32 वर्ष की दोस्ती 38 शब्द में खत्म, जानिए क्या है रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे के मायने
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32 वर्ष की दोस्ती 38 शब्द में खत्म, जानिए क्या है रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे के मायने

रघुवंश प्रसाद सिंह ने लिखा, 'कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. पार्टी, नेता, कार्यकर्ता और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया, क्षमा करें.'

32 वर्ष की दोस्ती 38 शब्द में खत्म. (फाइल फोटो)

पटना: बिहार विधानसभा के चुनावी शोरगुल के बीच आई एक खबर ने सबको चौंका दिया. आरजेडी (RJD) के वरिष्ठ नेता और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के सबसे विश्वसनीय व्यक्ति रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) ने 10 सितंबर को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. राजधानी दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) में स्वास्थ्य उपचार करा रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने अस्पताल से एक चिट्ठी लालू यादव के नाम लिखी और 38 शब्दों में अपना त्यागपत्र उन्हें सौंप दिया. 

..लेकिन अब नहीं'
चिट्ठी में रघुवंश प्रसाद सिंह ने लिखा, 'कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. पार्टी, नेता, कार्यकर्ता और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया, क्षमा करें.' रघुवंश प्रसाद सिंह के इस चिट्ठी के बाद सियासी हलकों में तहलका मच गया. आनन-फानन में लालू यादव ने भी एक चिट्ठी लिखी.

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'आप कहीं नहीं जा रहे हैं'
लालू यादव ने लिखा, 'आपके द्वारा कथित तौर पर लिखी एक चिट्ठी मीडिया में चलाई जा रही है. मुझे तो विश्वास ही नहीं होता. अभी मेरे, मेरे परिवार और मेरे साथ मिलकर सिंचित राजद परिवार आपको शीघ्र स्वस्थ होकर अपने बीच देखना चाहता है.' पत्र में लालू ने आगे लिखा, 'चार दशकों में हमने हर राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि पारिवारिक मामलों में मिल-बैठकर ही विचार किया है. आप जल्द स्वस्थ हो जाएं, फिर बैठकर बात करेंगे. आप कहीं नहीं जा रहे हैं. समझ लीजिए.' 

NDA में आने का मिला न्यौता
इसके बाद दिल्ली से लेकर पटना तक बयानबाजी का दौर शुरू हो गया. बीजेपी-जेडीयू (BJP-JDU) ने रघुवंश प्रसाद सिंह के फैसले का स्वागत किया और आरजेडी पर निशाना साधते हुए उन्हें एनडीए (NDA) में आने का न्यौता दिया. लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह अभी खामोश हैं. उन्होंने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है.

CM नीतीश को लिखा पत्र
इस बीच शुक्रवार को रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक पत्र बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को मनरेगा (MNREGA) में संशोधन के लिए लिखा. उन्होंने सरकारी और एससी-एसटी की जमीन में मनरेगा के तहत काम का मुद्दा उठाया. साथ ही किसानों की जमीन में काम को मनरेगा से जोड़ने की मांग की.

 

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किसानों का उठाया मुद्दा

रघुवंश प्रसाद सिंह ने लिखा, 'नया क्लॉज जोड़कर अध्यादेश जारी किया जाए. किसानों का भाग जुड़ने से रोजगार गारंटी देने में सहूलियत होगी.' इसके साथ ही रघुवंश प्रसाद सिंह ने इसको लेकर केंद्रीय ग्रमीण विकास मंत्री को भी चिट्ठी लिखी थी. बता दें कि हाल में एससी-एसटी को लेकर नीतीश सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. बिहार सरकार ने एससी-एसटी उत्पीड़न में मौत पर परिजन को नौकरी देने का ऐलान किया है.

RJD के सभी पदों से दिया था इस्तीफा
इधर, रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे पर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है. क्योंकि बीते कुछ महीने से 'रघुवंश बाबू' के हाव-भाव बता रहे थे कि वह कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं. इसकी एक झलक कुछ महीने पूर्व दिखी थी, जब उन्होंने आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के साथ सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था.

'समाजवादी नेताओं की RJD में जगह नहीं'
खैर सियासत बदल गई है और आरजेडी में नए लोगों के हाथ में कमान है. जानकारों का कहना है कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को कमान मिलने के बाद से रघुवंश प्रसाद सिंह की आरजेडी में वह पकड़ नहीं रह गई है, जो लालू के समय थी. साथ ही अब धीरे-धीरे पुराने समाजवादी नेताओं का आरजेडी से बोरिया-बिस्तर बंधना शुरू हो गया.

एक जेल में दूसरा अस्पताल में
वहीं, लालू यादव और रघुवंश प्रसाद सिंह के दोस्ती के किस्से पुराने हैं. दोनों एक-दूसरे के कितने घनिष्ठ है, इसकी झलक कई मौकों पर देखने को मिली है. अभी लालू जेल में हैं और रघुवंश अस्पताल में, लेकिन वह भी एक दौर था कि रघुवंश प्रसाद सिंह साए की तरह हमेशा लालू के साथ हर मौके पर खड़े रहे. जब भी जरूरत हुई रघुवंश प्रसाद आगे आकर लालू और आरजेडी का बचाव किया लेकिन अपने पत्र में उन्होंने लिखा-'अब नहीं'.

पत्र के क्या मायने?
इन सबके बीच, यह जानना जरूरी है कि रघुवंश प्रसाद सिंह के दोनों पत्र के क्या मायने हैं. तो बता दें कि उन्होंने पत्र लिखकर एक साथ कई निशाने साधे हैं. पहला तो उन्होंने साफ बता दिया कि अब वो आरजेडी के साथ नहीं हैं और दूसरा कि आईसीयू में रहते हुए जनहित के मुद्दों वह किसी को भी अप्रोच कर सकते हैं. यानि रघुवंश प्रसाद सिंह ने यह भी बता दिया कि उन्होंने आम जनता के भले के लिए सीएम को पत्र लिखा.

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बाहुबली प्रवृति के लोगों की RJD में हो रही इंट्री
वहीं, अगर नीतीश कुमार अब रघुवंश प्रसाद के पत्र पर अमल और उसमें संशोधन करते है या फिर एक कदम आगे बढ़ते हैं तो वो यह बताने में सफल हो जाएंगे कि जनहित के मुद्दों पर किसी भी सुझाव को वो आत्मसाथ करते हैं. तीसरा संदेश जो जनता के बीच में गया है कि समाजवादी विचारधारा के लोग अब आरजेडी से बाहर हो रहे हैं और बाहुबली  प्रवृति के लोगों की आरजेडी में इंट्री हो रही है, जिसमें रामा सिंह, रीत लाल यादव, अनंत सिंह और अवधेश मंडल जैसे लोगों का नाम शामिल है.

BJP-JDU कर सकती है पुरस्कृत
सूत्रों की मानें तो रघुवंश प्रसाद सिंह अपने से अभी किसी पार्टी में शामिल नहीं हो रहे हैं. हालांकि, बीजेपी-जेडीयू दोनों उनके संपर्क में हैं. सूत्रों के मुताबिक, रघुवंश प्रसाद अब अपने कदम वापस नहीं लेंगे लेकिन जेडीयू और बीजेपी दोनों उनको उपकृत कर सकते हैं.  इतना ही नहीं, चर्चा इस बात की भी है कि जेडीयू रघुवंश प्रसाद सिंह को पुरस्कृत कर सकती है. साथ ही, उनके एक बेटे को विधानसभा चुनान से पूर्व राज्यपाल कोटे से विधान परिषद भी भेज सकती है. लेकिन यह कयास है और हकीकत क्या होगी ये आने वाला वक्त बताएगा.

कई मौकों पर झलका रघुवंश बाबू का दर्द
वहीं, रघुवंश प्रसाद सिंह के करीबियों की मानें तो पार्टी को लेकर उनका दर्द लंबे समय से चल रहा था. इसकी झलक 2019 लोकसभा चुनाव में सवर्ण आरक्षण के मुद्दे को दौरान भी दिखी और राज्यसभा चुनाव के साथ जगदानंद के प्रदेश अध्यक्ष बनने के समय भी, हर मौके पर वह पार्टी के कदम से खुश नहीं रहे. जबकि बीते दिनों तेज प्रताप यादव की इशारों-इशारों में की गई टिप्पणी भी चर्चा का विषय बनी रही. 

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इधर, पद और लाभ का त्याग छोड़कर रघुवंश अपनी प्रतिबद्धता पार्टी और लालू के प्रति बनाई रखी, लेकिन इसके बदले में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला है. अब रघुवंश प्रसाद की राहें जुदा है, लालू मनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन उनके करीबी बताते हैं कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अब अपने कदम वापस नहीं करेंगे. 

विपक्षी दलों से मधुर संबंध
बेदाग छवि और सभी पार्टी के नेताओं से मधुर संबंध रखने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह का आरजेडी से जाना लालू का निजी नुकसान ज्यादा दिखता है. यहां गौर करने वाली बात यह है भी है कि जब रघुवंश प्रसाद पटना एम्स में बीते दिनों भर्ती थे, तो उस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भी फोनकर उनका हालचाल जाना था और नीतीश कुमार भी कई मौके पर उनकी तारीफ सार्वजनिक मंचों से कर चुके हैं. ऐसे में आने वाले समय में सियासत किस ओर झुकेगी, इसका अंदाजा लगाना अभी कठिन है.