INDIA Seat Sharing: कांग्रेस तो बाद की बात है, असली पेंच तो नीतीश कुमार और लालू प्रसाद में ही फंसा हुआ है!
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INDIA Seat Sharing: कांग्रेस तो बाद की बात है, असली पेंच तो नीतीश कुमार और लालू प्रसाद में ही फंसा हुआ है!

Lok Sabha Election 2024: राजद, जेडीयू और कांग्रेस के बीच बिहार में सीट शेयरिंग इतना आसान नहीं है, जितने कि दावे किए जा रहे थे. आलम यह है कि अगर कोई दल दूसरे दल की बात मान लेता है तो वह उसके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है. 

बिहार में इंडिया के बीच सीट शेयरिंग आसान नहीं

INDIA Seat Sharing: 19 दिसंबर, 2023 को दिल्ली में हुई इंडिया ब्लाॅक की बैठक के बाद से ही नीतीश कुमार नाराज बताए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री के अलावा अब वे जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष भी बन गए हैं. पार्टी को भी उन्होंने कंट्रोल में ले लिया है. दिल्ली की बैठक के बाद से उन्हें मनाने का सिलसिला तेज हो गया था. तेजस्वी यादव ने 6 जनवरी को प्रस्तावित आस्ट्रेलिया दौरा कैंसिल कर दिया और नीतीश कुमार से मुलाकात करने भी पहुंचे थे. उसके बाद नाराज नीतीश को मनाने के लिए लालू प्रसाद यादव ने 4 साल बाद दही चूड़ा भोज का आयोजन किया पर लालू प्रसाद अलाव तापते रहे और नीतीश कुमार दही चूड़ा चापते रहे. 10 मिनट की मुलाकात में भी कोई गर्मजोशी नहीं दिखी. दूर खड़े तेजस्वी यादव दोनों नेताओं की केमिस्ट्री पर फोकस कर रहे थे. कांग्रेस, राजद और खुद जेडीयू इस बात का खंडन कर रहे हैं कि नीतीश कुमार नाराज नहीं हैं पर तीनों दलों के बीच का अंतद्र्वंद्व बता रहा है कि अभी संबंध सामान्य नहीं है. इस बीच एक और बात पर मामला फंसता नजर आ रहा है. दरअसल, नीतीश कुमार का मानना है कि लोकसभा चुनाव 2024 में सीट शेयरिंग के लिए लोकसभा चुनाव 2019 के प्रदर्शन को आधार बनाया जाना चाहिए, लेकिन राजद और लालू प्रसाद यादव का मानना है कि 2020 के प्रदर्शन को गठबंधन और सीट शेयरिंग का आधार बनाना चाहिए. 

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देखने, सुनने और कहने बताने में भले ही यह बहुत बड़ा मसला नहीं लग रहा है, लेकिन यह पहाड़ जितना बड़ा रोड़ा है, जिसे हटाने में तीनों दलों के संबंधों में दरार भी पड़ सकती है. एक तरह से कोपभवन में जा चुके नीतीश कुमार के लिए यह समय अनुकूल है और उनको गठबंधन में बनाए रखना राजद और कांग्रेस के लिए मजबूरी. नीतीश कुमार के लिए मौका है कि खेल बिगड़ता देख वे पाला बदलकर एनडीए में जा सकते हैं और यही लालू प्रसाद और कांग्रेस नहीं चाहते. अगर नीतीश कुमार एनडीए में जाते हैं तो महागठबंधन और इंडिया का सारा खेल खराब हो जाएगा. 

अब सवाल यह है कि नीतीश कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव और लालू प्रसाद 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार क्यों बनाना चाहते हैं. दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद को एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी और कांग्रेस को किशनगंज के रूप में केवल एक सीट मिली थी. बिहार की 40 में से 39 सीटों पर एनडीए ने जीत हासिल की थी. नीतीश कुमार की पार्टी ने 17 में से 16 सीटें जीती थीं और किशनगंज पर उसे हार का सामना करना पड़ा था. अब नीतीाश् कुमार अपनी इन 17 सीटों पर किसी तरह का समझौता नहीं चाहते. इसलिए नीतीश कुमार की पार्टी जोर देकर कहती है कि 2019 की 17 सीटों पर हम चुनाव लड़ेंगे. बाकी सीटों पर राजद, कांग्रेस और वामदल अपना समझ लें. लालू प्रसाद यादव को यही बात नागवार गुजर रही है. 

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दूसरी ओर, लालू प्रसाद यादव और राजद की रणनीति यह है कि सीट शेयरिंग के लिए 2019 नहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार बनाया जाए. 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और दूसरे नंबर पर भाजपा थी. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था. सीटों की बात करें तो राजद को 78, भाजपा को 75 और जेडीयू को 43 सीटें हासिल हुई थीं. इस लिहाज से राजद का प्रदर्शन सबसे बेहतर था. इसलिए लालू प्रसाद यादव सीट शेयरिंग के लिए 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार बनाना चाहते हैं. अगर ऐसा होता है तो जेडीयू को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि नीतीश कुमार के रुख को देखते हुए यह लग नहीं रहा कि लालू प्रसाद यादव की रणनीति सफल हो सकती है.

इस तरह 2019 के प्रदर्शन को आधार बनाने पर राजद राजी नहीं है तो 2020 के प्रदर्शन को आधार बनाने के लिए जेडीयू इनकार कर रही है. एक बात तो स्पष्ट है कि अगर नीतीश कुमार की अंदरखाने एनडीए में शामिल होने की बात चल रही है तो वे शायद ही राजद और कांग्रेस की बात मानें. और अगर एनडीए में शामिल होने को लेकर कुछ भी नहीं चल रहा है तो फिर राजद और जेडीयू को मिल-जुलकर बीच का रास्ता निकालना होगा. एक दिक्कत यह भी है कि कांग्रेस न तो 2019 और न 2020 के प्रदर्शन को आधार मानने को तैयार है. उसका कहना है कि 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन को आधार बनाया जाना चाहिए. हालांकि बिहार में अभी कांग्रेस उस स्थिति में नहीं है कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार पर अधिक से अधिक जोर डाल सके. अभी तो वह इन दोनों की कृपा पर ही बिहार में राजनीति कर रही है. तो फिर आगे आगे देखिए, होता है क्या. 

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