भजन कीर्तन से महिलाओं को मिल रहा रोजगार, चंपारण की महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर
मंडली पश्चिमी चंपारण की है, जहां जिले के ज्यादातर प्रखंडो में 150 से ज्यादा मंडली है. जिसमे 1000 से ज्यादा महिलाएं है जो भजन कीर्तन के लिए दूर दराज के क्षेत्रों में जाती है, जिस जिले से इन्हें निमंत्रण मिलता है,ये सभी महिलाएं भजन कीतर्न करती है.
चंपारण : पश्चिमी चंपारण की महिलाएं इन दिनों भजन कीर्तन गाकर खुद को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य कर रही है. इस कड़ी में ये महिलाएं अकेली नहीं है बल्कि अन्य महिलाओं को भी जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने का कार्य कर रही है. बता दें कि चंपारण के एक गांव में करीब 150 से ज्यादा गायन मंडली है.
रामनाम के धुन पर थिरकती महिलाएं आत्मनिर्भरता का दे रही संदेश
बता दें कि महिलाओं को देखकर लगता है कि यह अष्टयाम महिलाएं गा रही है और भजन के धुन पर झूम रही, तो आप गलत है, यह महिलाएं अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित है और रोजगार के विकल्प के रूप में अष्टयाम गायन को चुना है. इनकी मांग अब पूरे बिहार में है रामनाम के धुन पर थिरकती महिलाएं आत्मनिर्भरता का संदेश दे रही है साथ ही पुरुष के अधिपत्य वाले अष्टयाम गायन में अब पुरुषो को छोड़ कर लोगों की पहली पसंद बन रही यह महिला मंडली है.
एक मंडली में है करीब 150 महिलाएं
बता दें कि यह मंडली पश्चिमी चंपारण की है, जहां जिले के ज्यादातर प्रखंडो में 150 से ज्यादा मंडली है. जिसमे 1000 से ज्यादा महिलाएं है जो भजन कीर्तन के लिए दूर दराज के क्षेत्रों में जाती है, जिस जिले से इन्हें निमंत्रण मिलता है,ये सभी महिलाएं भजन कीतर्न करती है, रामनाम 24 घंटे जाप करती है, जो श्रद्धालु बुलाते है वो किराया भाड़ा के अलावा उन्हें कुछ रकम देते है. जिससे ये महिलाएं अपना जीवन यापन करती है. उसके बाद ये सभी महिलाएं गृहस्थ आश्रम में रहकत खेती बाड़ी कर अपना जीवन यापन करती हैं और आत्मनिर्भर होने के लिए अष्टयाम गायन को केरियर के रूप में चुना है. जिनकी मांग अब पूरे बिहार में है, इस कार्य जुड़ी महिलाएं बताती है पहले उन्हें इस कार्य मे आने पर डर लगता था परन्तु अब यह उनका रोजगार है जिसके साथ ही धर्म और भजन का भी मौका मिल जाता है.
इनपुट- राकेश
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