पटना: बिहार में 2012 में नया जेल मैनुअल बनाया गया था उसके नियम 474 से 487 तक विस्तार से प्रक्रिया लिखी हुई है. जिसको देखा जा सकता है उस प्रक्रिया में यह लिखा हुआ आजीवन कारावास की सजा पाकर जो लोग हैं. उन्हें कितने दिनों के बाद छोड़ा जाएगा और किस तरीके से छोड़ा जाएगा  कारा अधिनियम में 14 वर्ष की सजा जेल के अंदर विधाएं हो जेल में अच्छे चार चलन के चलते परिहार के समय जोड़ने का बाद 14 वर्ष की अवधी और 20 वर्ष परिहार को लेकर जिन्हें योग्य पाया जाएगा. उन पर विचार किया जाएगा. उसकी प्रक्रिया है और इसके लिए राज्य स्तरीय कमेटी गठित है इसमें विचार किया जाता है कि कौन-कौन से बंदी इस तहत आते है. परिहार परिषद इसके अध्यक्ष अपर मुख्य सचिव गृह विभाग उसमें दो न्यायिक सदस्य भी रहते है.


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बिहार चीफ सेक्रेट्री अमीर  सुहानी ने कहा कि पिछले 6 सालों में 22 बैठक के हो चुकी हैं और 22 बैठकों में 1161 बंदियों को छोड़ने का निर्णय लिया गया. उसमें जिले के एसपी और तमाम अधिकारियों और ट्रायल कोर्ट के जैसे भी रिपोर्ट मांगा जाता है इन सभी को विचार हुआ है 698 बंदियों को सरकार ने छोड़ा है. इसके अलावा अन्य विनियम के तहत 26 जनवरी 15 अगस्त और 2 अक्टूबर को कैदियों को रिहा किया जाता है. भारत सरकार के द्वारा परामर्श लेकर राज्य सरकार बंदियों को छोड़ने के लिए शर्तें लेती अब तक 104 ऐसे बंदियों को सजा में छूट देकर कारा मुक्त किया गया.


10 वर्ष से अधिक सजा पाए हुए व्यक्ति जिन्होंने प्रथम बार अपराध किया हो और सजा के दौरान वह अच्छे व्यवहार किया तो उनको भी सरकार आधी अवधि पार करने के बाद छोड़ने पर विचार करेगी परिहार परिषद जो है. आजीवन कारावास वाले  बंदियों को छोड़ा जाता है. अभी जो आदेश निर्गत हुआ है 27 बंदियों को छोड़ने के लिए उसमें सारे नियम फॉलो किया गया है. किसी को भी छूट नहीं दिया गया और किसी को  इस मामले में किसी को खास तरह की छूट नहीं दी गई है. एक बंदी जो राजनीतिक बंदियां आनंद मोहन की रिहाई की गई है 15 वर्ष 9 माह 25 दिन के बाद उनकी रिहाई की गई है. परिहार के तरह देखा जाए तो 22 वर्ष 23 दिन के बाद उनके रिहाई के कोई छूट नहीं दिया गया है.


पहले भी कोई आईएस का कोई नया कैटेगरी नहीं था नियम में लोकसेवक ता आईएस के बारे में कोई बंधन नहीं था और कोई आईएस के लेकर मामला नहीं थी. लोक सेवक के लिए हटाया गया कि आम आदमी और लोक सेवक में कोई अंतर ना हो सब एक समान है हमारी जानकारी में कैसे हारने राज्य में एक लोक सेवा का समय बदलता है कानून और संविधान में संशोधन होता है. न्याय प्रक्रिया में संशोधन होता है कोर्ट का रुल बदलता रहता है.


इनपुट- रूपेंद्र श्रीवास्तव


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