की वजह से प्रशासन के खिलाफ मन में गुस्सा भर गया और दारोगा की पिटाई करने के बाद थाने को आग के हवाले कर देने जैसी विभत्स घटना से शुरू हुआ यह कारनामा तेजी से विस्तार लेता रहा.
लालू से खूब निभाई बैर
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि 90 के अंतिम दशकों में लालू यादव के तथाकथित 'भूरा बाल हटाओ' जैसे जातिवादी नारे के बाद पहलवानजी और अमरेंद्र पांडेय का गुस्सा लालू सरकार के खिलाफ भड़क उठा. कुचायकोट के विधायक पप्पू पांडेय ने यहीं से राजनीति में एंट्री ली और गृहजिले में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए. वर्चस्व का एक दौर ऐसा भी आया जब कुचायकोट विधायक और पहलवानजी ने लालू यादव के उड़न-खटोले को अपने यहां उतरने तक न दिया.
मायावती की पार्टी BSP से हुई थी सफर की शुरुआत
अब जरा सियासी सफर पर एक नजर डालते हैं. उत्तर प्रदेश से मायावती की पार्टी बीएसपी के टिकट पर चुनावी सफर की शुरुआत करने वाला कुचायकोट का पांडेय परिवार नीतीश कुमार के बिहार में सरकार बनाने के साथ ही एक्टिव हो जाता है और पहलवानजी के आत्मसमर्पण के बाद उनके छोटे भाई पप्पू पांडेय जेडीयू के टिकट पर 2010 में विधायक चुन कर आते हैं. पप्पू पांडेय ने आरजेडी के उम्मीदवार आदित्य नारायण पांडेय को वहां से पटखनी दी.
बिहार में अमरेंद्र पांडेय का अब तक का सियासी सफर
बिहार में अमरेंद्र पांडेय का सियासी सफर यहीं से शुरू हुआ. 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के सिंबल पर आरजेडी कैंडिडेट को हराने के बाद 2015 में महागठबंधन ने फिर से पप्पू पांडेय को ही टिकट दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव हुए. परिणाम आए. कुचायकोट ने एक बार फिर से अमरेंद्र पांडेय को जिताया.
हालांकि, महागठबंधन की लहर होने के बावजूद जेडीयू उम्मीदवार अमरेंद्र पांडेय बमुश्किल ही अपनी सीट बचा पाए. एलजेपी के उम्मीदवार काली प्रसाद पांडेय को कड़े मुकाबले में तकरीबन 3500 वोटों से पराजित किया. अमरेंद्र पांडेय को 72,000 से कुछ अधिक वोट मिले तो वहीं, काली पांडेय को 68,600 से ज्यादा मत मिले. इस बार भी एलजेपी ने वहां से काली पांडेय को अपना उम्मीदवार बनाया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार कुचायकोट विधायक अपनी सीट बचा पाएंगे?