पटनाः Ahoi Ashtami Meaning: कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. यह एक व्रत अनुष्ठान है जो माताएं अपनी संतानों के लिए करती हैं. इस व्रत के पीछे की मान्यता है संतानों के जीवन के कष्ट मिटाना. यहीं से इस व्रत के नाम को अर्थ भी मिलता है. वास्तव में अहोई का तात्पर्य है कि अनहोनी को भी बदल डालना. उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है. सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं. जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है. अहोई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है. उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं. करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है. यह व्रत पुत्र की लंबी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं करती हैं. कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है.


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अहोई अष्टमी महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के व्रत तीन दिन बाद ही रखा जाता है. जैसे करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है उसी प्रकार अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु और खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन व्रत कर विधि विधान से अहोई माता की पूजा करने से मां पार्वती अपने पुत्रों की तरह ही आपके बच्चों की रक्षा करती हैं. साथ ही पुत्र प्राप्ति के लिए भी यह व्रत खास महत्व रखता है.


अहोई अष्टमी व्रत पर इन नियमों का रखें विशेष ख्याल
1. अहोई अष्टमी के दिन भगवान गणेश की पूजा अवश्य करनी चाहिए.
2. अहोई अष्टमी व्रत तारों को देखकर खोला जाता है. इसके बाद अहोई माता की पूजा की जाती है.
3. इस दिन कथा सुनते समय हाथ में 7 अनाज लेना शुभ माना जाता है. पूजा के बाद यह अनाज किसी गाय को खिलाना चाहिए.
4.अहोई अष्टमी की पूजा करते समय साथ में बच्चों को भी बैठाना चाहिए. माता को भोग लगाने के बाद प्रसाद बच्चों को अवश्य खिलाएं.


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