पटनाः Aja Ekadashi Story: सनातन परंपरा में अजा एकादशी का खास महत्व है. अजा एकादशी भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है. इसलिए इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु के ही साथ में माता लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. इसे अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह एकादशी जन्म के बंधन से मुक्त करने वाली और पृथ्वी पर भौतिक रूप में कभी भी अन्न-जल की कमी नहीं होने देने का वरदान देने वाली होती है. इस व्रत के करने से सदैव भंडार भरे रहे रहते हैं. व्रत के महत्व के साथ ही इसकी कथा भी बहुत रोचक है. यह कथा सतयुग के सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी हुई है. 


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ऋषि विश्वामित्र ने ली परीक्षा
राजा हरिश्चंद्र के लिए कहा जाता है कि चंद्र टरे, सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार. पर दृढ़ राजा हरिश्चंद्र का टरै न सत्य विचार. राजा अपनी सत्यवादिता के लिए तीनों लोकों में प्रसिद्ध थे और सत्य के प्रभाव के कारण ही उनका रथ धरती से ऊपर उठकर चलता था. एक बार मुनि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र की कर्तव्यनिष्ठा और सत्यता की परीक्षा लेनी चाही और इसके लिए माया रची. उन्होंने सत्यवादी राजा से सपने में ही उनका राज-पाठ मांग लिया. राजा ने स्वप्न में सबकुछ दान कर दिया इसके बाद अगले दिन ऋषि विश्वामित्र दान के उपरांत की दक्षिणा लेने आए. राजा ने पहले ही विश्वामित्र को राज पाठ दे दिया लेकिन जब स्वर्ण मुद्राएं देने की बारी आयी तो उनके पास कुछ नहीं बचा था. 


राज परिवार ने झेले कष्ट
इस दौरान भी राजा अपने सत्य से नहीं डिगे. उन्होंने राज त्याग दिया और पत्नी तारामती, पुत्र रोहित के साथ काशी के बाजार में निकल पड़े. बाजार में उन्होंने खुद को एक चांडाल का दास बना कर बेच दिया और पत्नी-बच्चों को एक साहूकार के हाथ बेच दिया. इस तरह मिली मुहरों से उन्होंने ऋषि को दक्षिणा चुकाई. इसके बाद राजा का अपनी पत्नी और बेटे से भी बिछोह हो गया. राजा कर्ज चुकाने के लिए शमशान में काम करते और वहां लाशों को जलाने के बदले मृत व्यक्ति के परिवार वालों से कर लेते थे. 


राजा को मिला परमधाम
एक बार उनके बेटे को सांप ने काट लिया जिसके बाद उनकी पत्नी अपने बेटे को लेकर उसी श्मशान घाट गयी जहां राजा काम करते थे. उन्होंने नियम अनुसार अपनी पत्नी से भी कर माँगा लेकिन उनके पास देने को कुछ नहीं था. राजा हरिश्चंद्र खुद इस दुःख की स्थिति से काफी व्यथित थे, अंत में उनकी पत्नी ने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा उन्हें कर के रूप में दिया. उनकी ऐसी हालत देख ईश्वर भी पसीज गये. इसके बाद वहां ऋषि विश्वामित्र, महादेव-पार्वती और खुद देवराज इंद्र अपना विमान लेकर उपस्थित हुए. जिस दिन यह घटना हुई उस दिन सुबह से ही हरिश्चंद्र व उनके परिवार ने कुछ नहीं खाया था. इसी दिन अजा एकादशी भी थी. भगवान ने इसे उनका दृढ़ व्त माना और उन्हें परमधाम पहुंचा दिया.


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