भाजपा की तरफ से केवल बिहार ही नहीं बल्कि चार राज्यों के पार्टी अध्यक्ष बदले गए हैं.भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की तरफ से राजस्थान, बिहार, ओडिशा और दिल्ली के पार्टी अध्यक्षों के नामों की घोषणा की गई. इसमें से बिहार में पार्टी की कमान अब सम्राट चौधरी के हाथ में थमाई गई है जबकि राजस्थान सीपी जोशी, ओडिशा में मनमोहन सामल, दिल्ली में वीरेंद्र सचदेव को पार्टी की तरफ से अध्यक्ष बनाया गया है.
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पटना : बिहार में भाजपा को नया 'सम्राट' मिल गया. बीजेपी की तरफ से खेले गए इस दाव के बाद से विपक्ष की चिंता बढ़ गई है. भाजपा की तरफ से केवल बिहार ही नहीं बल्कि चार राज्यों के पार्टी अध्यक्ष बदले गए हैं.भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की तरफ से राजस्थान, बिहार, ओडिशा और दिल्ली के पार्टी अध्यक्षों के नामों की घोषणा की गई. इसमें से बिहार में पार्टी की कमान अब सम्राट चौधरी के हाथ में थमाई गई है जबकि राजस्थान सीपी जोशी, ओडिशा में मनमोहन सामल, दिल्ली में वीरेंद्र सचदेव को पार्टी की तरफ से अध्यक्ष बनाया गया है. अब आप जानिए कि आखिर बिहार में भाजपा ने सम्राट चौधरी पर जो दाव चला है उसके पीछे की वजह क्या है.
इन सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव जसल्द ही होने है सबसे पहले राजस्थन में 2023 में तो वहीं बिहार और दिल्ली में 2025 में और ओडिशा में 2024 में विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में पार्टी को नई धार देने के लिए इन राज्यों में पार्टी के अध्यक्ष बदले गए हैं. अब बिहार में भाजपा ने सम्राट चौधरी पर दाव क्यों खेला है इसके पीछे की वजह जानिए. दरअसल सम्राट चौधरी राजद से होते हुए जदयू और वहां से भाजपा में आए हैं. उनको सभी पार्टियों के भीतर की अंदरूनी राजनीति पता है. सम्राट चौधरी कुशवाहा समाज से आते हैं. वह तीन बार बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं और बिहार के कद्दावर नेता शकुनी चौधरी के पुत्र हैं.
सम्राट चौधरी बिहार भाजपा के दूसरे ऐसे अध्यक्ष हैं जो राजद में रहकर यहां आए हैं. इससे पहले भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी राजद से ही बीजेपी में आए थे. सम्राट चौधरी के तो माता-पिता दोनों राजद के साथ ही रहे. खुद सम्राट चौधरी राबड़ी मंत्रीमंडल में सबसे कम उम्र के मंत्री बने थे. उनकी उम्र सीमा को लेकर तब बवाल हुआ था.
बिहार में सम्राट चौधरी को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे कुशवाहा पॉलिटिक्स है जिसके इर्द-गिर्द बिहार की राजनीति इनदिनों घूम रही है. आपको बता दें कि जदयू ने एक दिन पहले प्रदेश अध्यक्ष सहित 24 लोगों को अपनी कमिटी में शामिल किया तो उसकी नजर भी इसी वोट बैंक पर थी. भाजपा ने भी प्रदेश की कमान सम्राट के हाथों में सौंपकर इसपर एक और कार्ड खेल दिया.
बिहार में यादवों के बाद अगर किसी की सबसे ज्यादा बड़ी वोट बैंक है तो वह कुशवाहा की है. ऐसे में सबकी नजर कुशवाहा वोट बैंक पर टिकी है. राजद के साथ बड़ी संख्या में यादव वोटर हैं ऐसे में कुशवाहा वोटरों पर सभी दाव खेलना चाह रहे हैं. दरअसल इस सब के बीच सबसे ज्यादा चर्चा सम्राट चौधरी के भगवा पगड़ी की हो रही है. वह दावा करते रहे हैं कि यह पगड़ी नहीं कफन है. जो उन्होंने नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने के लिए बांधा है. उन्होंने कहा कि वह तब तक इस पगड़ी को बांधे रहेंगे जब तक सीएम की कुर्सी से नीतीश कुमार को हटा नहीं देते हैं.
नीतीश ने जब महागठबंधन का हाथ थामा तो सम्राट चौधरी ने इन्हीं संकल्पों के साथ यह भगवा पगड़ी पहनी थी. ऐसे में पार्टी ने उनके संकल्प की लाज रखने के लिए उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. ताकि वह अपनी कसम को पूरा कर सकें. बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की सभी सीटों पर 17-17 सीटें भाजपा और जदयू के हिस्से आई थी 6 सीटों पर लोजपा ने चुनाव लड़ा था. आपको बता दें कि इसमें स भाजपा और लोजपा अपनी सारी सीटें जीत गई थी. जबकि जदयू किशनगंज की सीट पर हार गई और उसके हिस्से में 16 सीटों पर जीत दर्ज हुई थी. ऐसे में भाजपा से अलग होने के बाद अब जदयू की जीती हुई इन 16 सीटों पर भाजपा की नजर है. जिसको ध्यान में रखकर भाजपा ने यह रणनीति तैयार की है.
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