इलाके के ज्यादातर पीडीएस दुकानदार सरकार के इस दावे को खारिज कर रहे हैं कि उनके इलाके में कुपोषण है. कुछ दुकानदारों का तो ये भी दावा है कि बच्चों की मौत चमकी से नहीं किसी दूसरी बीमारी से हुई है.
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पटना: दुकानों में महीने के अनाज वितरण की तारीख खत्म हो रही है. लेकिन पीडीएस के डीलर के गोदाम अनाज से आज भी भरे हुए हैं. बिहार के मजफ्फरपुर के पीडीएस दुकानदार कुपोषण के सरकारी दावे को खारिज करते हैं. इतना ही नही अपने इलाके में चमकी की वजह से हुई मौत को भी खारिज कर रहे हैं.
मजफ्फरपुर के मड़वन ब्लॉक के महमदपुर सूबे पंचायत के पीडीएस दुकानदारों ने चमकी को लेकर एक अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं. दरअसल इलाके के ज्यादातर पीडीएस दुकानदार सरकार के इस दावे को खारिज कर रहे हैं कि उनके इलाके में कुपोषण है. कुछ दुकानदारों का तो ये भी दावा है कि बच्चों की मौत चमकी से नहीं किसी दूसरी बीमारी से हुई है.
पीडीएस दुकान की हकीकत जानने के लिए पीडीएस दुकान पहुंची. किशोरी जी के दुकान से लगभग 24 सौ परिवार जुड़े हुए हैं जिन्हें प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज मिलता है. पीडीएस दुकानदार का दावा है कि वो सभी को अनाज देता है. उसने ये भी स्वीकार किया है कि कुछ लोगों का कार्ड से नाम छूट गया होगा तभी उन्हें इसका फायदा नहीं मिलता होगा. हालांकि किशोरी इसके साथ ये भी दावा करते हैं कि उनके इलाके में हुई 2 बच्चियों को मौत चमकी से नहीं किसी दूसरे बीमारी से हुई है.
पूरे मामले का दिलचस्प पहलू ये है कि महीने के अनाज वितरण की तारीख खत्म हो रही है. लेकिन पीडीएस की दुकानों में अनाज के भंडार लगे हुए हैं. महमदपुर के दूसरे पीडीएस दुकानदार रामप्रवेश पासवान के दुकान की भी तस्वीरे कुछ ऐसी ही थी. रामप्रवेश पासवान का दावा था कि वो हर महीने की 21 से 30 तारीख के बीच राशन का वितरण कर देते हैं. लेकिन 27 तारीख को रामप्रवेश पासवान की पीडीएस दुकान की तस्वीर बताने के लिए काफी थी कि अनाज वितरण का काम सही से नहीं हुआ है.
उससे भी ज्यादा चौकाने वाली बात ये रही कि राम प्रवेश पासवान ने अपने ही पंचायत में चमकी से हुई मौत के बारे में किसी भी जानकारी से साफ इन्कार कर दिया. जबकि उसी इलाके में मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालने वाले राजपल्टन महतो कहते हैं कि उन्होंने पिछले साल ही राशन कार्ड बनने के लिए आवेदन दिया है लेकिन उन्हें बार-बार ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. गुजारिश करने पर लोग मारने दौड़ते हैं. मार खाने से बेहतर है कि वो मजदूरी करके ही अपने परिवार का पेट चलाएं.